उत्तर प्रदेश बलिया
इनपुट: हिमांशु शेखर
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बलिया:---बारह यात्री थे,
वे एक नगर से दूसरे नगर को जा रहे थे।
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आगे बढ़े तो एक नदी आ गई। कोई पुल नहीं, कोई नाव नहीं, पार तो पहुँचना ही है.. परंतु कैसे ?
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उनमें से एक सयाना था, वह बोला
घबराओ नहीं ! एक-दूसरे का हाथ थाम
लो, मिलकर हम पार हो जाएँगे।
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सबने एक-दूसरे के हाथ कसकर पकड़ लिये, सावधानी से नदी पार करके दूसरे किनारे जा पहुँचे।
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स्याना व्यक्ति बोला, "अब गिनती करके देख लो, कोई नदी में तो नहीं रह गया ? "
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दूसरा बोला, "सबसे बुद्धिमान तू है,
अब तू ही गिन।"
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स्याना गिनने लगा, " एक, दो, तीन, चार, पाँच, छः, सात, आठ, नौ, दस, ग्यारह।" स्वयं को उसने गिना ही नहीं।
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चौंककर बोला, "हम तो ग्यारह हैं ! एक साथी कहाँ गया ?"
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दूसरे ने गिना तो अपने-आप को भूल गया। इस तरह तीसरे, चौथे और बारी-बारी से सभी ने ग्यारह ही गिने। रोने लगे कि एक साथी डूब गया।
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तभी एक यात्री आ गया।
उसने उनके रोने का कारण पूछा।
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स्याने ने सारी बात कह बताई।
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यात्री ने उन्हें देखते हुए मन में गिना तो
वे बारह थे। उसने कहा, "यदि मैं तुम्हारे बारहवे साथी को खोज दूँ , तो ?"
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वे बोले - " तब तो हम तुम्हें भगवान् मान लेंगे। "
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यात्री बोला - " तुम सब बैठ जाओ। मैं
एक-एक को चपत मारूँगा।
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जिसे चपत लगे, वह क्रम से एक , दो , तीन गिनता जाए। "
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इस तरह यात्री चपत मारता गया और वे
लोग एक से बारह तक गिनते गए।
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अंत में बोले - "तुम सचमुच भगवान् हो !
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आपको इन यात्रियों पर हँसी आती है ,
परंतु हम स्वयं भी इसी मूर्खता केशिकार
हैं।
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पाँच कर्मेन्द्रियाँ , पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ और ग्यारहवें मन को तो हम पहचानते हैं ,
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परंतु बारहवें आत्मा को हम भुला बैठे हैं। हम दुनिया-भर के बखेड़े करते हैं , किन्तु आत्मा के लिए कुछ नहीं करते।
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ग्यारह की तृप्ति में ही डूब गये है ,तभी तो मनुष्य दुःखी और अशान्त है।