उत्तर प्रदेश बलिया
इनपुट: हिमांशु शेखर
पूर्व प्राचार्य एवं पूर्व शैक्षिक निदेशक,जननायक चन्द्रशेखर विश्वविद्यालय,बलिया,
बलिया उत्तरप्रदेश:---जनसंख्या वृद्धि एक तरफ जहां हमारे लिए अनेक समस्याएं उत्पन्न कर रही है, वहीं दूसरी तरफ यह जनसंख्या वृद्धि 'मानव संसाधन' के रूप में हमारे लिए वरदान भी साबित हो सकती है, बशर्ते कि इसका समुचित उपयोग किया जाय।
किसी भी क्षेत्र की जनसंख्या वृद्धि उसके सामाजिक स्तर, आर्थिक विकास स्तर, सामाजिक जागरूकता, सांस्कृतिक आधार, ऐतिहासिक घटनाक्रम एवं राजनीतिक विचारधारा की सूचक होती है। एक तरफ जनसंख्या वृद्धि जहां मानव जाति के लिए खतरे की घंटी है,वहीं दूसरी तरफ संसाधन का आधार भी है। बशर्ते कि उसका समुचित एवं नियोजित उपयोग किया जाय। जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न समस्याओं में सामाजिक समस्या, आर्थिक समस्या एवं पर्यावरणीय समस्या मुख्य है,जो सीधे रूप से पूरे समाज को प्रभावित करती है। वर्तमान समय में जनसंख्या वृद्धि की समस्या न केवल बलिया जनपद के लिए , बल्कि भारत सहित सम्पूर्ण विश्व के लिए एक चुनौती बनी हुई है।
बलिया जनपद में जनसंख्या वृद्धि -
यदि हम बलिया जनपद की जनसंख्या वृद्धि को देखें तो अध्ययन से यह तथ्य सामने आता है कि प्रारंभिक दो दशकों में बलिया जनपद की जनसंख्या में कमी आई है , किंतु उसके बाद के दशकों अर्थात् 1931 - 2011 तक जनसंख्या में लगातार वृद्धि हुई है। इस तरह 1901 से लेकर 2011 बलिया जनपद की जनसंख्या में 195. 88 प्रतिशत की वृद्धि हुई है,जो काफी अधिक है। यही नहीं यदि 2021 की अनुमानित जनसंख्या को देखें तो 2011 - 2021 के दौरान भी बलिया जनपद की जनसंख्या में वृद्धि हुई है। स्पष्ट है कि वैश्विक महामारी कोरोना के चलते 2021 में जनसंख्या की गणना नहीं हो पाई, किंतु 2021 की जो अनुमानित जनसंख्या घोषित की गयी है, वह 35,63,751 है, जबकि 1901 में बलिया जनपद की जनसंख्या मात्र 9,89,420 थी, जो 2011 तक बढ़कर 32,39,774 हो गयी है और 2021 तक बढ़कर 35,63,751 हो जाने का अनुमान लगाया गया है।एक अन्य अध्ययन के अनुसार 2021 की अनुमानित जनसंख्या 37.17 लाख मानी गयी है।इस अध्ययन के अनुसार 2022, 2023 एवं 2024 में बलिया जनपद की अनुमानित जनसंख्या क्रमश: 37.63 लाख, 38.03 लाख एवं 38.37 लाख हो जायेगी।बलिया जनपद में हो रही जनसंख्या की इस वृद्धि ने जनपद के विकास को कुंठित कर दिया है। इस जनसंख्या वृद्धि ने अनेक समस्याओं को जन्म देकर मानव जीवन के समक्ष अनेक तरह का संकट उत्पन्न कर दिया है।
File Photo:डाॅ० गणेश पाठक ( पर्यावरणविद् )पूर्व प्राचार्य एवं पूर्व शैक्षिक निदेशक,जननायक चन्द्रशेखर विश्वविद्यालय,बलिया, उत्तरप्रदेश
जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न हो रही हैं अनेक सामाजिक विकृतियां-
ऐसा देखने में आ रहा है कि जनसंख्या वृद्धि से सामाजिक ढांचा बदलता जा रहा है एवं समाज में अनेक विसंगतियां उत्पन्न हो रही हैं। आज आवश्यकता इस बात की है कि इस बढ़ती हुई जनसंख्या का उपयोग मानव संसाधन के रूप में करते हुए इसे रचनात्मक कार्यों में लगाया जाए, तभी क्षेत्र एवं समाज का भला हो सकेगा, अन्यथा भौतिक , सामाजिक एवं आर्थिक विकृतियों के दल- दल से निकलना मुश्किल हो जायेगा।
जनसंख्या वृद्धि से हो रही है बेरोजगारी में बेतहाशा वृद्धि -
जनसंख्या वृद्धि से बेरोजगारी में बेतहाशा वृद्धि हो रही है,जिसके चलते बेरोजगार युवा पीढ़ी अनैतिक कार्यों की तरफ बढ़ रही है। शिक्षित बेरोजगार युवक रोजगार न मिलने के कारण आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु अनैतिक कार्यों को अंजाम देने लगे हैं,जिससे नशाखोरी,चोरी,डकैती,छिनैती,अनाचार ,दुराचार, व्यभिचार आदि बुराईयां समाज को जकड़ती जा रही हैं,जिससे हमारा सामाजिक ढांचा खतरे में पड़ता जा रहा है। जनसंख्या वृद्धि के कारण सामाजिक विभेदी करण एवं सामाजिक ढांचा बदलता जा रहा है एवं समाज मेंअनेक विसंगतियां उत्पन्न होती जा रही हैं।
जनसंख्या वृद्धि का आर्थिक स्वरूप पर प्रभाव - जनसंख्या वृद्धि ने अनेक आर्थिक समस्याओं को जन्म दिया है। जनसंख्या वृद्धि ने मानव जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित किया है,
जिनमेंभोजन,आवास , स्वास्थ्य एवं शिक्षा, भौतिक एवं सांस्कृतिक पर्यावरण , वांक्षित साम्य, लैंगिक असमानता, दैनिक जीवन में सहभागिता, सामाजिक प्रतिष्ठा एवं सुरक्षा आदि मुख्य है। जनसंख्या वृद्धि ने एक तरफ जहां जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित किया है ,वहीं दूसरी तरफ उसमें असंतुलन की स्थिति भी उत्पन्न हो गयी है, जिससे कि ब सामाजिक - आर्थिक स्थिति पूर्णरूपेण प्रभावित हुई है।
जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न उपर्युक्त समस्याओं के समाधान के संदर्भ में यही कहा जा सकता है कि जनसंख्या वृद्धि को समस्या न मानकर, उसे मानव संसाधन मानते हुए हो रही जनवृष्टि का सकारात्मक उपयोग किया जाय। आज अपने देश की जनसंख्या में युवा वर्ग की जनसंख्या विश्व में सबसे अधिक है, जिसमें अपार ऊर्जा छिपी हुई है। इस ऊर्जा का नियंत्रित, नियोजित एवं सकारात्मक उपयोग कर जनसंख्या वृद्धि को अभिशाप की जगह वरदान में बदला जा सकता है।
यह स्वाभाविक है कि सभी को रोजगार मुहैया नहीं कराया जा सकता है, किंतु सभी के लिए आजीविका का कोई न कोई समाधान तो करना ही होगा। इसके लिए जीविकोपार्जन के साधन जुटाने होंगें। उसका उचित एवं नियोजित तरीके से ऐसा आवंटन करना होगा कि सबके लिए आजीविका उपलब्ध हो सके। हमें कृषि आधारित लघु एवं मध्यम कुटीर उद्योगों का विकास कर अधिक से अधिक रोजगार मुहैया कराया होगा। इससे जनसंख्या प्रवास भी रूकेगा। अन्यथा यह जनसंख्या वृद्धि विकराल रूप धारण कर लेगी एवं सामाजिक - आर्थिक ढांचा ऐसा चरमरा जायेगा कि फिर उसको संभालना मुश्किल हो जायेगा।