उत्तर प्रदेश बलिया
इनपुट: हिमांशु शेखर
बलिया उत्तरप्रदेश:--दीपावली के दिन लक्ष्मी के साथ गणेश की भी पूजा की जाती है, जबकि सामान्य नियम के अनुसार लक्ष्मी के साथ विष्णु की पूजा होनी चाहिए। चूंकि दीपावली पर पूजन में हमारी मुख्य भावना धन एवं समृद्धि प्राप्ति की होती है और धन की स्वामिनी लक्ष्मी है, इसलिए दीपावली पूजन में लक्ष्मी की ही प्रधानता मिली। लेकिन बिना बुद्धि के धन की प्राप्ति निरर्थक है और बुद्धि के दाता हैं - 'गणेश' ।अत: धन एवं बुद्धि दोनों की प्राप्ति हेतु ही लक्ष्मी के साथ गणेश पूजन का भी प्राविधान हुआ।
वैसे लक्ष्मी के साथ गणेश - पूजन की परम्परा के संबंध में अनेक दंतकथाएं प्रचलित हैं। एक दंत कथा के अनुसार एक राजा ने किसी लकड़हारे को चंदन का एक जंगल पुरस्कार में दे दिया। किंतु उस लकड़हारे में चंदन के गुण एवं महत्व को समझाने की बुद्धि नहीं थी। फलस्वरूप उसने चंदन के जंगल को काट - काट कर जला डाला और पुन: वह पहले जैसा हो गरीब हो गया। यहां यह बात ध्यान देने योग्य है कि उस लकड़हारे को धन के रूप में चंदन का जंगल प्राप्त हो गया, किंतु बुद्धि के अभाव में उसने कीमती चंदन की लकड़ी को काटकर जला डाला। यह देखकर राजा समझ गया कि बिना बुद्धि के धन को सुरक्षित नहीं रखा जा सकता है। अत: तभी से बुद्धि के दाता गणेश की भी पूजा लक्ष्मी के साथ की जाने लगी।
File Photo of डॉ.गणेश पाठक (पर्यावरणविद्)
एक अन्य कथा के अनुसार एक बार एक साधु को राजसी सुख भोगने की इच्छा हुई। अपनी इच्छा की पूर्ति हेतु उसने लक्ष्मी की कठोर तपस्या प्रारंभ की। उस साधु की तपस्या से प्रसन्न होकर लक्ष्मी ने उस साधु को राज - सुख भोगने का बरदान दे दिया। वरदान प्राप्त कर साधु राज दरबार में गया और राजा के पास जाकर राजा के राज मुकुट को नीचे गिरा दिया। यह देखकर राजा क्रोध से कांपने लगा। किंतु उसी क्षण उस राज मुकुट से एक सर्प निकल कर बाहर चला गया। यह देखकर राजा का क्रोध शांत हो गया और प्रसन्न होकर राजा ने अपना मंत्री बनाने का प्रस्ताव रखा। साधु ने राजा का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और मंत्री बन गया। कुछ समय बाद उस साधु ने राजमहल में आकर सबको राजमहल से बाहर जाने का आदेश दे दिया। चूंकि राज दरबार के सभी लोग उस साधु के चमत्कार को देख चुके थे,अत: उसके कहने पर सभी लोग राज महल से बाहर निकल गये। जब सभी लोग राज महल से बाहर आ गये तो राज महल स्वत: गिर कर ध्वस्त हो गया। इस घटना के बाद तो सम्पूर्ण राज्य - व्यवस्था का कार्य उस साधु के इशारे पर ही होने लगा किंतु वह अपने प्रभाव को देखकर घमंडी हो गया और वह अपने को सर्वे - सर्वा समझने लगा।
अपने घमंड में वशीभूत होकर एक दिन साधु ने राज महल के सामने स्थित गणेश की मूर्ति को वहां से हटा दिया,क्योकिउसकी दृष्टि में यह मूर्ति राज महल के सौन्दर्य को बिगाड़ रही थी। अपने इसी घमंड में एक दिन साधु ने राजा से कहा कि उसके कुर्ते में सांप है,अत: वह कुर्ता उतार दें। राजा ने पूर्व घटनाओं के आधार पर भरे दरबार में अपना कुर्ता उतार दिया, किं राजा के कुर्ता में से सांप नहीं निकला। फलत: राजा बहुत नाराज़ हुआ और उसने साधु कै मंत्री पद से हटाकर जेल में डाल दिया। इस घटना से साधु बहुत दु:खी हुआ और उसने पुन: लक्ष्मी की तपस्या प्रारम्भ कर दी। लक्ष्मी ने साधु को स्वप्न दिया कि उसने गणेश की मूर्ति को हटाकर गणेश जी को नाराज कर दिया है । इसी लिए उस पर यह विपत्ति आई है, क्योंकि गणेश जी के नाराज हो जाने से उसकी बुद्धि नष्ट हो गयी है। धन एवं लक्ष्मी की प्राप्ति हेतु बुद्धि आवश्यक है। अब जब तुम्हारे पास बुद्धि ही नहीं रही तो लक्ष्मी भी तुम्हारे पास से चली गयी। जब साधु ने स्वप्न में यह बात जानी तो उस अपने किए पर बहुत ही पश्चाताप हुआ।
जब साधु को अपनी ग़लती का अहसास हो गया और अपनी ग़लती पर पश्चात्ताप किया तो अगले ही दिन राजा भी जेल में जाकर साधु से अपनी ग़लती के लिए क्षमा मांगी और उसे जेल से निकाल कर पुन: मंत्री बना दिया। पुन : मंत्री बनने पर साधु ने पुन: उसी स्थान पर गणेश जी की मूर्ति को स्थापित करवाया और सर्व साधारण को यह बताया कि सुख पूर्वक रहने के लिए ज्ञान एवं समृद्धि दोनों ज़रूरी है। इसलिए लक्ष्मी एवं गणेश दोनों की पुष्टि पूजा एक साथ करना चाहिए। तभी से लक्ष्मी एवं गणेश की एक साथ पूजा कि परम्परा कायम हो गयी।