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    सत्यानाशी के पौधे का औषधीय उपयोग और सेवन विधि जानिए : SKGupta



    उत्तर प्रदेश बलिया 
    इनपुट: अमीत कुमार गुप्ता 

    बलिया उत्तरप्रदेश:---सत्यानाशी एक कांटेदार पौधा हैं। इसके किसी भी भाग को तोड़ने से उसमें पीले रंग (स्वर्ण सदृश) का दूध निकलता हैं, इसलिए इसे "स्वर्णक्षीरी" भी कहते हैं। सत्यानाशी का फल चौकोर, कांटेदार, प्याले जैसा होता हैं। जिनमें राई की तरह छोटे-छोटे काले बीज भरे रहते हैं, जो आग में डालने पर भड़-भड़ की आवाज करते हैं, इसलिए इसे भड़भांड़, भटकटैया या भड़भड़वा भी कहते हैं। आयुर्वेदिक ग्रंथ "भावप्रकाश निघण्टु" में इस वनस्पति का नाम "स्वर्णक्षीरी" या "कटुपर्णी" बताया गया हैं। प्रायः यह खेतों में पानी की नाली, मेड़ आदि पर पाया जाता हैं।

    सत्यानाशी के पौधे का औषधीय उपयोग :-

    1. कुष्ठ रोग में :- आयुर्वेद में तथा भारतीय समाज में इसका प्रयोग कुष्ठ रोगों में भी किया जाता रहा हैं।

    2. त्वचा रोगों में :- इसके दूधिया रस का उपयोग खुजली, फोड़े-फुंसी और अन्य त्वचा रोगों के इलाज के लिए किया जाता हैं।

    3. जोड़ों के दर्द में :- इसके तेल और अर्क को जोड़ों के दर्द और सूजन में लाभकारी माना जाता हैं।

    4. कफ और अस्थमा में :- इसके अर्क का उपयोग श्वसन संबंधी समस्याओं में किया जाता हैं।

    5. घाव भरने में :- यह इतना गुणी पौधा हैं कि कितना भी पुराना घाव हो उसे चुटकियों में ठीक कर देता हैं।

    नियंत्रण और सावधानियाँ :-
    इसे खेती योग्य भूमि से हटाया जाता हैं क्योंकि यह विषाक्त होता हैं और पशुओं के लिए हानिकारक हो सकता हैं। इसका उपयोग औषधीय रूप में करने से पहले किसी विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।

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