उत्तर प्रदेश बलिया
इनपुट:धीरज यादव
बलिया:-- प्रकाश का त्योहार दीपावली का अपना धार्मिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक महत्व है। श्री रामचंद्र जी जब रावण का वध एवं चौदह वर्ष का वनवास व्यतीत करके अयोध्या वापस लौटे, तो अयोध्यावासियों ने उनके स्वागत में अपने घर एवं नगर को घी के दीपों से जगमगा दिया था। इसी परंपरा के तहत हम भारतवासी प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या की रात अपने घर के अंदर एवं बाहर दीपों की पंक्ति बनाकर दिए जलाते हैं, और धन, वैभव की देवी मां लक्ष्मी के साथ मंगल के दाता गणेश जी की पूजा करते हैं।
पश्चिम बंगाल में लोग दीपावली को काली पूजा के रूप में मनाते हैं। वहां बड़े-बड़े एवं भव्य पंडाल के भीतर मां काली की प्रतिमा प्रतिस्थापित की जाती है। काली पूजा के बाद वहां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। लेकिन आज इस त्यौहार में कई प्रकार की बुराइयां भी समाहित हो गई है। इस त्यौहार के नाम पर लोग अपनी हैसियत का प्रदर्शन करते हुए हजारों रुपए यूॅं ही पटाखों में उड़ा देते हैं। अत्यधिक पटाखें जलाना जिस डाल पर बैठे, उसी डाल को काटने जैसा है। जिस शुद्ध हवा में हम सांस लेते हैं, उसी को पटाखों से हम अशुद्ध करते हैं, यह कितनी अज्ञानता है। उक्त बातें सामाजिक चिंतक बब्बन विद्यार्थी ने दीपावली के पूर्व संध्या पर पत्रकारों से बातचीत के दौरान कही।
कहा कि आज भारत में मौत की पांचवीं सबसे बड़ी वजह वायु प्रदूषण से होने वाली खतरनाक बीमारियां है। वहीं ध्वनि प्रदूषण से नींद में कमी, श्रवण क्षमता कमजोर तथा हृदय संबंधी अनेक घातक बीमारियों का खतरा बना रहता है। कड़े आवाज में पटाखें एवं डीजे बजाने का मतलब ध्वनि प्रदूषण को आमंत्रित करना। ऐसा करने वालों को क्या मालूम की आसपास रहने वाले हृदय, अस्थमा एवं कमजोर दिल के मरीजों पर पटाखें एवं डीजे के तेज आवाज से क्या गुजरती होगी?
श्री विद्यार्थी ने कहा कि जुआ खेलना इस त्यौहार की सबसे बड़ी बुराई है, यदि जुआ नहीं खेला जाए तथा कड़े आवाज के पटाखें न जलाए जाएं, तो यह त्यौहार अंधकार पर प्रकाश की विजय के अपने संदेश को सार्थक करता नजर आएगा। आज इन बुराइयों को दूर कर इस त्यौहार के उद्देश्यों को सार्थक करने की आवश्यकता है। *🌷🙏🏻दीपावली, गोवर्धन पूजा एवं भैया दूज की हार्दिक शुभकामनाएं..🌷🙏🏻*