उत्तर प्रदेश वाराणसी
इनपुट:सोशल मीडिया
वाराणसी:---सभी सनातन आस्था के अनुयायी जन को अत्यंत हर्षपूर्वक सूचित किया जाता है कि श्री काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग, वाराणसी तथा श्री रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग, तमिलनाडु के मध्य एक पावन नवाचार के रूप में पवित्र तीर्थ जल के पारस्परिक आदान-प्रदान की परंपरा का शुभारंभ किया जा रहा है। ध्यातव्य है कि शास्त्रोक्त परंपरा में संगम त्रिवेणी जल से रामेश्वरम तीर्थ ज्योतिर्लिंग में रामनाथस्वामी के अभिषेक तथा रामेश्वरम कोडी तीर्थम से प्राप्त जल द्वारा श्री काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के अभिषेक की अति विशिष्ट महत्ता है। इसी प्रकार रामेश्वरम सागर तट की रेत को प्रयाग संगम की रेत में मिलाने का भी विशेष महत्त्व शास्त्रों में वर्णित है। इसी शास्त्रोक्त आचार को संस्थागत करने की दिशा में आज सनातन धर्म के एक ऐतिहासिक गौरवमय क्षण को श्री काशी विश्वनाथ धाम में चरितार्थ करने का पुनीत कार्य संपन्न किया गया।
यह पवित्र संगम जल दिनांक 28 जुलाई 2025 (श्रावण मास के पावन सोमवार) को श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में भगवान श्री विश्वेश्वर से अवलोकित कराया गया। तत्पश्चात विशेष समारोह में उत्तर प्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री एवं गोरक्ष पीठाधीश्वर मा० योगी आदित्यनाथ जी के कर कमलों से यह पावन संगम जल एवं रेत, श्री रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग के देवकोट्टई जमींदार परिवार न्यास के प्रतिनिधि श्री सी०आर०एम० अरुणाचलम एवं श्री कोविलूर स्वामी को हस्तांतरित की गयी। इस अवसर पर कार्यक्रम में वाराणसी के सम्मानित मा० जनप्रतिनिधि गण, मा० मंत्रीगण, महापौर महोदय के साथ ही साथ प्रमुख सचिव धर्मार्थ कार्य एवं पर्यटन एवं संस्कृति श्री मुकेश कुमार मेश्राम, मंडलायुक्त महोदय वाराणसी, जिलाधिकारी एवं पुलिस आयुक्त महोदय वाराणसी एवं मुख्य कार्यपालक अधिकारी श्री काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी सहित बड़ी संख्या में गणमान्य श्रद्धालुजन एवं विभिन्न अधिकारियों द्वारा प्रतिभाग किया गया। श्रावण के तृतीय सोमवार की पवित्र तिथि को संपन्न इस विशिष्ट आयोजन के ऐतिहासिक क्षणों के साक्षी भगवान् विश्वनाथ के प्रांगण एवं सुप्रसिद्ध त्रिशिखर की पृष्ठभूमि की दिव्यता ने यह नवाचार सदैव के लिए उत्तर दक्षिण की सांस्कृतिक समागम की परंपरा में अपना स्थान अंकित कर दिया है।
श्री रामनाथ स्वामी मंदिर रामेश्वरम के वंशानुगत ट्रस्ट AL. AR. KATTALAI ट्रस्ट के ट्रस्टी श्री सी. आर. अरुणाचलम द्वारा दिनांक 19 जून 2025 को श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास के मुख्य कार्यपालक अधिकारी को सम्बोधित पत्र प्रेषित किया गया। इस पत्र में यह अवगत कराया गया कि विगत कई शताब्दियों से त्रिवेणी संगम प्रयागराज के पवित्र जल से रामेश्वरम के प्रधान महादेव भगवान रामनाथस्वामी का शयन आरती में अभिषेक किया जाता रहा है। इस परंपरा की निरंतरता हेतु AL. AR. KATTALAI ट्रस्ट द्वारा यह प्रस्ताव दिया गया कि श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास इस परंपरा में प्रतिभागी बन त्रिवेणी संगम का जल उन्हें उपलब्ध कराये। उनके द्वारा यह भी प्रस्ताव किया गया कि प्रतिमाह रामेश्वरम कोडी तीर्थम का पवित्र जल भगवान् श्री काशी विश्वनाथ के अभिषेक हेतु AL. AR. KATTALAI ट्रस्ट द्वारा उपलब्ध कराया जायेगा। प्रतिउत्तर में श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास कार्यपालक समिति से अनुमोदन प्राप्त कर दिनांक 03 जुलाई 2025 को मुख्य कार्यपालक अधिकारी श्री काशी विश्वनाथ मंदिर द्वारा प्रस्ताव पर सहर्ष सहमति AL. AR. KATTALAI ट्रस्ट को प्रेषित की गयी।
इस पावन उद्देश्य की पूर्ति हेतु दिनांक 27 जुलाई 2025 को डिप्टी कलेक्टर, श्री काशी विश्वनाथ विशिष्ट क्षेत्र विकास परिषद्, वाराणसी के साथ श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास के प्रतिनिधि दल द्वारा, प्रयागराज स्थित त्रिवेणी संगम से विधिवत पूजन उपरांत पवित्र जल एवं रेत का संग्रह, स्थानीय प्रशासन व अधिकारियों की गरिमामयी उपस्थिति में समारोहपूर्वक संपन्न किया गया था। प्रयागराज के कार्यक्रम में जिला प्रशासन से अपर जिलाधिकारी नगर श्री सत्यम मिश्र एवं प्रयागराज मेला प्राधिकरण से एडीएम श्री विवेक चतुर्वेदी सहित प्रयागराज के प्रतिष्ठित संतसमाज एवं संगमतट स्थित सैन्य आयुध भंडार के अधिकारियों की भी इस अवसर पर गरिमामय उपस्थिति रही थी।
श्री काशी विश्वनाथ धाम से प्रेषित जल का प्रयोग रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग के प्रधान महादेव श्री रामनाथस्वामी भगवान का श्रावण मास में अभिषेक-पूजन हेतु किया जाएगा। इसी प्रकार, रामेश्वरम से भेजे गए पवित्र जल से श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि पर श्री विश्वेश्वर का जलाभिषेक विधिपूर्वक संपन्न किया जाएगा I
यह विशेष सनातन नवाचार उत्तर भारत एवं दक्षिण भारत के तीन महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों—काशी, प्रयागराज एवं रामेश्वरम के मध्य आध्यात्मिक एकता, सांस्कृतिक समन्वय एवं राष्ट्रधर्म की भावना को और अधिक सुदृढ़ करने की दिशा में एक अभिनव प्रयास है।
॥ श्री काशीविश्वनाथो विजयतेतराम ॥