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    National Energy:अक्षय ऊर्जा दिवस पर विशेष -ऊर्जा संकट के समाधान हेतु आवश्यक है अक्षय ऊर्जा का सतत विकास:डा०गणेश पाठक(पर्यावरणविद्)



    उत्तर प्रदेश बलिया 
    इनपुट: हिमांशु शेखर 
    बलिया उत्तरप्रदेश:--पारिस्थितिकी तंत्र को सतत् क्रियाशील बनाए रखने में ऊर्जा प्रवाह के रूप में ऊर्जा महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।यही नहीं ऊर्जा हमारे अस्तित्व, अर्थिक विकास एवं जीवन स्तर को कायम रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। किंतु बढ़ते औद्योगीकरण एवं नगरीयकरण के कारण ऊर्जा के अतिशय उपभोग के चलते उत्पन्न ऊर्जा संकट ने भारत सहित विश्व की सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को झकझोर कर रख दिया है। ऊर्जा के परम्परागत स्रोत धीरे-धीरे समाप्त होते जा रहे हैं।विशेषज्ञों का मानना है कि यदि उपभोग की वर्तमान गति जारी रही तो कोयला एवं पेट्रोलियम दोनों आगामी पच्चीस वर्षों में  समाप्त हो जायेंगें।ऐसी स्थिति में ऊर्जा संकट भयावह स्थिति धारण कर लेगा।प्राकृतिक गैस की भी लगभग यही स्थिति है।
    File photo of dr.Ganesh Pathak
         ऐसी स्थिति में हमें ऊर्जा के अपरम्परागत स्रोतों के विकास पर विशेष ध्यान देना होगा।
    ऊर्जा के अपरम्परागत  स्रोतोंमें सौरऊर्जा,पवन ऊर्जा,बायोमास एवं बायोगैस ऊर्जा, अपशिष्ट आधारित ऊर्जा,भू-तापीय ऊर्जा, समुद्री ऊर्जा एवं परमाणु ऊर्जा का विशेष तौर से विकास किया जा रहा है।
         अपरम्परागत ऊर्जा स्रोतों में से सौर ऊर्जा विशेष तौर पर उपयोगी,सुरक्षित,सस्ती एवं दीर्घ अवधि तक चलने वाली ऊर्जा है,जिसका भारत में विशेष तौर पर विकास किया जा रहा है। सौर ऊर्जा पर्यावरण की दृष्टि से भी सुरक्षित है, क्यों कि इससे किसी प्रकार का प्रदूषण भी नहीं होने वाला है और चिरकाल तक अर्थात् जब तक सूरज रहेगा तब तक हमें सौर ऊर्जा प्राप्त होती रहेगी,वशर्ते कि और ऊर्जा प्राप्ति की तकनीकी में उत्तरोत्तर विकास होता रहे।  
         खासतौर से बलिया सहित पूर्वांचल के जिलों की बात करें तो इस क्षेत्र में सौर ऊर्जा  विकास की पर्याप्त संभावनाएं  विद्यमान हैं,कारण कि इन क्षेत्रों में पूरे वर्ष भर सूर्य की पर्याप्त  रोशनी  प्राप्त  होती रहती  है। बलिया में पवन ऊर्जा विकास की भी पर्याप्त सम्भावना विद्यमान है,क्यों कि बलिया ज़िला के गंगा एवं सरयू नदी के दियरांचल क्षेत्रों में हवा बिना किसी बाधा के चलती रहती है,जिससे पवन ऊर्जा का भी विकास किया किया जा सकता है।
         ग्लोबल वार्मिंग एवं जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए भी आवश्यक है ऊर्जा संरक्षण -
       
     जहां तक ग्लोबल वार्मिंग एवं जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में ऊर्जा संरक्षण की बात है तो इन दोनों को रोकने के लिए ऊर्जा संरक्षण अति आवश्यक है। खासतौर से कार्बन में वृद्धि करने वाले परम्परागत ऊर्जा स्रोतों से ऊर्जा उत्पादन रोकने की आवश्यकता है। कारण कि कोयला एवं पेट्रोलियम दोनों से कार्बन में वृद्धि होती है, जो ग्लोबल वार्मिंग एवं जलवायु परिवर्तन को बढ़ाने महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
         ऊर्जा संरक्षण हेतु हमें एक तरफ जहां ऊर्जा के परम्परागत स्रोतों में कमी लानी होगी, वहीं दूसरी तरफ ऊर्जा के गैरपरम्परागत स्रोतों के विकास पर अधिक से अधिक बल देना होगा। ऊर्जा के संरक्षण हेतु निम्नांकित उपायों/विधियों को अपनाना बेहतर होगा :-
    1. बचत प्रकिया को अपनाना।
    2. बर्बादी को रोकना।
    3. दीर्घकालीन उपभोग की नीति अपनाना।
    4. विकल्प की खोज करना।
    5.उत्पादन एवं उपभोग तकनीकी में विकास करना।
    6. स्वामित्व पर नियंत्रण।
    7. जन-जागरूकता पैदा करना।

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