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    5 जून को गंगा दशहरा एवं पर्यावरण दिवस पर विशेष -पतित पावनी एवं जीवनदायिनी मां गंगा को प्रदूषण मुक्त तथा सतत प्रवाही बनाने हेतु पुन: करना होगा भगीरथ प्रयास : डाॅ० गणेश पाठक



    उत्तर प्रदेश बलिया 
    इनपुट: हिमांशु शेखर 
           
    बलिया उत्तरप्रदेश:---अमरनाथ मिश्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय दुबे छपरा, बलिया के पूर्व प्राचार्य  एवं जिला गंगा समिति के सदस्य पर्यावरणविद् डाॅ० गणेश पाठक ने 'पूर्वांचल राज्य' को एक भेंटवार्ता में बताया कि प्रति वर्ष ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को धूम - धाम से 'गंगा - दशहरा' का पर्व मनाया जाता है। इस वर्ष यह तिथि  संयोग से 5 जून को पड़ रही है और 5 जून को हो पूरे विश्व में पर्यावरण की सुरक्षा ,संरक्षा एवं संरक्षण हेतु प्रति वर्ष पर्यावरण दिवस मनाया जाता है।
       पौराणिक आख्यानों के अनुसार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी  तिथि को ही महाराजा भगीरथ द्वारा घोर तपस्या कर मानव कल्याण हेतु एवं अपने साठ हजार  पितरों का उद्धार करने हेतु मां गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरण कराया गया। इसी लिए इस तिथि को गंगा का अवतरण दिवस भी माना जाता है और इस तिथि पर गंगा में स्नान - दान कर पुण्य का भागी बना जाता है। इस तरह इस तिथि का एक विशेष धार्मिक - आध्यात्मिक महत्व है। 
         डाॅ० पाठक ने बताया कि ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की  दशमी की तिथि को  भले ही हम मां गंगा के पृथ्वी  पर अवतरण की तिथि के रूप में मनाते हैं, किंतु वर्तमान समय में आज इस तिथि की सार्थकता विशेष रूप से बढ़ गयी है। कारण कि आज पुण्य सलिला, सतत प्रवाहिनी, पाप नाशीनी , जीवनदायिनी मां गंगा का जल  गम्भीर रूप से प्रदूषण का शिकार हो गया है। आज गंगा का जल पीने को कौन कहे, स्नान करने योग्य भी नहीं रह गया है। जबकि गंगा में स्वयं जल शुद्धिकरण की क्षमता है। इस आधार पर यह सोचनीय बात है कि आज मां गंगा का जल कितना अधिक प्रदूषित हो गया है। मां गंगा के जल का इस बेरहमी से दोहन एवं शोषण किया गया है कि मां गंगा आज प्रदूषण की मार से कराह रही है।
        गंगा मात्र जल स्रोत के रूप में हमारे लिए जल संसाधन ही नहीं है, बल्कि गंगा हमारी मां है। करोड़ों लोगों के जीवन का आधार है। सभ्यता एवं संस्कृति का विकास इसी मां गंगा के किनारे हुआ। मां गंगा हमारा प्रत्येक दृष्टि से भरण - पोषण करके समारा समग्र विकास करती है। गंगा वासियों का जीवन की कहानी गंगा मां की गोद से शुरू होकर मां गंगा में ही समाहित होती है। इस तरह मां गंगा हमारी सभ्यता एवं संस्कृति की पहचान है।
           
    किंतु सबका भरण- पोषण करने वाली मां गंगा आज आज हमारे स्वार्थपरक कार्यों के चलते एक तरफ जहां प्रदूषण से बेहाल है,वहीं दूसरी तरफ मां गंगा के जल को रोककर या जल के प्रवाह को बाधित कर अनेक विकास परियोजनाएं निकाली गयी हैं । गंगा नदी से अनेक नहरें निकाल कर एवं बांध का निर्माण कर गंगा नदी के सतत प्रवाही जल को बाधित कर दिया गया है।फलत: गंगा नदी की जल धारा का अबाध गति से प्रवाह एवं उसकी निरंतरता भी बाधित हो गयी है। खासतौर से टिहरी बांध बन जाने के बाद से तो गंगा नदी का प्रवाह विशेष रूप से बाधित हुआ है, जिसके फलस्वरूप गंगा की धारा में जल की कमी हो गयी है और गंगा के प्रवाह मार्ग में आज कल जगह - जगह बालू के टीले उभर आए हैं। यही नहीं गर्मी के दिनों में तो अनेक जगहों पर गंगा नदी को पैदल ही पार किया जा सकता है। सबका कल्याण करने वाली मां गंगा जल की कमी से कराह रही है।
      
    डाॅ० पाठक के अनुसार आज गंगा नदी की जल पारिस्थितिकी,जीव पारिस्थितिकी,मृदा पारिस्थितिकी एवं पादप पारिस्थितिकी  बढ़ते प्रदूषण के कारण असंतुलित होती जा रही है। अर्थात् गंगा घाटी की सम्पूर्ण पारिस्थितिकी ही असंतुलन का शिकार हो रही है, जिसके चलते गंगा जल एवं गंगा घाटी में रहने वाले जीव- जंतुओं , वनस्पतियों, मिट्टी एवं जल के लिए संकट की स्थिति उत्पन्न होती जा रही है।
        
    गंगा में प्रदूषण की स्थिति यह है कि गंगा किनारे स्थापित उद्योगों से निकलने वाला मलवा बिना उपचारित किए ही गंगा नदी में गिराया जा रहा है। नगरों से निकलने वाला कचरा एवं मल- जल भी बेरोक - टोक गंगा में गिराया जा रहा है। जबकि नियमत: इन प्रदूषित पदार्थों को संशोधित कर ही गंगा में गिराए जाने का प्राविधान है, किंतु इसका कड़ाई से पालन नहीं हो रहा है। कृषि के लिए प्रयुक्त रासायनिक खाद, जीव - जंतु नाशक एवं खर- पतवार नाशक विषैली दवाएं भी  मिट्टी में मिलने के बाद वर्षा जल के प्रवाह के साथ या बाढ़ के जल के साथ गंगा नदी में गिर रहा है। इन सबके चलते गंगा का जल निरन्तर प्रदूषित होता जा रहा है। 
         
     गंगा के जल प्रवाह एवं निरन्तरता के बाधित होने से गंगा के प्रवाह क्षेत्र में गाद का जमाव होता जा रहा है। जल की कमी से जलीय जीवों के लिए भी संकट उत्पन्न होता जा रहा है। तलहटी में गाद के जमाव से नदी तल उथला होता जा रहा है ,जिससे नावों एवं जलयानों के संचालन में कठिनाई उत्पन्न हो रही है। नदी का तल उथला होने से जल का प्रवाह धीमा हो जाता है ,जिससे बरसात के दिनों में जब पानी अधिक होता है हो पानी आगे न बढ़कर किनारों पर फैलकर बाढ़ की स्थिति उत्पन्न कर देता है।
         
    डाॅ० पाठक ने बताया कि यद्यपि कि गंगा को स्वच्छ एवं प्रवाहमान बनाने हेतु अब तक सरकार द्वारा अरबों रूपए खर्च किए जा चुके हैं। अनेक योजनाएं क्रियान्वित की जा चुकी हैं एवं क्रियान्वित हो रही हैं, किंतु ये योजनाएं अपने यथेष्ट उद्देश्य में पूर्णत: सफल नहीं हो रही हैं, जिस पर समुचित ध्यान देने की आवश्यकता है। इसके साथ - साथ यह भी सच है कि गंगा को स्वच्छ करना केवल सरकार की ही जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि हमारी भी जिम्मेदारी होनी चाहिए। गंगा के किनारे रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति की यह जिम्मेदारी होनी चाहिए कि हम ऐसा कोई भी कार्य न करें, जिससे गंगा का जल प्रदूषित हो। यदि हम गंगा में प्रदूषित पदार्थों को गिराना छोड़ दें, तो गंगा में इतनी क्षमता है कि मां गंगा स्वत: शुद्ध हो जायेगी। आज आवश्यकता है हमें पुन:  राजा भगीरथ की तरह दृढ़ प्रतिज्ञा करने की है, ताकि मां गंगा अपने मूल रूप में अपनी पवित्रता एवं शुद्धता को प्राप्त कर सतत प्रवाही, पुण्य सलिला एवं पाप नाशीनी स्वरूप को ग्रहण कर लोक कल्याणकारी रूप में पुन: प्रतिष्ठापित हो सके।

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