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    घूस के आरोप में गिरफ्तार सीएचसी अधीक्षक डॉ. वेंकटेश की जेल में मौत, स्वास्थ्य विभाग में शोक की लहर

     

    उत्तर प्रदेश बलिया 
    इनपुट: हिमांशु शेखर 

    बलिया :-- बलिया जनपद के स्वास्थ्य विभाग ने सोमवार को अपने एक कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी को खो दिया। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) बांसडीह के अधीक्षक डॉ. वेंकटेश मौआर (45) का निधन वाराणसी जिला जेल में हृदयगति रुकने से हो गया। वे पिछले गुरुवार को विजिलेंस टीम द्वारा 20 हजार रुपये की रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों पकड़े गए थे। इस घटना के बाद से ही वे न्यायिक हिरासत में थे।

    डॉ. वेंकटेश की मौत की खबर जैसे ही बलिया पहुंची, स्वास्थ्य विभाग समेत पूरे जनपद में शोक की लहर दौड़ गई। उनके सहकर्मी, मित्र और मरीज सभी स्तब्ध रह गए। सीएचसी बांसडीह परिसर में दो मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि अर्पित की गई, और हर आंख नम हो गई।

    कर्तव्यनिष्ठ डॉक्टर, जिनकी जिंदगी विवादों में उलझ गई
    बिहार के औरंगाबाद जनपद के खैरा गांव निवासी डॉ. वेंकटेश मौआर बलिया शहर के बहादुरपुर मोहल्ले में किराए के मकान में अपनी पत्नी प्रियंका मौआर और दो बेटों—विनायक (17) व वेदांत (15) के साथ रहते थे। वे न केवल बांसडीह सीएचसी के अधीक्षक थे, बल्कि मनियर अस्पताल का भी अतिरिक्त प्रभार संभाल रहे थे। अपने कार्यकाल में उन्होंने जिले के कई अस्पतालों में सेवाएं दी थीं और एक कुशल चिकित्सक के रूप में जाने जाते थे।

    घटना वाले दिन विजिलेंस टीम को बांसडीह रोड थाना क्षेत्र निवासी अजय तिवारी की शिकायत पर कार्रवाई करनी पड़ी। टीम ने डॉ. मौआर को उनके ओपीडी कक्ष से ही 20 हजार रुपये की कथित रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार कर लिया और वाराणसी ले गई। इसके बाद उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था।

    अचानक आई मौत ने खड़े किए कई सवाल
    सोमवार को अचानक जेल में उनकी मृत्यु की सूचना आई, जिसने पूरे मामले को एक नया मोड़ दे दिया। जहां एक ओर विजिलेंस की कार्रवाई पर सवाल उठाए जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर उनके समर्थकों और सहकर्मियों का कहना है कि डॉ. मौआर जैसे कर्मठ अधिकारी की इस तरह की मौत बेहद दुखद और संदेहास्पद है।

    सीएचसी बांसडीह परिसर में अरुण सिंह, उमेश सिंह परिहार, दिलीप दुबे, अंगद मिश्रा, चंदन कुमार और नंदलाल गोंड समेत कई स्थानीय नागरिकों और कर्मचारियों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी।

    “एक डॉक्टर चला गया, सवाल बाकी हैं”
    डॉ. वेंकटेश मौआर की मौत ने जहां एक परिवार को बेसहारा कर दिया, वहीं पूरे स्वास्थ्य महकमे को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या एक आरोप का बोझ इतना भारी हो सकता है कि वह किसी की जान ले ले? न्यायिक प्रक्रिया, चिकित्सा सुविधा और मानवीय संवेदनाओं के बीच उनकी यह दुखद मौत कई सवाल छोड़ गई है, जिनके जवाब समय के साथ तलाशे जाएंगे।


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