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अंतरात्मा की रास : राधा की परम लीला : SKGupta



उत्तर प्रदेश बलिया 
इनपुट: हिमांशु शेखर 

बलिया उत्तरप्रदेश:--(यह लीला वृन्दावन से परे, आत्मा और परमात्मा के मिलन की कथा है)

रात्रि के तीसरे प्रहर में — जब वृंदावन शान्त है,
यमुना का जल ठहरा हुआ है,
और तुलसी के नीचे राधा ध्यानस्थ बैठी हैं।

कृष्ण यमुना पार से लौटे हैं। सखियाँ – ललिता, विशाखा – चिंतित हैं।
राधा कुछ बोलती नहीं। उनकी आँखें बंद हैं, शरीर स्थिर है, लेकिन भीतर एक ज्वालामुखी फूट रहा है।

✨ लीला...

ललिता कहती हैं:

 “राधे! कुछ कहो ना… कृष्ण आ गए हैं, देखो… अब क्यों मौन हो ?”

राधा धीरे से नेत्र खोलती हैं और कहती हैं:

 "अब कुछ कहना शेष नहीं।
कृष्ण अब मेरे बाहर नहीं हैं,
वे अब मेरे अंतर में बस चुके हैं।”

कृष्ण आगे बढ़ते हैं, पर राधा रोक देती हैं।

 "श्याम! आज तुम मुझसे नहीं,
मेरे भीतर के कृष्ण से मिलो।

आज राधा मिटने को तैयार है,
ताकि केवल ‘कृष्ण’ शेष रहें।”

कृष्ण नतमस्तक हो जाते हैं।
वे जानते हैं, आज राधा देह नहीं, देवी बन चुकी हैं।

--राधा का परम विसर्जन

राधा एक दीपक जलाती हैं —
वह दीपक उनकी आत्मा है।

वो दीप जलती जाती है… और राधा मंत्र करती हैं:

“श्याम मेरे रोम रोम में हैं,
वे बाहरी नहीं, अब आन्तरिक हो गए हैं।
रास अब वृंदावन में नहीं,
हृदय के कुञ्ज में हो रहा है।”

सखियाँ रोती हैं, कृष्ण रोते हैं,
लेकिन राधा मुस्करा रही हैं —
क्योंकि उन्होंने "स्व" को छोड़ दिया है,
अब वे "पूर्ण" हो गई हैं।

🌿 इस लीला का भावार्थ

यह लीला हमें सिखाती है —
प्रेम जब सीमाओं से पार जाता है, तब वह साधारण नहीं रहता।
वो ईश्वर का रूप ले लेता है।

राधा कोई साधारण गोपी नहीं,
वो शक्ति हैं, भक्ति हैं, तन्मयता हैं। वो कृष्ण की अह्लादिनी
 शक्ति भगवान कृष्ण की एक दिव्य शक्ति है जो आनंद और प्रेम का स्रोत है। 

जय जय श्री राधे~~