उत्तर प्रदेश प्रयागराज
इनपुट:सोशल मीडिया
प्रयागराज:--फर्जी दस्तावेज के आधार पर नियुक्त अध्यापक की सेवा से बर्खास्तगी को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सही करार दिया है. इस मामले में राज्य सरकार की ओर से दाखिल विशेष अपील को स्वीकार करते हुए कोर्ट ने एकल पीठ के उस आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें अध्यापक को सेवा में बनाए रखने का आदेश दिया गया था. उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले के सरकारी मॉडल इंटर कॉलेज में कार्यरत सहायक अध्यापक चिदानंद के मामले में न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्र और न्यायमूर्ति प्रवीण कुमार गिरी की खंडपीठ ने सरकार की विशेष अपील स्वीकार करते हुए यह आदेश दिया.
राज्य सरकार ने अपील दायर कर कहा कि चिदानंद ने हाईस्कूल, इंटरमीडिएट और बीएड की फर्जी डिग्रियों के आधार पर नौकरी प्राप्त की थी. पूर्व में एकल पीठ ने राज्य सरकार को आदेश दिया था कि चिदानंद को सेवा में बनाए रखते हुए वेतन भी दिया जाए। Front News India इस आदेश को राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय की खंडपीठ में चुनौती देते हुए विशेष अपील दाखिल की.
कोर्ट के निर्देश पर राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान और डॉ. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा ने हलफनामे दाखिल कर स्पष्ट किया कि चिदानंद के प्रस्तुत प्रमाणपत्र फर्जी हैं. विद्यालयीय शिक्षा संस्थान ने बताया कि हाईस्कूल और इंटर की डिग्रियां उसके द्वारा जारी नहीं की गईं. वहीं अंबेडकर विश्वविद्यालय ने बताया कि बीएड का जो प्रमाणपत्र प्रस्तुत किया गया है वह 2009-2010 सत्र का है, जिसे विश्वविद्यालय ने 'शून्य वर्ष' घोषित किया था, अतः वह प्रमाणपत्र वैध नहीं है.
कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में जहां नियुक्ति धोखाधड़ी से प्राप्त की गई हो, वहां न्यायालय का कोई विवेकाधीन अधिकार नहीं चलता. कोर्ट ने कहा कि “धोखा और न्याय साथ नहीं चल सकते.” इसलिए एकल पीठ द्वारा दिए गए आदेश को खारिज करते हुए विशेष अपील स्वीकार की गई और चिदानंद की नियुक्ति रद्द कर दी गई. साथ ही वेतन भुगतान का भी आदेश निरस्त कर दिया गया।