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    महिलाओं पर लाठीचार्ज के बाद CO प्रभात कुमार का ट्रांसफर, सोशल मीडिया पर विडियो वायरल

     

    उत्तर प्रदेश बलिया 
    इनपुट: अमीत कुमार गुप्ता 
    बांसडीह बलिया :--- 'बागी बलिया' यूँ ही नहीं कहलाता — यहां की मिट्टी में ही विद्रोह और अधिकार की लड़ाई की चिंगारी पनपी है। मंगल पांडे से लेकर चितू पांडे और चंद्रशेखर सिंह तक, यह धरती आज़ादी और हक़ की आवाज़ उठाने वालों को जन्म देती आई है। और आज भी, जब कहीं अन्याय होता है, बलिया की जनता चुप नहीं बैठती।

    हाल ही में बलिया के बांसडीह तहसील से एक वीडियो सोशल मीडिया पर आग की तरह फैला, जिसमें महिलाओं के साथ पुलिस के दुर्व्यवहार के दृश्य सामने आए। यह मामला तब तूल पकड़ गया जब वीडियो में क्षेत्राधिकारी (CO) प्रभात कुमार कथित रूप से पीड़ित परिवार को धमकाते हुए सुने गए। वीडियो में उनकी कही गई कथित बात — “18 साल से डीएसपी हूं, नेस्तनाबूत कर देंगे” — ने जनता और सोशल मीडिया दोनों में भारी रोष पैदा कर दिया।

    इससे पहले भी, बलिया में जिलाधिकारी कार्यालय के सामने छात्रों द्वारा निजी विद्यालयों की मनमानी फीस के खिलाफ आवाज़ उठाने पर कोतवाल बलिया द्वारा घसीट कर लें जाने की घटना सामने आई थी, जिसके बाद भारी विरोध के चलते सम्बंधित अधिकारी को लाइन हाज़िर किया गया था। इसी कोतवाली से जुड़े एक और मामले में एक पत्रकार द्वारा रिपोर्टिंग करने पर उस पर ही मुकदमा दर्ज कराया गया, जिससे जिले में पत्रकारिता की स्वतंत्रता पर भी सवाल उठने लगे।

    अब जब CO प्रभात कुमार को ट्रांसफर कर कानपुर के केंद्रीय वस्त्र भंडार में नियुक्त कर दिया गया है, तो यह माना जा रहा है कि प्रशासन ने जनता के आक्रोश और सोशल मीडिया पर बढ़ते दबाव को गंभीरता से लिया है। हालांकि, सरकार द्वारा यह कार्रवाई 'प्रशंसनीय सेवाओं' के इनाम स्वरूप है या विवादों से उपजी ज़िम्मेदारी तय करने की प्रक्रिया — यह बहस का विषय बना हुआ है।

    स्थानीय लोगों का कहना है कि अब बांसडीह के क्षेत्राधिकारी प्रभात कुमार कानपुर के केंद्रीय वस्त्र भंडार में करेंगे ड्यूटी। योगी सरकार द्वारा यह तोहफा उनके ईमानदारी से अच्छे कार्य, और लोगों को लाठियों से सेवा देने का बाद किया है।

    बलिया की जनता का कहना है कि यहां हर घर से एक बागी निकलता है, और हर अन्याय के खिलाफ यहां की आवाज़ कभी दबती नहीं। बांसडीह की महिलाएं, छात्रों और पत्रकारों के संघर्ष ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि बागी बलिया आज भी ज़िंदा है, जागरूक है और अत्याचार के खिलाफ डट कर खड़ा है।

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