बिहार पटना
इनपुट:सोशल मीडिया
पटना बिहार:--राजधानी पटना के पारस अस्पताल में उस वक्त हड़कंप मच गया जब पांच हमलावर दिनदहाड़े अस्पताल में दाखिल हुए. वो सीधे दूसरी मंजिल पर बने कमरे नंबर 209 का गए. यहां भर्ती मरीज चंदन मिश्रा पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाईं और बेहद इत्मिनान से फरार हो गए.
यह कोई आम वारदात नहीं थी, जिसे मारा गया वो बक्सर का कुख्यात अपराधी चंदन मिश्रा था. इस पर दर्जनों हत्याओं के आरोप हैं और जिसे कोर्ट उम्रकैद की सजा सुना चुकी थी.
जांच के दौरान जो खुलासा हुआ उसने इस मर्डर केस को और चौंकाने वाला बना दिया. यह हत्या किसी गैंगवार या अंजान दुश्मनी का मामला नहीं था, बल्कि इसे अंजाम दिया गया था चंदन के ही पुराने साथी शेरू के इशारे पर जो कभी उसका सबसे करीबी था.
कैसे हुई थी दोस्ती की शुरुआत
बक्सर जिले के सेमरी बड़ा गांव का रहने वाला शेरू का असली नाम ओंकार नाथ सिंह है. शेरू और चंदन मिश्रा एक समय में अच्छे दोस्त थे. दोनों का मेल क्रिकेट के मैदान में हुआ था और यही दोस्ती आगे चलकर खूनी रिश्ते में बदल गई. साल 2009 में क्रिकेट खेलते वक्त जब अनिल सिंह नामक युवक से विवाद हुआ तो दोनों ने मिलकर उसकी हत्या कर दी. दोनों नाबालिग थे इस वजह से जल्द ही बाल सुधार गृह से बाहर आ गए.
बाहर आते ही बने संगठित अपराधी
रिहाई के बाद दोनों ने मिलकर अपना गैंग तैयार किया. फिर रंगदारी और हत्या का सिलसिला शुरू हुआ. अपराध की दुनिया में पैसे के साथ-साथ ताकत भी बढ़ती गई. नए लड़के जुड़ते गए. हथियार जमा होते गए. देखते ही देखते बक्सर और आसपास के इलाकों में इनका आतंक स्थापित हो गया.
2011 में छह मर्डर
साल 2011 दोनों अपराधियों के लिए सबसे खूनी साल रहा. मार्च से अगस्त के बीच में इनके गैंग ने छह बड़ी हत्याएं कीं. इनमें मोहम्मद नौशाद, भरत राय, जेल क्लर्क हैदर अली, शिवजी खरवार, मोहम्मद निजामुद्दीन और चूना व्यापारी राजेंद्र केसरी शामिल थे.
दोस्ती में दरार की शुरुआत कैसे हुई
चूना व्यापारी राजेंद्र केसरी ने रंगदारी देने से इनकार किया तो 21 अगस्त 2011 को उसकी हत्या कर दी गई. हत्या से एक दिन पहले ही चंदन मिश्रा ने धमकी दी थी कि वह उसे जान से मार देगा और उसने ऐसा ही किया. इस हत्याकांड ने चंदन और शेरू के रिश्तों में दरार डाल दी. पैसों के बंटवारे और जातिगत समीकरणों के कारण दोनों के रास्ते अलग हो गए. इसके बाद दोनों ने अपने-अपने अलग गैंग बना लिया.
गिरफ्तारी और सजा के बाद भी जारी रहा आतंक
राजेंद्र केसरी की हत्या के बाद दोनों अपराधी कोलकाता भाग गए. यहां दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया. इसके बाद दोनों को बक्सर पुलिस ने कोर्ट में पेश किया. इसके बाद उन्हें पहले भागलपुर और फिर पटना के बेऊर जेल में शिफ्ट किया गया. जेल में रहकर भी उनका अपराधी नेटवर्क चालू रहा. केसरी मर्डर केस में कोर्ट ने शेरू को फांसी और चंदन को उम्रकैद की सजा सुनाई. हालांकि बाद में हाईकोर्ट ने शेरू की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया.
चंदन मिश्रा ने कोर्ट में भी पुलिस का हथियार छीनकर फायरिंग कर दी थी और फरार हो गया था. बाद में आरा पुलिस ने उसे फिर पकड़ा था.
चंदन अस्पताल में मारा गया
चंदन मिश्रा पाइल्स के इलाज के लिए कोर्ट से पैरोल पर बाहर आया था. उसकी पेरोल 18 जुलाई को खत्म होने वाली थी. लेकिन उससे ठीक एक दिन पहले यानी 17 जुलाई को अस्पताल में उसे गोलियों से भून दिया गया. शेरू गैंग के पांच लोग अस्पताल में घुसे और फिल्मी अंदाज में उसकी हत्या करके फरार हो गए.
पुलिस के बयान पर सवाल
इस वारदात ने बिहार की कानून-व्यवस्था को कठघरे में खड़ा कर दिया है. बता दें कि घटना से ठीक एक दिन पहले को बिहार पुलिस ने शूटर सेल के गठन की घोषणा की थी, ताकि संगठित अपराध पर लगाम लगाई जा सके. लेकिन 24 घंटे भी नहीं बीते और राजधानी के हाई-सेक्योरिटी अस्पताल में चंदन की हत्या हो गई. इस पर जब एडीजी से सवाल किया गया तो उन्होंने बयान दिया, “बिहार में मई, जून और जुलाई में तो हत्याएं होती ही हैं.”
एनडीए में शामिल चिराग पासवान ने एडीजी के बयान पर सवाल उठाते हुए कहा, “बिहार पुलिस के ADG हेडक्वार्टर कुंदन कृष्णन का बयान अत्यंत निंदनीय और दुर्भाग्यपूर्ण है. हमारे अन्नदाता किसानों को अपरोक्ष रूप से हत्यारा बताना न सिर्फ उनके मान-सम्मान का अपमान है बल्कि उनके त्याग और परिश्रम का भी अनादर है. अपराधियों पर शिकंजा कसने के बजाय बिहार पुलिस का ध्यान बेवजह के बयानों पर ज्यादा है, जो बेहद चिंताजनक है. प्रशासन को अपनी प्राथमिकता स्पष्ट करनी चाहिए.”