उत्तर प्रदेश अयोध्या
इनपुट:संतोष मिश्रा
अयोध्या :---रामनगरी की गलियों में दिखती भीड़ के पीछे एक गहरी चुप्पी छिपी है—यह चुप्पी छोटे और मिडिल क्लास व्यापारी की है। दुकानों के शटर खुले हैं, लेकिन उन दुकानों के भीतर उम्मीदें जैसे ताले में बंद हो गई हैं।कई-कई दिन ऐसे गुजर जाते हैं जब बवानी (सेल) तक नहीं होती।दुकान खुलती है और खर्चे जुड़ते जाते हैंमोबाइल का बिल, दुकान की बिजली, किराया, आने-जाने का किराया, बच्चों की पढ़ाई और घर का राशन—लेकिन कमाई का नाम तक नहीं।एक व्यापारी ने आँखें भरते हुए कहा हमसे अच्छा तो वो मज़दूर है जो ₹600 लेकर जा रहा है… एक मिस्त्री है ₹800 लेकर जा रहा हैऔर हम? हम तो ये सोचते हैं कि अगर आज ₹10 का मुनाफ़ा भी आ जाए तो बहुत बड़ी बात हो जाएगी।”ऑनलाइन कारोबार ने उनकी रीढ़ तोड़ दी है। लोग सीधे इंटरनेट पर खरीदारी कर रहे हैं और लोकल दुकानदार दिनभर खाली बैठे रहते हैं।हमारी मेहनत पर किसी की नजर नहीं पड़ रही… दिनभर दुकान पर बैठे रहते हैं, पर बिक्री नहीं होती।अब अयोध्या के ये व्यापारी बस यही उम्मीद कर रहे हैं कि सरकार उनकी तकलीफ़ समझे और कोई ऐसा रास्ता दे जिससे उनका व्यापार फिर से चल सके, ताकि उनकी ज़िंदगी फिर से पटरी पर आ सके।यह खबर सिर्फ अयोध्या के व्यापारियों की नहीं, बल्कि हर उस छोटे व्यापारी की आवाज़ है जो मेहनत करके भी जीने के लिए संघर्ष कर रहा है—और जिसके लिए ₹10 का मुनाफ़ा भी आज एक बड़ी जीत बन चुका है।