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    Pooja:विश्‍वकर्मा पूजा :वास्तुशास्त्र के जनक का त्योहार- ईशान पाठक(कक्षा - 8)


    उत्तर प्रदेश बलिया 
    इनपुट: हिमांशु शेखर 

    बलिया उत्तरप्रदेश:---विश्‍वकर्मा जी को देवताओं के वास्तुकार, शिल्पकार और सृजनकर्ता माना जाता है।इन्हें सृष्टि के प्रथम इंजीनियर और वास्तुशास्त्र के जनक कहा जाता है।

    हर साल सितंबर महीने में (आमतौर पर 17 या 18 सितंबर को) विश्‍वकर्मा पूजा बड़े उत्साह से मनाई जाती है।यह हिंदुओं का एक बड़ा त्योहार है।

    भगवान विष्णु के जन्मों में भगवान विश्‍वकर्मा ने दिव्य लोक और अस्त्र-शस्त्र बनाए।त्रेतायुग में राम के लिए "सेतु" (रामसेतु) का निर्माण करने में उनका योगदान बताया जाता है।
    महाभारत काल में पांडवों का "इंद्रप्रस्थ नगर" भी उन्होंने ही बनाया था।
    इन्हें लोहार, बढ़ई, इंजीनियर, मजदूर, शिल्पकार और तकनीकी कार्य करने वाले लोग अपना आराध्य मानते हैं।

     विश्‍वकर्मा पूजा भाद्रपद मास के सूर्यकन्या संक्रांति के दिन (17/18 सितंबर) को मनाया जाता है। यह दिन सूर्य के कन्या राशि में प्रवेश के साथ विशेष माना जाता है।यह एक प्रकार से “श्रमिकों और तकनीकी पेशों” का वार्षिक पर्व है।

    फैक्ट्रियों, कारखानों, दफ़्तरों, दुकानों और इंजीनियरिंग संस्थानों में इसे बड़े धूम धाम से मनाया जाता है।औजारों, मशीनों, हथियारों और वाहनों की विशेष पूजा की जाती है।
    ग्रामीण क्षेत्रों में किसान अपने हल-बैल, औजार और मशीनरी को सजाकर पूजा करते हैं।शहरी क्षेत्रों में बड़ी-बड़ी इंडस्ट्री, कंपनियाँ और संस्थान सामूहिक रूप से भव्य आयोजन करते हैं।आम आदमी अपनी वाहनों या कोई प्रिय वस्तु को मिठाई चढ़ता है ,उसकी आरती उतरता है और इस प्रकार से विश्वकर्मा पूजा मानता है।


    File Photo of:ईशान पाठक

    विश्‍वकर्मा पूजा सुबह स्नान कर के साफ-सुथरे वस्त्र पहनकर की जाती है।भगवान विश्‍वकर्मा की प्रतिमा या तस्वीर को सजाकर स्थापित किया जाता है।औजारों, मशीनों और वाहनों को धोकर सजाया जाता है, उन पर सिंदूर, हल्दी और फूल चढ़ाए जाते हैं।नारियल, मिठाई, पान-सुपारी और प्रसाद चढ़ाया जाता है।पूजा के बाद यज्ञ और हवन का आयोजन होता है।कई जगह मेले और सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते हैं।

    भगवान विश्‍वकर्मा को सृजन और निर्माण का देवता माना जाता है।यह दिन श्रमिकों और कारीगरों को प्रेरित करता है कि वे अपने कार्य में लगन और निष्ठा बनाए रखें।औजारों और मशीनों की पूजा कर उनसे सुरक्षित, सफल और उत्पादक कार्य की कामना की जाती है।तकनीकी विकास और परिश्रम को सम्मान देने का प्रतीक है।

    कड़ी मेहनत करने वाले मजदूरों, तकनीशियनों और इंजीनियरों का उत्सव है ये।
    निर्माण कार्य और विज्ञान-तकनीक की शक्ति को आदर देना,समाज में परिश्रम, कौशल और नवाचार की भावना को बढ़ावा देना,कार्यक्षेत्र में उन्नति और समृद्धि की कामना करता है ये पर्व।

    पूजा के दिन अधिकांश लोग काम रोक देते हैं, मशीनें बंद रखी जाती हैं।अगले दिन से नई ऊर्जा और उत्साह के साथ कार्य की शुरुआत होती है।कुछ क्षेत्रों में पतंगबाज़ी की परंपरा भी जुड़ी है।कई फैक्ट्रियों और दफ़्तरों में सामूहिक भोजन (भंडारा/प्रसाद वितरण) होता है।


    यह त्योहार श्रमिकों और नियोक्ताओं को एक साथ जोड़ता है।सामाजिक एकता और भाईचारे का प्रतीक है।
    यह दिन केवल धार्मिक नहीं बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक उत्सव भी है।

    आज के युग में मशीनों और तकनीक की भूमिका बहुत बड़ी है।विश्‍वकर्मा पूजा हमें याद दिलाती है कि तकनीकी प्रगति भी भगवान के आशीर्वाद और मानव परिश्रम से संभव है।यह त्योहार श्रम और तकनीकी शिक्षा के महत्व को रेखांकित करता है।


    विश्‍वकर्मा पूजा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि श्रम, कौशल और तकनीकी विकास का उत्सव है।यह दिन हमें कार्य के प्रति सम्मान और लगन की शिक्षा देता है।भगवान विश्‍वकर्मा का आशीर्वाद पाकर हर व्यक्ति अपने काम में सफल और समाज में योगदानकारी बन सकता है।

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