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    आज "गंगा दशहरा" पर विशेष प्रस्तुति गंगा को निर्मल बहने दो:डॉ जयप्रकाश तिवारी



    उत्तर प्रदेश बलिया 
    इनपुट: हिमांशु शेखर 

    बलिया उत्तरप्रदेश:--लक्ष्मीपति का चरणोदक है 
    यह ब्रह्म कमंडल वासिनी है 
    शम्भु की जटा सुशोभित है 
    यह भगीरथ की आराध्या है 
    भागीरथी अलकनंदा सहित 
    जाह्नवी धार उज्ज्वल रहने दो 
    नदी नहीं, सुरसरि है यह तो
    इसको तुम निर्मल बहने दो । 

    तट पर गाँव औ नगर बसाकर 
    सुन्दर - सुन्दर घाट बनाकर 
    तुम्हे समृद्धिशील बनाने वाली
    सभ्यता-संस्कृति सिखानेवाली 
    कल्याणी विपुल जलराशि को
    कल - कल निनाद  करने दो
    नदी नहीं, सुरसरि है यह तो
    इसको तुम निर्मल बहने दो। 

    यह तूने क्या कर दिया मानव? 
    इसे बाँध बनाकर रोक दिया !
    नाले, सीवर, कूड़ा, कचरे से, 
    इसको कितना तूने शोक दिया 
    कब तक सहेगी अत्याचार? 
    तुम माँ के धैर्य को मत मापों 
    नदी नहीं, सुरसरि है यह तो
    इसको तुम निर्मल बहने दो।

    हो अंध - श्रद्धा के वशीभूत 
    तुम मूर्ति विसर्जित करते हो 
    पत्र-पुष्प विसर्जित करते हो
    शव भस्म विसर्जित करते हो  
    मल - मूत्र विसर्जित करके 
    कैसा कुकृत्य तुम करते हो?
    नदी नहीं, सुरसरि है यह तो 
    इसको तुम निर्मल बहने दो। 

    चाहते नहीं यदि सत्यानाश
    चाहते जीवन में यदि उल्लास 
    अपने हाथों अपने विनाश का
    तुम सूत्रपात क्यों करते हो?
    तारणहार, पावन धारा को
    नित अविरल बहते रहने दो।
    नदी नहीं, सुरसरि है यह तो,
    इसको तुम निर्मल रहने दो । 

    सुरसरि यदि इसे नहीं मानते
    एक "बड़ी नदी" तो मानोगे 
    लेकर नाम विज्ञान जगत का,
    कर लिया है तूने खूब विकास 
    कह विकास, स्व विनाश का
    कोई कपटी सिद्धांत रचते हो
    नदी नहीं, सुरसरि है यह तो 
    इसको तुम निर्मल रहने दो । 

    डॉ जयप्रकाश तिवारी भरसर, बलिया, उत्तर प्रदेश

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