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    सृष्टि की रचना पांच तत्वों से हुई है : Santosh Kumar gupta



    उत्तर प्रदेश बलिया 
    इनपुट: हिमांशु शेखर 
    बलिया:---प्राचीन समय से ही विद्वानों का मत रहा है कि इस सृष्टि की संरचना पांच तत्वों से मिलकर हुई है सृष्टि में इन पंचतत्वों का संतुलन बना हुआ है‌

    यदि यह संतुलन बिगड़ गया तो यह प्रलयकारी हो सकता है जैसे यदि प्राकृतिक रुप से जलतत्व की मात्रा अधिक हो जाती है तो पृथ्वी पर चारों ओर जल ही जल हो सकता है अथवा बाढ़ आदि का प्रकोप अत्यधिक हो सकता हैआकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को पंचतत्व का नाम दिया गया है माना जाता है कि मानव शरीर भी इन्हीं पंचतत्वों से मिलकर बना है वास्तविकता में यह पंचतत्व मानव की पांच इन्द्रियों से संबंधित है जीभ, नाक, कान, त्वचा और आँखें हमारी पांच इन्द्रियों का काम करती है इन पंचतत्वों को पंचमहाभूत भी कहा गया है इन पांचो तत्वों के स्वामी ग्रह, कारकत्व, अधिकार क्षेत्र आदि भी निर्धारित किये गये हैं...
    (1) आकाश
    आकाश तत्व का स्वामी ग्रह गुरु हैआकाश एक ऎसा क्षेत्र है जिसका कोई सीमा नहीं है पृथ्वी के साथ-साथ समूचा ब्रह्मांड इस तत्व का कारकत्व शब्द है इसके अधिकार क्षेत्र में आशा तथा उत्साह आदि आते हैं वात तथा कफ इसकी धातु है वास्तु शास्त्र में आकाश शब्द का अर्थ रिक्त स्थान माना गया है आकाश का विशेष गुण “शब्द” है और इस शब्द का संबंध हमारे कानों से है कानों से हम सुनते हैं और आकाश का स्वामी ग्रह गुरु है इसलिए ज्योतिष शास्त्र में भी श्रवण शक्ति का कारक गुरु को ही माना गया है शब्द जब हमारे कानों तक पहुंचते हैं तभी उनका कुछ अर्थ निकलता है वेद तथा पुराणों में शब्द, अक्षर तथा नाद को ब्रह्म रुप माना गया है वास्तव में आकाश में होने वाली गतिविधियों से गुरुत्वाकर्षण, प्रकाश, ऊष्मा, चुंबकीय़ क्षेत्र और प्रभाव तरंगों में परिवर्तन होता है इस परिवर्तन का प्रभाव मानव जीवन पर भी पड़ता है इसलिए हमें इसके महत्व को कभी नहीं भूलना चाहिए आकाश का देवता भगवान शिवजी को माना गया है...
    (2) वायु
    वायु तत्व के स्वामी ग्रह शनि हैं इस तत्व का कारकत्व स्पर्श है इसके अधिकार क्षेत्र में श्वांस क्रिया आती है वात इस तत्व की धातु है यह धरती चारों ओर से वायु से घिरी हुई है संभव है कि वायु अथवा वात का आवरण ही बाद में वातावरण कहलाया हो वायु में मानव को जीवित रखने वाली आक्सीजन गैस मौजूद होती है जीने और जलने के लिये आक्सीजन बहुत जरुरी है इसके बिना मानव जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है यदि हमारे मस्तिष्क तक आक्सीजन पूरी तरह से नहीं पहुंच पाई तो हमारी बहुत सी कोशिकाएँ नष्ट हो सकती हैं व्यक्ति अपंग अथवा बुद्धि से जड़ हो सकता है प्राचीन समय से ही विद्वानों ने वायु के दो गुण माने हैं वह है शब्द तथा स्पर्श स्पर्श का संबंध त्वचा से माना गया है संवेदनशील नाड़ी तंत्र और मनुष्य की चेतना श्वांस प्रक्रिया से जुड़ी है और इसका आधार वायु है वायु के देवता भगवान विष्णु माने गये हैं...
    (3) अग्नि
    सूर्य तथा मंगल अग्नि प्रधान ग्रह होने से अग्नि तत्व के स्वामी ग्रह माने गये हैंअग्नि का कारकत्व रुप है इसका अधिकार क्षेत्र जीवन शक्ति है इस तत्व की धातु पित्त है हम सभी जानते हैं कि सूर्य की अग्नि से ही धरती पर जीवन संभव है यदि सूर्य नहीं होगा तो चारों ओर सिवाय अंधकार के कुछ नहीं होगा और मानव जीवन की तो कल्पना ही नहीं की जा सकती है सूर्य पर जलने वाली अग्नि सभी ग्रहों को ऊर्जा तथा प्रकाश देती है इसी अग्नि के प्रभाव से पृथ्वी पर रहने वाले जीवों के जीवन के अनुकूल परिस्थितियाँ बनती हैं शब्द तथा स्पर्श के साथ रुप को भी अग्नि का गुण माना जाता है रुप का संबंध नेत्रों से माना गया है ऊर्जा का मुख्य श्रोत अग्नि तत्व है सभी प्रकार की ऊर्जा चाहे वह सौर ऊर्जा हो या आणविक ऊर्जा हो या ऊष्मा ऊर्जा हो सभी का आधार अग्नि ही हैअग्नि के देवता सूर्य अथवा अग्नि को ही माना गया है...
    (4) जल
    चंद्र तथा शुक्र दोनों को ही जलतत्व ग्रह माना गया है इसलिए जल तत्व के स्वामी ग्रह चंद्र तथा शुक्र दोनों ही हैं इस तत्व का कारकत्व रस को माना गया है इन दोनों का अधिकार रुधिर अथवा रक्त पर माना गया है क्योंकि जल तरल होता है और रक्त भी तरल होता है कफ धातु इस तत्व के अन्तर्गत आती है विद्वानों ने जल के चार गुण शब्द, स्पर्श, रुप तथा रस माने हैं यहाँ रस का अर्थ स्वाद से है स्वाद या रस का संबंध हमारी जीभ से है ।पृथ्वी पर मौजूद सभी प्रकार के जल स्त्रोत जल तत्व के अधीन आते हैं जल के बिना जीवन संभव नहीं  है जल तथा जल की तरंगों का उपयोग विद्युत ऊर्जा के उत्पादन में किया जाता है हम यह भी भली-भाँति जानते हैं कि विश्व की सभी सभ्यताएँ नदियों के किनारे ही विकसित हुई हैं जल के देवता वरुण तथा इन्द्र को माना गया है मतान्तर से ब्रह्मा जी को भी जल का देवता माना गया है...
    (5) पृथ्वी
    पृथ्वी का स्वामी ग्रह बुध है इस तत्व का कारकत्व गंध है इस तत्व के अधिकार क्षेत्र में हड्डी तथा माँस आता है इस तत्व के अन्तर्गत आने वाली धातु वात, पित्त तथा कफ तीनों ही आती हैं विद्वानों के मतानुसार पृथ्वी एक विशालकाय चुंबक है इस चुंबक का दक्षिणी सिरा भौगोलिक उत्तरी ध्रुव में स्थित है संभव है इसी कारण दिशा सूचक चुंबक का उत्तरी ध्रुव सदा उत्तर दिशा का ही संकेत देता है पृथ्वी के इसी चुंबकीय गुण का उपयोग वास्तु शास्त्र में अधिक होता है इस चुंबक का उपयोग वास्तु में भूमि पर दबाव के लिये किया जाता है वास्तु शास्त्र में दक्षिण दिशा में भार बढ़ाने पर अधिक बल दिया जाता है हो सकता है इसी कारण दक्षिण दिशा की ओर सिर करके सोना स्वास्थ्य के लिये अच्छा माना गया है यदि इस बात को धर्म से जोड़ा जाये तो कहा जाता है कि दक्षिण दिशा की ओर पैर करके ना सोयें, क्योंकि दक्षिण में यमराज का वास होता है पृथ्वी अथवा भूमि के पाँच गुण शब्द, स्पर्श, रुप, स्वाद तथा आकार माने गये हैंआकार तथा भार के साथ गंध भी पृथ्वी का विशिष्ट गुण है क्योंकि इसका संबंध नासिका की घ्राण शक्ति से है.., पंचतत्व मानव जीवन को अत्यधिक प्रभावित करते हैं उनके बिना मानव तो क्या धरती पर रहने वाले किसी भी जीव के जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती है इन पांच तत्वों का प्रभाव मानव के कर्म, प्रारब्ध, भाग्य तथा आचरण पर भी पूरा पड़ता है जल यदि सुख प्रदान करता है तो संबंधों की ऊष्मा सुख को बढ़ाने का काम करती है और वायु शरीर में प्राण वायु बनकर घूमती है आकाश महत्वाकांक्षा जगाता है तो पृथ्वी सहनशीलता व यथार्थ का पाठ सिखाती है यदि देह में अग्नि तत्व बढ़ता है तो जल की मात्रा बढ़ाने से उसे संतुलित किया जा सकता है यदि वायु दोष है तो आकाश तत्व को बढ़ाने से यह संतुलित रहेगें....

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