उत्तर प्रदेश बलिया
इनपुट:सोशल मीडिया
बलिया :--- जहाँ हम ‘बेटी बचाओ’ का नारा लगाते हैं, वहीं बैरिया से आई यह खबर हमारी आत्मा को झकझोर देने वाली है। जिस जगह को मां अंबे जैसे पवित्र नाम से जाना जाता है, वही स्थान अब मासूम बेटियों के लिए ‘सजा-ए-मौत’ का ठिकाना बन गया है। यह कोई फिल्मी कहानी नहीं, बल्कि एक कड़वी सच्चाई है, जहां बेटियों को जन्म लेने से पहले ही ‘अवैध स्कैन’ के जरिये मार दिया जाता है।
सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार बैरिया में ऐसे तमाम अल्ट्रासाउंड सेंटर है जिनका नाम तो पवित्र है पर लेकिन काम अमानवीय। स्वास्थ्य विभाग के द्वारा छापेमारी तो की जाती है लेकिन सामने आए तथ्यो को जान आपके पैरो तले जमीन खिसक जायेगा। न कोई पंजीकरण रजिस्टर, न मरीजों का रिकॉर्ड, और न ही कोई डॉक्टर। लेकिन अल्ट्रासाउंड मशीन चालू हालत में मिली—जैसे किसी कोख में पलती बेटी की सांसें गिन रही हो।
बेटी है और फिर मौत का आदेश
बैरिया जैसे सामाजिक रूप से संवेदनशील इलाके में जब कोई मां इस केंद्र पर आती है, तो जैसे ही स्क्रीन पर बच्ची की पहचान होती है, वहां कोई आंसू नहीं बहता, कोई खुशी नहीं मनाई जाती—बल्कि उसी पल उसका जीवन छीन लेने का निर्णय ले लिया जाता है।
बैरिया में अल्ट्रासॉउन्ड का यह जाल केंद्र कानून का नहीं, मानवीयता का भी अपमान कर रहा है। पीसीपीएनडीटी एक्ट की धज्जियां उड़ाते हुए यहाँ सेंटर उन हजारों बच्चियों के सपनों को खत्म कर रहा है, जिन्हें अभी आंखें खोलनी भी नहीं आतीं।
देवी के नाम पर धब्बा
कागज़ों में एक संस्थान ‘मां अंबे’ के नाम पर है, लेकिन जो यहां होता है, ऐसा सिर्फ यहाँ पर ही नही बल्कि तमाम सेंटरो पर होता है। वह किसी यमराज की अदालत से कम नहीं।
क्या मां अंबे, जो सृजन और शक्ति की प्रतीक हैं, उनके नाम पर हो रही इस नृशंसता से हम सबकी आत्मा नहीं कांपती?
क्या कभी उन माताओं की चीखें सुनाई देती हैं, जो मजबूरी में अपनी ही कोख को कब्र बना बैठती हैं?
स्थानीय लोगों से मिली जानकारी के अनुसार स्वास्थ्य विभाग द्वारा कई बार छापेमारी कर मशीन को सीज तो किया जाता है लेकिन पुनः अल्ट्रासॉउन्ड उसी जगह संचालित होने लगता है। विभागो द्वारा कभी कभी सेंटर को बंद कराया जाता है। लेकिन क्या एक सेंटर बंद करने से वो सोच बंद हो जाएगी, जो आज भी बेटी को बोझ समझती है? यह सिर्फ एक मेडिकल सेंटर की बात नहीं, यह एक सोच की लड़ाई है। एक मानसिकता की बीमारी है, जिसे इलाज से ज्यादा इंसानियत की ज़रूरत है। अब सवाल उठाने का वक्त है, कब तक बेटियों को पैदा होने से पहले ही मार दिया जाएगा? क्या हमारी चुप्पी भी इस अपराध की भागीदार नहीं बन चुकी है, और सबसे जरूरी क्या हम उस देवी से नज़र मिला पाएंगे, जिसे नवरात्रि में पूजते हैं, लेकिन उसकी ही जैसी बेटियों को कोख में खत्म कर देते हैं, अब वक्त है सिर्फ कार्रवाई का नहीं, चेतना का। इस समाज को तय करना होगा कि हम कैसी विरासत छोड़ना चाहते हैं—एक ऐसी दुनिया, जहां बेटियों को बराबरी का हक़ मिले, या एक ऐसी ज़मीन, जो मासूम बच्चियों की कोख में ही कब्रगाह बन जायेगा। हालांकि उपरोक्त खबर में अवैध अल्ट्रासॉउन्ड सेंटर संचालन की पुष्टि यह शोसल मिडिया प्लेटफार्म नही करता है। इस खबर में जानकारी देने वाले का नाम सुरक्षा की दृष्टि से छुपाया गया है।