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    कहानी का शिर्षक "जबाब":धनंजय शर्मा

    उत्तर प्रदेश बलिया 
    इनपुट: हिमांशु शेखर 


    बलिया उत्तरप्रदेश:---कई दिनों तक अनुपस्थित रहने के बाद वह उस दिन पढ़ने आया था। बात गाली नहीं देने की हो रही थी। किसी लड़के ने बताया, 'विक्की अपने पापा को गाली देता है।' मैं उसके पास पहुंचा और गुस्से से भरे चेहरे के साथ पूछा। उसने कहा, 'सर वो मम्मी को शराब पीकर मारते हैं तब मैं मम्मी के पीछे छिपकर उनको गाली देता हूं, अब से नहीं दूंगा। मैंने किसी फिल्मी सीन को याद कर उसकी मां और बाप के मारपीट को सोचा और पता नहीं क्यों विक्की में मुझे कोई बाग़ी फि़ल्मी कैरेक्टर नजर आया। तब से मुझे उससे विशेष सहानुभूति हो गई थी। 
    पिछले कुछ दिनों से वह पढ़ने नहीं आता था। गांव भ्रमण के दौरान मिलता और कल से आने का वादा करता पर अगले दिन भी वह गैरहाजिर ही रहता था। बच्चों से पूछों तो जवाब मिलता, सर वो सनई के बागीचे में जाता है वहीं रहता है और शाम को वापस आता है। मेरे मन में वो आता। मैं सोचता वह बागीचे में शहतूत तोड़ रहा होगा और खा रहा होगा, फिर यह कि वह आम या फिर महुआ तोड़ रहा होगा या अमरूदों को खा रहा होगा। मन में मेरे वह अचानक आता खेलता-कूदता, खाता-मुस्कुराता। मस्त सा मन लिए मस्ती करता।

    एक दिन नये नामांकन के लिए मैं गांव में घूम रहा था। घूमते-घूमते मैं उसके घर के पास पहुंचा फिर सोचा वह तो होगा नहीं लेकिन फिर भी एक बार चल कर देख लेता हूं। गांव के किसी से बात करते उसने मेरी आवाज़ पहचान लिया और बिजली जाने की गति से वह अपने घर से फरार हो गया। उसके घर पहुंचने पर उसकी मां ने कहा, अभी तो यही था, मेरे नहाने के लिए हैण्ड पम्प से पानी भर रहा था। लगता है कि आपकी आवाज़ पहचान कर भाग गया।
    मैंने उसकी मां को देखा फिर हैण्ड पम्प के पास की जगह को वहां पत्थरों के कई टुकड़ों को मिला कर कुल ढ़ाई फुट लम्बा और करीब दो फीट चौड़ा जमीन ढ़ंक कर चबूतरा बनाया गया था। पास बहती नाली के पास पुदीने का झुंड लहलहा रहा था। करीब पांच फीट दूर केले का एक पौधा और सात-आठ फुट दूर गुड़हल का एक पेड़ लाल फुलों से खिल उठा था। उसका नया घर ईंटों को सिर्फ के ऊपर एक रख कर बनाया गया था उसकी जुड़ाई नहीं की गई थी। जिसके ऊपर एक पुराने टिन के दो करकट लगें थें। उसके बगल में खुला जगह था जहां पर मिट्टी का एक चुल्हा बना था जिसे मिट्टी के लेप से लेपा गया था। उसके बगल में एक ढ़ह चुका एक कमरा था शायद वह उसका पुराना घर था। हां आंगन में ही करीब एक फुट ऊंचा और करीब डेढ़ फुट चौड़ा एक मिट्टी का घर था जिसमें दोनों तरफ लोहें की जाली लगी थी जिससे दो-तीन खरगोश झांक रहे थे। आंगन में एक कुत्ता पैर पसार कर ऊंघ रहा था।करीब आधे कट्ठे में बना उसके पूरे घर की जमीन मिट्टी के लेप से लेपी गई थी। आंगन में ही पूराने टूटे घर की बची दीवार पर लगी एक खूंटी पर एक पिंजड़े में तोता था जो कुछ बोल रहा था। मुझे उसकी भाषा समझ नहीं आई पर शायद वह मुझसे रहा था कि तुम कितने जानवरों के पेट भरते हों। 

    मुझे जवाब देते नहीं बन पा रहा था लिहाज़ा मैं जल्दी से वहां से वापस आ गया।
    धनंजय शर्मा    बलिया, उत्तरप्रदेश।

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