उत्तर प्रदेश बलिया
इनपुट: हिमांशु शेखर
बलिया उत्तरप्रदेश:---खाना सिर्फ पेट भरने का साधन नहीं, बल्कि जीवन ऊर्जा का आधार है। आयुर्वेद कहता है कि भोजन तभी अमृत है, जब वह सही संयोजन और सही समय पर लिया जाए। लेकिन आजकल स्वाद और सुविधा के चक्कर में हम अनजाने में ऐसे भोजन-संयोजन अपना लेते हैं जो शरीर के लिए ज़हर साबित हो सकते हैं। आयुर्वेद में इन्हें विरुद्ध आहार कहा गया है — यानी असंगत भोजन, जो शरीर के दोषों को असंतुलित कर रोगों की जड़ बनता है।
📜 विरुद्ध आहार क्या है?
आयुर्वेद में "विरुद्ध" का मतलब है "असंगत" या "विरोधी"। जब दो या दो से अधिक खाद्य पदार्थ स्वभाव, गुण, पाचन समय, ऊर्जा (वीर्य) या प्रभाव में एक-दूसरे के विपरीत हों, तो उनका मेल शरीर के लिए हानिकारक हो जाता है।
चरक संहिता में इसे स्पष्ट रूप से वर्णित किया गया है और बताया गया है कि ऐसे संयोजन धीरे-धीरे शरीर में आम (विष) उत्पन्न कर रोगों को जन्म देते हैं।
🔍 विरुद्ध आहार के प्रकार
आयुर्वेद में लगभग 18 प्रकार के विरुद्ध आहार बताए गए हैं, जिनमें प्रमुख हैं —
देश विरुद्ध – जिस जगह के मौसम में जिस भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए, वहां करना।
काल विरुद्ध – मौसम या समय के विपरीत भोजन करना, जैसे सर्दियों में तरबूज।
गुण विरुद्ध – शरीर के गुण-दोष के विपरीत आहार।
मात्रा विरुद्ध – भोजन की मात्रा अनुपयुक्त होना।
संस्कार विरुद्ध – किसी पदार्थ को गलत तरीके से पकाना या प्रोसेस करना।
संयोग विरुद्ध – दो असंगत पदार्थों को मिलाना (सबसे आम)।
विर्य विरुद्ध – गरम-ठंडे गुण वाले पदार्थों को साथ लेना।
संस्थान विरुद्ध – भोजन का आकार, रूप या बनावट विपरीत होना।
कोश्ठ विरुद्ध – कब्ज या दस्त प्रवृत्ति के विपरीत आहार लेना।
🥢 कुछ प्रमुख उदाहरण (संयोग विरुद्ध)
दूध + नमक – त्वचा रोग और पाचन समस्या का कारण।
दूध + मछली – रक्त में अशुद्धि और त्वचा पर धब्बे।
दूध + खट्टे फल – पेट में गैस, ऐसिडिटी, और विष का निर्माण।
शहद + दही (बराबर मात्रा) – पाचन विकार और विष का निर्माण।
तरबूज + दूध – पाचन शक्ति पर असर और गैस।
फल + भोजन (भारी अनाज) – पेट में किण्वन (fermentation) और अम्लता।
गर्म पानी + शहद (उबालकर) – शहद के पोषक तत्व नष्ट होकर विषाक्त हो सकते हैं।
दूध + मूली – पाचन व श्वसन रोग।
दूध + लहसुन/प्याज – गर्म-ठंडे गुणों का टकराव
💢 विरुद्ध आहार से होने वाले नुकसान
पाचन तंत्र पर असर – गैस, अपच, पेट दर्द, ऐसिडिटी।
त्वचा रोग – खुजली, फोड़े-फुंसी, दाग-धब्बे।
रक्त अशुद्धि – रक्त विकार और एलर्जी।
आंतरिक रोग – आमाशय में विष और टॉक्सिन जमा होना।
प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होना – रोग जल्दी लगना।
🛡 विरुद्ध आहार से बचाव के आयुर्वेदिक उपाय
भोजन से पहले विचार – यह देखें कि जो चीज़ें आप मिला रहे हैं, उनके गुण, स्वाद और पाचन समय एक जैसे हों।
धीरे-धीरे बदलाव – यदि आदत पड़ चुकी है तो तुरंत न छोड़कर धीरे-धीरे संयोजन बदलें।
त्रिफला चूर्ण – रात में लेने से शरीर से आम (विष) बाहर निकलता है।
अदरक-नींबू-शहद का मिश्रण (अलग समय पर) – पाचन सुधारने में सहायक।
गरम पानी का सेवन – पाचन तंत्र को सक्रिय रखने के लिए।
🪔 आयुर्वेदिक दृष्टिकोण
महर्षि चरक और सुश्रुत दोनों ने ही स्पष्ट रूप से कहा है कि "विरुद्ध आहार रोगों का मूल है"। यह धीमे-धीमे शरीर के दोष (वात, पित्त, कफ) को असंतुलित कर देता है और अंत में गंभीर बीमारियों जैसे त्वचा रोग, जोड़ों का दर्द, मधुमेह, और यहां तक कि कैंसर तक का कारण बन सकता है।
📢 निष्कर्ष
स्वाद के पीछे भागते हुए अगर आप भोजन संयोजन की अनदेखी करेंगे, तो आपको इसकी कीमत सेहत से चुकानी पड़ सकती है। आयुर्वेद हमें यह सिखाता है कि सही भोजन, सही समय और सही तरीके से ही शरीर का असली पोषण कर सकता है।
इसलिए अगली बार जब थाली में दो चीजें परोसें, तो पहले यह सोचें — "क्या ये दोनों मेरे शरीर के दोस्त हैं या दुश्मन?"

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