उत्तर प्रदेश बलिया
इनपुट: हिमांशु शेखर
अब होगी जिलेभर में अवैध चिकित्सा केंद्रों पर सख्त कार्रवाई – CMO संजीव वर्मन
सहतवार,बलिया :---सहतवार में एक दर्दनाक घटना ने पूरे जिले को झकझोर कर रख दिया है। इलाज के भरोसे आई एक गर्भवती महिला को अपनी और अपने अजन्मे बच्चे की जान गंवानी पड़ी – वो भी एक ऐसे हॉस्पिटल में, जिसका कोई पंजीकरण ही नहीं था। 40 हजार रुपये की लालच में ऑपरेशन के दौरान महिला की जान चली गई, और उसके साथ ही एक कोमल जीवन की उम्मीद भी टूट गई।
यह घटना “आदर्श सेवा सदन” नामक एक कथित प्राइवेट हॉस्पिटल में हुई, जो अवैध रूप से बिना किसी वैध मेडिकल पंजीकरण के संचालित हो रहा था। ऑपरेशन में बरती गई लापरवाही जानलेवा साबित हुई। महिला की मौत के बाद ग्रामीणों में आक्रोश फूट पड़ा। लोगों ने स्वास्थ्य विभाग को कटघरे में खड़ा करते हुए सवाल उठाए कि अगर समय रहते ऐसे फर्जी हॉस्पिटलों की जांच होती, तो शायद आज एक माँ और उसके बच्चे की जान बच सकती थी।
"अब और नहीं..." – ग्रामीणों का आक्रोश
गांव वालों की आँखों में आंसू और दिलों में ग़ुस्सा था। उनका कहना था कि ये सिर्फ एक हादसा नहीं, सिस्टम की नाकामी है।
"हर दिन हम अपने परिवार को इलाज के नाम पर ऐसे जगहों पर भेजते हैं, जहां जीवन की कोई गारंटी नहीं। क्या गरीब की जान कीमती नहीं होती?" – एक ग्रामीण ने आँखों में आँसू लिए कहा।
मुख्य चिकित्सा अधिकारी की सख्त चेतावनी
जैसे ही मामला प्रकाश में आया, मुख्य चिकित्सा अधिकारी (CMO) डॉ. संजीव वर्मन ने त्वरित कार्रवाई करते हुए “आदर्श सेवा सदन” को तत्काल प्रभाव से सील कर दिया। उन्होंने बताया कि हॉस्पिटल के पास कोई वैध लाइसेंस नहीं था और इसे फर्जी पंजीकरण के जरिए चलाया जा रहा था।
"यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। अब ऐसे किसी भी फर्जी चिकित्सीय संस्थान को बख्शा नहीं जाएगा। हम जल्द ही एक विशेष टीम गठित कर रहे हैं जो पूरे जिले में अवैध हॉस्पिटल, अल्ट्रासाउंड, पैथोलॉजी और एक्स-रे केंद्रों की गहन जांच करेगी और उन्हें तत्काल बंद कराया जाएगा।" – डॉ. वर्मन
अब जागेगा सिस्टम या फिर कोई और मौत?
इस हादसे ने प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग दोनों के लिए एक चेतावनी की घंटी बजा दी है। सवाल अब यह है कि क्या ये पहली और आखिरी ऐसी घटना होगी, या फिर गरीबों की ज़िंदगी ऐसे ही सस्ती समझी जाती रहेगी?
न्याय की आस में एक उजड़ा परिवार, और इंतजार में एक जागरूक समाज...
ग्रामीणों ने दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की मांग की है और प्रशासन से अपील की है कि अब सिर्फ आश्वासन नहीं, ज़मीन पर असर दिखना चाहिए।
इस घटना ने एक बार फिर हमें सोचने पर मजबूर कर दिया है – स्वास्थ्य एक अधिकार है, न कि धंधा।