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    सत्यानाशी के पौधे का औषधीय उपयोग : SKGupta




    उत्तर प्रदेश बलिया 
    इनपुट: हिमांशु शेखर 


    बलिया उत्तरप्रदेश:--भारत में "सत्यानाशी" का पौधा हर जगह पैदा होता हैं।  यह एक कांटेदार पौधा हैं। इसके किसी भी भाग को तोड़ने से उसमें से स्वर्ण सदृश, पीतवर्ण (पीले रंग) का दूध निकलता हैं, इसलिए इसे स्वर्णक्षीरी भी कहते हैं। सत्यानाशी का पौधा औषधीय गुणों से भरपूर माना जाता है।इसके फूल, पत्तियों और जड़ों में गजब के गुण पाए जाते हैं ।इस पौधे का उपयोग आयुर्वेद में सदियों से किया जा रहा है।

    सत्यानाशी के पौधे का औषधीय उपयोग :-

    • त्वचा रोगों में – इसके दूधिया रस का उपयोग खुजली, फोड़े-फुंसी और अन्य त्वचा रोगों के इलाज के लिए किया जाता हैं।

    जोड़ों के दर्द में – इसके तेल और अर्क को जोड़ों के दर्द और सूजन में लाभकारी माना जाता हैं।

    कफ और अस्थमा में – इसके अर्क का उपयोग श्वसन संबंधी समस्याओं में किया जाता हैं।

    कुष्ठ रोग में – आयुर्वेद में तथा भारतीय समाज में इसका प्रयोग कुष्ठ रोगों में भी किया जाता रहा हैं।

    घाव भरने में – यह इतना गुणी पौधा हैं कि कितना भी पुराना घाव हो उसे चुटकियों में ठीक कर देता हैं। यह बांझपन में भी उपयोगी हैं।

    यकृत विकारों में – पारंपरिक आयुर्वेद में इसे लीवर रोगों के इलाज के लिए उपयोग किया जाता हैं।

    नियंत्रण और सावधानियाँ :-
    सत्यानाशी का पौधा विषाक्त होने के कारण खेती के लिए उपयुक्त भूमि से हटा दिया जाता है, और इसके औषधीय उपयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर ले।

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