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    Cricket:क्या अब वक्त नहीं आ गया कि क्रिकेट में चोटिल खिलाड़ियों के लिए "वास्तविक रिप्लेसमेंट" की अनुमति दी जाए?


    खेल समाचार 
    इनपुट: खेल जगत 

    खेल समाचार:---क्रिकेट लगातार बदल रहा है—फॉर्मेट्स बदल रहे हैं, नियम बदल रहे हैं, तकनीक बदल रही है। फिर एक ऐसा नियम क्यों अब भी जस का तस बना हुआ है, जो गंभीर रूप से चोटिल खिलाड़ी को रिप्लेस करने की अनुमति नहीं देता?

    आज अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में सिर्फ एक कंकशन सब्स्टीट्यूट (सिर की चोट की स्थिति में) का नियम है, जिसमें अगर किसी खिलाड़ी के सिर में चोट लगती है, तो टीम को उसकी जगह समान क्षमता वाले खिलाड़ी को मैदान पर उतारने की अनुमति मिलती है। लेकिन सवाल यह है—क्या सिर ही शरीर का एकमात्र महत्वपूर्ण हिस्सा है? क्या कलाई की हड्डी टूटने पर, या पैर की अंगुली में फ्रैक्चर हो जाने पर खिलाड़ी का योगदान कम अहम हो जाता है?

    मैनचेस्टर टेस्ट में ऋषभ पंत को पैर में गंभीर चोट लगी। वह 37 रन बनाकर सेट हो चुके थे और साई सुदर्शन के साथ एक अहम साझेदारी निभा रहे थे। लेकिन एक अनावश्यक रिवर्स स्वीप खेलने के चक्कर में उनके पैर पर गेंद लगी और वह मैदान से बाहर चले गए—इतने असहाय कि खड़े होने के लिए भी उन्हें साथियों की मदद लेनी पड़ी। इस चोट ने न सिर्फ एक पारी को तोड़ा, बल्कि टीम इंडिया की रणनीति को भी झटका दिया।

    यही नहीं, लॉर्ड्स टेस्ट में इंग्लैंड के युवा स्पिनर शोएब बशीर टूटी हुई उंगली के बावजूद दर्द से कराहते हुए गेंदबाजी करते रहे। क्यों? क्योंकि नियम उन्हें आराम करने या रिप्लेस होने की इजाजत नहीं देते। क्या यह खिलाड़ियों की सेहत से समझौता नहीं है?

    क्रिकेट में जब सुपर सब, इम्पैक्ट प्लेयर और DRS जैसे बड़े बदलाव किए जा सकते हैं, तो क्या यह समय नहीं आ गया है कि गंभीर रूप से चोटिल खिलाड़ियों को भी रिप्लेस करने की अनुमति दी जाए—चाहे चोट सिर में हो या शरीर के किसी और हिस्से में?

    ICC को चाहिए कि वह भविष्य की क्रिकेट को ध्यान में रखते हुए इस नियम पर गंभीरता से विचार करे। क्योंकि एक खिलाड़ी के चोटिल हो जाने से केवल उसका ही नहीं, पूरी टीम का संतुलन बिगड़ता है। और खेल का मूल मंत्र ही तो यही है—प्रतिस्पर्धा को न्यायपूर्ण बनाए रखना।

    इसलिए जरूरी है कि क्रिकेट अब उस मोड़ पर पहुंचे, जहां खिलाड़ी के योगदान को सिर्फ उसकी मौजूदगी से नहीं, बल्कि उसकी सुरक्षा और दीर्घकालिक फिटनेस से भी मापा जाए।
    क्योंकि खेल तभी महान बनता है जब उसमें खिलाड़ियों की कद्र हो—चोटिल होकर नहीं, पूरे होकर।

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