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    God:कांवड़ यात्रा से अश्वमेध यज्ञ के समान फल मिलता है श्रध्दा का महासावन ही शिव के प्रति शरणागति ही सावन

    उत्तर प्रदेश वाराणसी 
    इनपुट:सोशल मीडिया 


    वाराणसी:---कांवड़ यात्रा से अश्वमेध यज्ञ के समान फल मिलता है श्रध्दा का महासावन ही शिव के प्रति शरणागति ही सावन है में कांवड़ यात्रा का फल अश्वमेध यज्ञ के बराबर फलदाई है कांवड़ की परम्परा को लेकर पुराणों में लोक कथाओं में अनेक कथाएं हैं जिसमें एक कथा समुंद्र मंथन से निकले हलाहल विष को जब शिव जी ने पिया तो उनके अन्दर की जठराग्नि को शांत करने के लिए इन्द्र देव ने जल बरसाना शुरू किया जैसा कि आज भी तपती जेठहरी की गर्मी के बाद प्रकृति अब भी सृष्टि में वृष्टि का विधान है जैसा कि आप सभी जानते है भगवान विष्णु चातुर्य मास शयन के लिए क्षीणसागर में  निद्रा की देवी आदि शक्ति अधिन हो कर शयन करते हैं सृष्टि का सारा कार्य देवाधिदेव महादेव के अधीन होता है।

     ऐसे समय विष के कारण तप्त जठराग्नि प्रदीप्त होती है और उसके कारण शिव भक्त जलाभिषेक किया करते हैं कहा जाता है कि लंकाधिपति रावण और भगवान परशुराम ने शिव की आराधना के लिए जल लेकर कांवड़ यात्रा शुरूआत की थी वहीं दूसरी कथा में माता सती अपने पिता के घर उत्सव में सम्मिलित होने गई थी अपने पति भगवान भोलेनाथ को उस उत्सव में यज्ञ भाग नहीं दिया गया था जिससे नाराज होकर पिता दक्ष के यज्ञ में अपनी आंहुति दे दी यज्ञ में आहुति देने से पहले उन्होंने भगवान शिव से अगले जन्म में पति के रूप में पाने वरदान मांगा था।

     अगले जन्म में हिमाचल की रानी नैना देवी गर्भ से अवतरित हुई घोर तपस्या करने के बाद भगवान शिव को प्रसन्न कर विवाह किया जब पहली बार शिव जी अपने ससुराल हिमाचल पहुंचे तो उनका स्वागत जलाभिषेक से किया गया था तब से यह परम्परा शुरू हुई है ऐसा पुराणों में वर्णित है कांवड़ यात्रा केवल जलाभिषेक ही नहीं बल्कि पुनरावृत्ति है जिनके जटाओं से निकली गंगा को पुनः शिव को अर्पित करना धर्म,सेवा,तप,का संगम है जो गंगा भगवान विष्णु के चरणों से निकल कर महादेव के जटा में समायी वहीं जल फिर से भरकर अर्पित करना यह चक्र पूर्णता है यह केवल जलाभिषेक नहीं बल्कि शिव और गंगा की संयुक्त आराधना है कांवड़ यात्रा एक अद्भुत और शुद्धता, शिव को समर्पित यात्रा है जहां कंधे पर गंगा जल से भरी कांवड़ शिव भक्त हर हर महादेव के गुंज के साथ शिव के धाम पहुंचते हैं।

     यह कोई साधारण यात्रा नहीं है यह श्रध्दा, तपश्या, शिवत्व, चिंतन परम्परा है जो हर सावन में पुनः जीवंत होती है भारतीय सनातन संस्कृति में शिव एक ऐसे देवता हैं जो निर्विकार, निराकार होते हुए भी साकार में पुज्यमान है जिसका जलाभिषेक करना एक साधना है जो आत्मउत्थान की साधना है जैसे जीव आत्मा है गुरु महात्मा है सर्वोपर परमात्मा है इस आत्मा का परमात्मा से मिलन की साधना है इसे गंगा जल की पुर्नावृति न समझे यह एक अश्वमेध यज्ञ है यह भारतीय सनातन संस्कृति की समवेत श्रध्दा का प्रतीक है कांवड़ यात्रा केवल धार्मिक कर्म तक सिमित नहीं है बल्कि सामाजिक सांस्कृतिक संवाद सम्वर्द्धन है।

     जिसमें जल संरक्षण,श्रम संयम, और योग साधना है जिससे शरीर तपता है मन शिव में रमता है जिससे आत्मा निर्मल होती है जब कांवड़ यात्री झूंड के झूंड केसरिया रंग में शिवालयों को जाते हैं तो लगता है कि मानो स्वर्ग धरती पर प्रवाहमान है ऐसी अद्भुत चेतना धर्म परम्परा का अद्भुत संगम है इस समय धरती पर हरियाली छा जाती है आकाश में मेंघ गर्जना करते हुए शिव का जलाभिषेक करने को आतुर दिखते हैं ऐसे में शिव भक्तों के मन में भक्ति की बाढ़ आ जाती है जिससे आत्मा निर्मल हो जाती है यह कांवड़ यात्रा नहीं यह एक यज्ञ है पृथ्वी पर मानव आकाश में मेंघ उत्तर से दक्षिण पर्वतों से सागर सभी शिवमय हो जाते हैं चारों तरफ हर हर महादेव,बोल बम के नारों से पूरी सृष्टि शिवमय हो जाते हैं जिसे केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं बल्कि सनातन संस्कृति की आत्मउत्सव है जिसमें सभी अपने सामर्थ्यानुसार यज्ञ की आहुति करते हैं जिससे अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है।

    सावन मास केवल धर्म का पर्व नहीं यह सेवा का संगम है जिसमें  कांवरियों के स्वागत में सेवा शिविर,भंडारा शिविर,चिकित्सा शिविर, जलपान शिविर, पुलिस प्रशासन, स्वयं सेवी संस्थाएं,समान भाव से अपनी अपनी आहुति देते हैं यही सनातन संस्कृति है जिसमें युवा, बच्चे,बृध्द, महिलाएं सभी इस धार्मिक उत्सव में सम्मिलित होते हैं यह केवल धार्मिक उत्सव नहीं बल्कि राष्ट्रीय एकता का पाठशाला है जिसमें सम्मिलित हो कर पूण्य के भागीदार बनें यह केवल जलाभिषेक तक सिमित नहीं है आज के परिवेश में अपने जीवन में त्याग, तपस्या, शहनसीलत, करुणा, लाकर आत्मा को स्वच्छ रखने का समय है व्यसनों दूर रहने का समय सावन मास है जिसे आत्मसात करना ही यज्ञ है।

     इसलिए कहते हैं कि कांवड़ यात्रा एक यज्ञ है जिसे प्राप्त करने के लिए इस मास का लोग वर्ष पर्यन्त इन्तजार करते हैं।वैसे काशी में द्वादश ज्योतिर्लिंग स्थापित है मान्यता है कि बारह ज्योतिर्लिंग यहां काशी साक्षात मूल रूप में मौजूद हैं भारतीय सनातन संस्कृति में धर्म एवं तैंतीस कोटि देवी देवताओं में भगवान भोलेनाथ ही देवाधिदेव महादेव की उपमा से अलंकृत माने गये है यह सावन मास भूत-भावन भगवान शिव को समर्पित है भगवान शिव की आराधना के लिए सावन मास अतिविशिष्ट माना गया है शिवालय सर्वत्र प्रतिष्ठित है जिनके दर्शन मात्र से भूलोक में एक शांति की प्राप्ति होती है जिसे जलाभिषेक करने से भक्तों को अश्वमेध यज्ञ के बराबर फल प्राप्त होती है।

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