Type Here to Get Search Results !

custum trend menu

Stories

    Festival News:स्वास्थ्य, धन और चरित्र उन्नयन का पर्व: "धनतेरस":डॉ. जयप्रकाश तिवारी





    उत्तर प्रदेश बलिया 
    इनपुट: हिमांशु शेखर 

    बलिया, लखनऊ:---"धनतेरस पर्व" स्वास्थ्य संवर्द्धन, धन प्रबंधन और चरित्र उन्नयन का संयुक्त पर्व है। धनतेरस का दार्शनिक और आध्यात्मिक महत्व स्वास्थ्य, समृद्धि और चरित्र के सम्यक संतुलन में ही निहित है। इसे केवल धन, वैभव तक सीमित कर देना हमारी अपरिपक्वता ही कही जाएगी। यह धनतेरस पर्व हमें सिखाता है कि धन का अपना महत्व है, स्वास्थ्य का महत्व धन से अधिक है, किंतु चरित्र का महत्व उससे भी अधिक है। इसलिए इस पर्व के साथ कुछ प्रतीक अनिवार्य रूप से जुड़े हुए हैं। 

    "धन्वंतरि जयंती" उन्हीं प्रतीकों में स्वास्थ्य प्रतीक है। इस दिन समुद्र मंथन के दौरान आयुर्वेद के जनक और देवताओं के स्वास्थ्य गुरु/वैद्य भगवान धन्वंतरि के प्रकट होने की स्मृति में मनाया जाता है। 
    स्वस्थ रहकर दीर्घायु की कामना के लिए यह दिन स्वास्थ्य, दीर्घायु और चिकित्सा विज्ञान के महत्व का को प्रकट करता है। स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने के लिए धनतेरस हमे स्मरण दिलाता है कर दिलाता है कि स्वास्थ्य के बिना धन का कोई मोल नहीं है। न तो धनोत्पादन ही किया जा सकता है, न उस धन से भोग ही किया जा सकता। हां, यह सच है कि धन बहुत महत्वपूर्ण है और उससे बहुत कुछ क्रय किया जा सकता है, किंतु ध्यान रहे आप केवल दवा क्रय कर सकते हैं, मंचचाहे चिकित्सालय में इलाज करा सकते हैं किंतु स्वास्थ्य नहीं क्रय कर सकते। यदि स्वस्थ और निरोग हैं तो धन से सांस्कृतिक, सामाजिक, राष्ट्रीय समृद्धि के उन्नयन को प्राप्त किया सकता है। इसलिए धनवंतरि के साथ साथ धन के देवता कुबेर और माता लक्ष्मी का भी प्राकट्य है। धनतेरस भौतिक समृद्धि के साथ-साथ आर्थिक सुरक्षा के बीच संतुलन बनाने का पर्व है। यह खरीदारी के माध्यम से गृह प्रबंधन और धन प्रबंधन को सांस्कृतिक महत्व देता है, धन संग्रह के लिए नियमन के लिए होता है। इसलिए आवश्यक खरीदारी, (विलासितापूर्ण सामग्री नहीं) को शुभ और फलदायी माना जाता है। 
              File Photo of डॉ जयप्रकाश तिवारी 
     
     यह परीक्षित सत्य ही कि स्वस्थ काया और प्रचुर धन, यदि दोनों का सदुपयोग न किया जाए तो ये विकृति उत्पन्न करते हैं। धन की तीन ही गति बताई गई है, दान, भोग और नाश। धन का सदुपयोग ही दान है, स्वास्थ्य संरक्षण, पर्यावरण संरक्षण, संस्कृति संरक्षण ही भोग है और यदि यह उत्तम कार्य न किए जाए तो काया का वासनामय दुरुपयोग और विनाश है। 

       इस विनाश/महाविनाश के बचने का एक ही मार्ग है सच्चरित्र होना। यह सच्चरित्रता "स्वच्छंद और उन्मुक्त भोग" को नियंत्रित कर त्यागमय उपभोग को प्रेरित करती है, सन्मार्ग पथिक बनती है। यह प्रेरणा ही चरित्र प्रबंधन है। हमारी संस्कृति ने भोग, उपभोग को कभी भी त्याज्य नहीं माना। संतति संवर्द्धन हेतु भोग की अनुमति है, किंतु विकृत कायिक मनोरंजन के लिए कभी नहीं। इसी प्रकार धन का भी त्यागमय भोग करना है, श्रुति, शास्त्र निर्देश है - "तेनत्यक्ततेनभुञ्जीथा", यही हमारा आदर्श भोग सूत्र है। चरित्र निर्माण में स्वास्थ्य, धन और आचरण, तीनों का महत्व है। धनतेरस इन तीनों के संवर्द्धन संयुक्त पर्व है। आज से तैयारी है और प्रकाश पर्व दीपावली को यह अपनी पूर्णता को, उत्कर्ष को प्राप्त होता है, जब अंतः का अज्ञान, तिमिर का नाश हो जाता है और अंतः में ज्ञान ज्योति और बाहर दीपक की प्रकाश ज्योति से धरा जगमगा उठती है।

    अतः आइए इस पर्व के निहितार्थ को समझकर इस प्रबंधन पर्व को उत्साह, उमंग और प्रेम से मनाएं। जीवन को स्वास्थ्य प्रबंधन, धन प्रबंधन और आचरण प्रबंधन में नियोजित करें। सभी देश वासियों को धनतेरस पर्व की हार्दिक बधाई और मंगलमय शुभकामनाएं।

    Bottom Post Ad

    Trending News