उत्तर प्रदेश बलिया
इनपुट:धीरज यादव
दुबहर, बलिया:--मानव का अस्तित्व एवं जीवन की गुणवत्ता स्वच्छ एवं स्वस्थ पर्यावरण पर निर्भर है। धरती के प्राणियों एवं वनस्पतियों को स्वस्थ व जीवित रहने के लिए हमारे पर्यावरण का स्वच्छ रहना अत्यंत आवश्यक है, किंतु मानव द्वारा स्वार्थ सिद्धि हेतु प्रकृति का इस प्रकार से दोहन किया जा रहा है कि हमारा पर्यावरण दूषित हो चला है। उक्त उद्गार मंगल पांडेय विचार सेवा समिति के प्रवक्ता एवं सामाजिक चिंतक बब्बन विद्यार्थी ने बुधवार को विश्व पर्यावरण दिवस की पूर्व संध्या पर नगवा-अखार ढाला स्थित मीडिया सेंटर पर पत्रकारों से वार्ता के दौरान व्यक्त किया।
उन्होंने कहा कि पर्यावरण प्रदूषण का सबसे महत्वपूर्ण कारण जनसंख्या वृद्धि है। जनसंख्या वृद्धि के साथ प्रदूषण की समस्या दिनों दिन मानव जीवन के लिए खतरा बनते जा रही है। एक तरफ धड़ल्ले से अंधाधुंध हरे पेड़-पौधों की कटाई के कारण हरियाली का दायरा सिमटते जा रहा है, तो दूसरी तरफ स्वच्छता अभियान के बावजूद भी जगह-जगह गंदगी का अंबार लगा हुआ है। गंगा नदी में कूड़ा-कचरा व गंदे प्रदूषित जल के प्रवाह से निर्मल गंगा अभियान का भी दम घुंट रहा है। जिससे पतित पावनी, मोक्षदायिनी गंगा का अस्तित्व भी खतरे में पड़ गया है।
कहा कि वायुमंडल में बढ़ रही हानिकारक गैस, वनों की कटाई, चिमनियों, जेनरेटरों एवं विभिन्न प्रकार के वाहनों आदि से निकलने वाला धुआं वायुमंडल को प्रभावित कर रहा है। भारत में मौत की पांचवीं सबसे बड़ी वजह वायु प्रदूषण से होने वाली खतरनाक बीमारियां है। वहीं ध्वनि प्रदूषण से नींद में कमी, श्रवण क्षमता कमजोर तथा हृदय संबंधी अनेक घातक बीमारियों का खतरा बना रहता है। दूसरी तरफ जल प्रदूषण भी मानव जीवन पर खतरा बनकर मंडरा रही है। गंदे जल के कारण हैजा, पीलिया, चर्म रोग एवं अन्य प्रकार के कई संक्रामक रोग हो रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में पीने के पानी का सुगम एवं सरल साधन चापाकल ही है।
श्री विद्यार्थी ने कहा कि प्रदूषण का खतरा विभिन्न सरकारी योजनाओं से कदापि दूर नहीं होगा। इसके लिए जरूरत है धरातल से जुड़े काम की और आम लोगों की सजगता एवं जागरूकता की। यदि ऐसा नहीं हुआ तो मानव जीवन का अस्तित्व ही खतरे में पड़ सकता है।