उत्तर प्रदेश बलिया
इनपुट: हिमांशु शेखर
बलिया उत्तरप्रदेश:--कुछ सालों पहले की बात है मेरे ऑफिस में काम करने वाले एक चपरासी रामु की बहन जयंती की विवाह था तो उसने करीब एक महीने पहले ही मुझे बता दिया था की पंडित मैं 20 दिन के लिए अपने गांव जाऊंगा मेरी बहन का विवाह है ....
उसने कुछ अग्रिम राशि के लिए भी कंपनी मे लोन के लिये आवेदन किया था जो 50000 थी कंपनी ने उस राशि को मंजूर कर दिया था....
लेकिन उससे पहले मेने पूछा था की इतने पैसे का क्या करेगा,तो उसका कहना था की बहन की विवाह है वहां खर्च करना है बहन के लिए कपड़े लेने है और भी बहुत सा सामान लेना है...
अच्छी बात ये है की उड़ीसा मे दहेज़ लिया नही जाता है....
वो पैसे ले कर और हमारे सभी सहकर्मियों को शादी का न्योता दे कर अपने गांव चला गया ,उसकी बहन की विवाह 21 जून को थी...
हम भी भूल गए थे कि उसके घर में विवाह है...
एक दिन अचानक उसका फिर फोन आता है कि पंडित जी आप सबको विवाह में जरूर आना है और परसों ही विवाह है...और साथ में अपना पता भी बताया....
उसी दिन हम सबने मिल कर यही सोचा की अमीरों की विवाह तो बहुत देखते है एक बार गांव की विवाह भी देख लेते है...
वो भी उड़िया कलचर का कैसे विवाह होता है देख लें एक बार....!!
तो हम सभी ने नियत तिथि के लिए वहां जाने के लिये किराये का गाड़ी रिजर्व कर लिया और सभी शाम को अपना कार्य निबटा कर 6 बजे गाड़ी पर आ गए हम सभी....
बरगढ़ जिला के पास एक गांव है जिसकी दूरी हमारे कंपनी JSW स्टील से करीब डेढ़ दो घंटे की है सो चल दिए हम सभी....
हम सभी 7.30 बजे वहां जा लगे,वो बिल्कुल पिछड़ा गांव था ये बात कुछ साल पहले की है उस समय रामु के यहां इन्वर्टर नहीं हुआ करते था ना ही उन लोगो के पास इतने पैसे थे की वो जेनरेटर किराये पर ले ले...
गैस वाली लालटेन से रोशनी की हुई थी बहुत लोग थे करीब 200 के आसपास फिर भी बड़ा अच्छा माहौल था सुकून था खाने में भी एक दाल एक सब्जी दही बड़ा और दाल में उपर से शुद्ध देशी घी डाल कर खाना खिला रहे थे....
गाजे बाजे मे गांव की औरतें अपनी उड़िया भाषा मे गीत गा रहीं थीं.... समझ तो उतना नही आ रहा था मगर धुन बहुत अच्छा लग रहा था....!!
गांव की औरतों का नृत्य देख कर बहुत मन भावन लग रहा था...!!
बहुत ही अच्छा लग रहा था जैसे किसी स्वर्ग में आ गए हो ना ही फालतू का शोर,सिर्फ घर के नही बल्कि गांव के लोग भी पूरी बारात का स्वागत कर रहे थे....
लग ही नहीं रहा था की एक घर का विवाह है लगा पूरे गांव की बेटी का विवाह है.....
सुबह भी बिदाई के समय पूरे गांव वाले परिवार की तरह खड़े थे और सबकी आंखों में आंसू भी साफ दिखाई दे रहे थे....
रामु की बहन का विवाह है इसके लिए हम सभी लोग मिलकर कुछ सामान लाए थे साथ में शगुन के लिए भी कुछ पैसे दिए थे....
बिदाई के बाद हमने भी चलने के लिए बोला तो रामु ने सभी के लिए शादी में बनी सब्जी दही पूड़ी और आधा किलो देशी घी का डब्बा बांध कर दिया हमारे मना करने के बाद भी नहीं माना तो हमको लेना पड़ा ।
निकलने से पहले मेने उसके हाथ पर 1000 रूपये रखे और बोला की इसे रखो तुम्हारे काम आयेंगे तो रामु ने वो रुपए वापस कर दिए और बोला पंडित मेरी बहन की विवाह बहुत अच्छे से हो गई है और मेरे ऊपर किसी भी तरह का कर्ज भी नही है तो मुझे इसकी जरूरत नहीं पड़ेगी....
इसे देने के लिए आपका धन्यवाद ,फिर उसने बताया कि गांव के सभी लोगो ने मिलकर विवाह की है किसी ने चावल दिया किसी ने दाल तो किसी के घर से आटा आया और साथ में अपने खेत की ताजी सब्जियां तो थी ही और सारा खर्च मिला कर भी 2000 मेरे पास बचे है....
मतलब सिर्फ 48000 में विवाह ये सब तो हम शहरी लोग कभी सोच ही नहीं सकते, साथ का असली मतलब गांव होता है मेने पहली बार समझा था...
धन्य हो ऐसे लोग जो सबको अपना परिवार मान कर कार्य करते हो वहां कभी परेशानी आ ही नहीं सकती है।
क्या हम सिर्फ दिखावे के शाही लोग ऐसा नहीं कर सकते दिखावे के चक्कर में लाखों रुपए बर्बाद कर देते हैं.... जबकि दो दिन बाद किसी को याद ही नहीं रहता की हम किसी अमीर की शादी में गए थे और वहां क्या-क्या खाया था......!!
एक बार विचार करियेगा जरूर.... 🌹🌹