उत्तर प्रदेश बलिया
इनपुट:सोशल मीडिया
बलिया उत्तरप्रदेश:--यह केवल लड़कियाँ नहीं, बल्कि 40-50 साल की महिलाएँ तक भी आजकल इस झांसे में फँस रही हैं।
🙏 मन्नत माँगने के नाम पर दरगाहों में जाने वाली महिलाएँ काले धागे की बेड़ी बंधवा रही हैं — लेकिन इसका असली मतलब और असर कोई नहीं समझ रहा।
🔗 बेड़ी बाँधने और काटने की रहस्यमयी रस्म क्या है..??
▪️ दरगाहों में एक "मान्यता" फैलाई जा रही है कि मन्नत माँगने वाली लड़की या महिला को पैर में काले धागे की बेड़ी बाँधनी होती है।
▪️ जब मन्नत पूरी हो जाए, तब जाकर उस बेड़ी को ख़ादिम (दरगाह के मुल्ला) से कटवाना पड़ता है।
▪️ लड़की तभी "मुक्त" मानी जाती है जब वो बेड़ी कटवा दे।
❗ यह रस्म दरअसल एक मानसिक और सांस्कृतिक बंधन है, जो एक बार बंध जाने के बाद हिंदू लड़की को अंदर से "मज़ार संस्कृति" से जोड़ देता है।
📍 इस टोटके की शुरुआत "कलियर शरीफ़" से हुई थी।
अब ये हर छोटी-बड़ी दरगाह में फैल चुका है — "बेड़ी बाँधो और कटवाओ" वाला धंधा।
▪️ भोली-भाली हिंदू लड़कियाँ इस जाल में आकर दरगाहों पर बेड़ी बाँध रही हैं
▪️ उन्हें लगता है कि ये कोई सामान्य धार्मिक आस्था है — जबकि ये कट्टरपंथी जाल का हिस्सा है।
🚫 यह केवल मानसिक जकड़न नहीं — ज्योतिषीय दृष्टिकोण से भी घातक है!
🔻 पैर में जहाँ पायल या बिछुए पहनते हैं, वह स्थान मंगल ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है।
🟥 मंगल ग्रह को काली वस्तुएँ ( जैसे काला धागा ) पसंद नहीं होतीं।
📛 पैर में काला धागा पहनना अशुभ माना गया है — इससे दांपत्य जीवन, स्वास्थ्य और मानसिक संतुलन पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
🔎 मैंने स्वयं कई लड़कियों और महिलाओं के पैरों में यह काला धागा देखा है...
उस समय शायद मुझे भी इसका रहस्य नहीं पता था, लेकिन अब समझ में आ रहा है कि यह कोई मासूम परंपरा नहीं, बल्कि हिंदू महिलाओं को इस्लामी सूफ़ी दरगाही सिस्टम में धीरे-धीरे खींचने की योजना है।
🚨 हिंदू लड़कियों और माताओं-बहनों से निवेदन है:
🙏 अपनी आस्था को विवेक से संचालित करें, अंधविश्वास से नहीं।
▪️ मन्नत माँगनी है तो अपने इष्ट से माँगिए —
▪️ मंदिर जाइए, गाय को रोटी दीजिए, गरीब की मदद कीजिए,
▪️ लेकिन दरगाहों की बेड़ियाँ मत बाँधिए!
❌ जो रस्म आपको मन से गुलाम बनाती है, वो आस्था नहीं, मानसिक बंधन है।
📣 जागरूक रहे, अपने परिवार की सुरक्षा करे।