उत्तर प्रदेश बलिया
अयोध्या :--अयोध्या जब से सरकार ने सीयूजी नंबर जारी किए हैं, यह भरोसा दिलाया गया था कि अब आम आदमी अपने मुद्दे सीधे अधिकारियों से साझा कर सकेगा। लेकिन अयोध्या में यह नंबर कुछ और ही साबित हो रहा है। मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश ने आदेश दिया था कि "अधिकारियों को जनता के फोन उठाने होंगे, न उठाएं तो कम से कम वापस कॉल करें और व्हाट्सएप संदेशों को देख कर तुरंत कार्रवाई करें।" लेकिन अयोध्या में अफसरों ने इस आदेश को कुछ यूं समझा कि "फोन ना उठाना एक विशेषाधिकार है।"
कभी सोचा है, फोन बजता है, लेकिन अफसरों का दिल नहीं धड़कता? फोन की घंटी बज रही होती है, लेकिन अफसर अपनी चाय की चुस्की और मीटिंग के कागज़ों में पूरी तरह खोए रहते हैं। यही नहीं, व्हाट्सएप पर आई शिकायतों का जवाब कुछ इस तरह मिलता है, जैसे "आपने भेजा है, लेकिन हम इस पर ध्यान नहीं दे सकते।"
अब तो हालत ये हो गई है कि अगर गलती से कोई अफसर फोन उठा भी ले, तो उनका जवाब लगभग तय होता है: “मैं मीटिंग में था” या फिर “मैं क्षेत्र में था।” यही नहीं, अगर कोई और जिद करता है, तो यही अफसर यह भी चेतावनी दे देते हैं कि “यदि आप बार-बार परेशान करेंगे तो आपको डांट भी पड़ सकती है, और सरकारी कामों में बाधा डालने पर आप पर मुकदमा भी दर्ज हो सकता है।” बस फिर क्या था, जनता डर कर चुप हो गई। यह हालात तो ऐसे हैं "अगर किसी ने ज्यादा तंग किया तो मुकदमा भी हो सकता है।"
क्या मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश कभी इन नंबरों का डेटा मंगवाएंगे? अगर मंगवाते हैं, तो शायद यह सच सामने आ जाए कि कितनी बार फोन उठाए गए और कितनी बार जनता को सिर्फ घुमा दिया गया। क्या यह अफसरशाही का नया ‘मौन विद्रोह’ है? अगर हां, तो इसे इतिहास में कभी न भुलाया जाएगा।
सीयूजी नंबर अब न सिर्फ अफसरों की सुस्ती का प्रतीक बन चुका है, बल्कि यह लोकतंत्र के लिए भी काले धब्बे की तरह उभर कर सामने आ चुका है। अब देखना यह है कि क्या कभी इस चुप्पी को तोड़ा जाएगा, या फिर अफसर इस आरामदायक स्थिति में बने रहेंगे, और आम आदमी अपनी शिकायतों के साथ यूं ही सन्नाटे में खो जाएगा।