उत्तर प्रदेश बलिया
इनपुट: अमीत कुमार गुप्ता
बलिया उत्तरप्रदेश:---बरसाना की एक गली में एक साधारण सी गोपी रहती थी।
ना बहुत सुंदर, ना बहुत ज्ञानी — पर उसके पास एक चीज़ थी... "निखालिस प्रेम"...
वो रोज़ राधारानी के मंदिर के बाहर बैठती।
ना कुछ माँगती, ना कोई माला फेरती, ना घंटी बजाती —
बस... जब लोग "राधे राधे" बोलते, तो उसकी आँखें भीग जातीं।
लोग हँसते... “क्यों रोती है रोज़?”
वो बस मुस्कुरा देती — "क्योंकि राधा का नाम भारी है... मेरी आत्मा के लिए भी भारी।"
एक दिन मंदिर में कथा हो रही थी।
व्यासजी बोले —
“राधा की कृपा तभी मिलती है जब प्रेम इतना सच्चा हो कि आँसू बिना बुलाए बहने लगें।”
ये सुनते ही, वो गोपी ज़ोर से रो पड़ी...
भीड़ चौंकी, कथा रुकी...
व्यासजी बोले — “क्या हुआ बहन ?”
वो बोली —
“मुझे प्रेम करना नहीं आता।
ना गीत, ना व्रत, ना शास्त्र,
बस जब राधा का नाम सुनती हूँ तो दिल काँपता है... और आँखें बह जाती हैं।
क्या ये काफी है कृपा के लिए ?”
तभी पीछे से एक वृद्ध स्वर गूंजा...
"बहुत है... इतना प्रेम बहुत है।
जिसने बिना जप के, बिना याचना के भी सिर्फ नाम से रोना सीख लिया —
उसकी आँखों में ही राधा वास करती हैं।"
लोग पीछे मुड़े — कोई नहीं था।
व्यासजी मुस्कुराए... बोले:
“वो स्वर स्वयं राधा रानी का था।”
उस दिन से उस गोपी के आँसू लोगों के लिए कृपा बन गए।
जो भी उसे देखता — रोने लगता।
जो भी पास बैठता — अपने दुःख भूल जाता।
क्योंकि राधा स्वयं उस गोपी की आँखों से झाँकती थीं।
आपकी जो आँखें नम होती हैं राधा के नाम पर —
वो कोई साधारण अश्रु नहीं।
वो आपकी आत्मा के भीतर छुपी हुई राधा की आवाज़ है...
जो प्रेम को पहचान चुकी है।