Type Here to Get Search Results !

custum trend menu

Stories

    News :खनन माफियाओं का "राम-राम": तालाबों की बलि, खनन माफियाओं की जय


    उत्तर प्रदेश लखनऊ 
    इनपुट:सुरेश कुमार राजाराम 
    अयोध्या :---- मर्यादा की नगरी या खनन माफियाओं की जेसीबी नगरी?राम की पावन नगरी अयोध्या, जहां भव्य राम मंदिर की चमक सात समंदर पार गूंज रही है, वहीं खनन माफियाओं का "खुदाई तमाशा" तालाबों और नदियों की मर्यादा को जेसीबी से कुचल रहा है। तहसील मिल्कीपुर के ग्राम सारी में बुढ़व बाबा के मजार के सामने वाला सरकारी तालाब अब तालाब कम, खनन माफियाओं का "मिट्टी का महाकुंभ" ज्यादा लगता है। गांव वासियों की बार-बार की शिकायतों ने जब आसमान सर पर उठा लिया, तब पत्रकारों ने "जीरो ग्राउंड रिपोर्टिंग" का जयकारा लगाया और सच्चाई को नंगा कर दिया—तालाब को कई फीट गहरा खोदकर खनन माफियाओं ने इसे "अयोध्या का मिनी मंगल ग्रह" बना डाला!सुप्रीम कोर्ट चीख-चीखकर कहता है, "तालाब बचाओ, सौंदर्यीकरण करो, नदियों को संरक्षित करो!" लेकिन खनन माफिया तो जेसीबी की आरती उतारते हुए, मंत्र जप रहे हैं—खोदो, बेचो, तिजोरी भरो! परमिट का जादुई तमगा लिए खनन माफिया, जो कभी ठेकेदार तो कभी कंपनी के भेष में आते हैं, विकास के नाम पर मिट्टी खोदकर अपनी जेबों का "सौंदर्यीकरण" कर रहे हैं। बिना परमिट वाले खनन माफिया तो और भी बिंदास, मानो कह रहे हों, "परमिट की क्या जरूरत, जब जेसीबी का जादू हमारे पास!" मानक? अरे, वो तो बस कागजों में सजावटी लकीरें हैं, जैसे मेले में बिकने वाली चमकीली पन्नी—दिखने में अच्छी, काम की नहीं!अगर कोई ईमानदार अफसर इन खनन माफियाओं के मानकों की जांच कर ले—कितनी मिट्टी खोदी, कहां खोदी, कितना गहरा खोदा—तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। सारा खेल खुल जाएगा कि खनन माफियाओं ने परमिट की आड़ में तालाबों और नदियों को कितना लूटा। लेकिन अफसर? वो तो परमिट की फाइल देखकर चैन की नींद सो रहे हैं, मानो कह रहे हों, "विकास का ठेका तो खनन माफियाओं को दे दिया, हम तो बस चाय की चुस्की लेंगे!"लेखपाल जी से जब फोन पर बात हुई, तो उनका जवाब था, "हमें शिकायत मिली, हमने काम रुकवाया, और अपने अधिकारी  को बता दिया।" अरे भाई, ये तो वही पुराना रिकॉर्ड है, जो हर बार बजता है, लेकिन खनन माफियाओं पर कार्रवाई का सूरज कभी उगता ही नहीं। गांव वासियों की शिकायतों के बाद पत्रकारों ने जीरो ग्राउंड पर उतरकर सच्चाई उजागर की, पहले भी पत्रकारों ने बोर्ड लगवाने की  मांग—की थी ताकि तालाब की शिनाख्त बची रहे—वो भी खनन माफियाओं की फाइल में अटककर "विकास की भेंट" चढ़ गई।अब सवाल ये है—क्या खनन माफियाओं की इस "खुदाई लीला" की जांच होगी? परमिटधारी खनन माफिया हों या बिना परमिट वाले खनन माफिया, क्या इनके मानकों का हिसाब होगा?कौन खनन माफिया कितना खोदकर ले गया, कौन परमिट की आड़ में मिट्टी को सोना बनाकर बेच गया। लेकिन जांच? वो तो वही सवाल है जैसे पूछना कि रामसेतु कब बनेगा और खनन माफिया कब रुकेंगे! पत्रकार तो बस सच्चाई सामने ला रहे हैं, सबूतों के साथ, ताकि ना फंसें, ना उलझें, बस राम की नगरी में मर्यादा की बात करें।तब तक, अयोध्या में खनन माफिया जेसीबी को तिलक लगाकर, मिट्टी को "विकास का प्रसाद" बनाकर बेच रहे हैं। और अधिकारी? वो तो "विकास की माला" जपते हुए कह रहे हैं, "सब ठीक है, खनन माफियाओं की जय हो!" राम की नगरी में मर्यादा कब बचेगी, ये तो वक्त बताएगा, लेकिन तब तक खनन माफियाओं का ये खुदाई तांडव चलता रहेगा, और तालाब चीख-चीखकर कहेंगे, "हमें बख्श दो, हम तो बस पानी रखने आए थे!"

    Bottom Post Ad

    Trending News