उत्तर प्रदेश बलिया
इनपुट: हिमांशु शेखर
बलिया उत्तरप्रदेश:--एक कहानी आती है। एक आम का बगीचा था। उसमें बंदर आम खाने लगे तो बागमें रखवाली करनेवालों ने उनको पत्थर मारकर भगा दिया।
जाते-जाते बन्दरो में एक-एक आम मुंह में और एक-एक आम हाथ में ले लिया और भाग गए।उनसबने मीटिंगकी कि ये दुष्ट हमें आम खाने नहीं देते !
उनमें से कुछ समझदार बंदर बोले कि वह अपने बगीचे में आम कैसे खाने देंगे ?यदि हमभी एक बगीचा लगाले तो फिर हमें आम खानेसे कोई मना नहीं करेगा।
उन्होंने सोचा कि गुठली तो हैं ही,इनका बगीचा लगा लें!गुठली गाड़ दें और पानी देदें तो बगीचा तैयार होजाएगा फिर खूब आमखाएंगे !सर्व सम्मति से प्रस्ताव पास हो गया।
एक नदी बह रही थी , उसके किनारे गुठलियां गाड़ दीं।
अब वे बार - बार गुठलियों को निकाल कर देखते हैं कि आम अभी हुआ कि नहीं और उनको पुनः गाड़ देते हैं !
शाम तक वे इसी प्रकार गुठलियों को निकालते हैं तथा गाड़ते रहे!क्या इस प्रकार आम की खेती हो जाएगी ?
खेती करनी हो तो बीज बोकर पानी दे दो और निश्चिंत हो जाओ।जो अभी नहीं है वह भी निश्चिंत होने से पैदा हो जाएगा, फिर जो सच्ची बात है, वह सिद्ध क्यों नहीं होगी ?
हम भगवान के हैं और भगवान हमारे हैं यह बात सच्ची और स्वत: सिद्ध है। इसको माननेमें क्या परिश्रम आता है ? क्या जोर पड़ता है ? क्या किसी विद्या की आवश्यकता है ?
कोई योग्यता चाहिए ?
सीधी बात है कि हम भगवान के हैं, भगवान हमारे हैं; हम संसार के नहीं हैं, संसार हमारा नहीं है।अब आप इसे आम की गुठली की तरह उखाड़े नहीं अर्थात कभी परीक्षा न करें कि हमारे में कुछ फर्क पड़ा कि नहीं ?
अंकुर फूटा कि नहीं ?
फिर वृक्ष उग जायेगा, आम भी लग जाएंगे, सब बढ़िया हो जाएगा !परंतु कृपा करो कि इस बातको हटाओ मत।यह भगवत प्राप्तिका बहुत सुगम उपाय है और कुछ नहीं करना है।
बस, 'मैं भगवान का और भगवान मेरे' इस निश्चय को अपनी तरफ से हटाना नहीं है।