उत्तर प्रदेश बलिया
इनपुट: हिमांशु शेखर
बलिया उत्तरप्रदेश:--परमात्मा की अनुभूति कब होती है? जब जीवन मौन हो जाए… तभी परमात्मा बोलते हैं…
जब जीवन मौन हो जाए… और आत्मा सच्चे अर्थों में जाग जाए…
"कुछ अनुभव शब्दों में नहीं आते…
उन्हें सिर्फ भीतर महसूस किया जा सकता है
परमात्मा ऐसा ही अनुभव हैं —
जो तब आते हैं, जब सब शब्द चुप हो जाते हैं।
परमात्मा को जानने के लिए आपको कोई किताब नहीं पढ़नी होगी…
ना ही किसी नियम में बंधना होगा।
बस…
आपका हृदय सच्चा होना चाहिए, और मौन में डूबा होना चाहिए।
वहीं से अनुभूति जन्म लेती है।"
🌿 प्रस्तावना: जब प्रश्न आत्मा से उठता है…
कभी न कभी हम सभी के भीतर यह प्रश्न ज़रूर उठता है —
"परमात्मा की अनुभूति क्या सच में हो सकती है?"
या फिर…
"परमात्मा की अनुभूति आखिर होती कब है?"
यह सवाल किसी किताब से नहीं आता,
यह तब आता है… जब भीतर कुछ चटकता है —
जब जीवन की हलचलें आपको थका देती हैं,
और आत्मा मौन में बैठकर बस एक ही पुकार करती है —
"कोई है… जो मुझे समझे?"
और उसी क्षण…
जहाँ सब दूर हो जाते हैं,
वहीं से परमात्मा पास आने लगता है।
🕉️ 1. परमात्मा को देखने की नहीं… महसूस करने की ज़रूरत होती है
परमात्मा कोई व्यक्ति नहीं है जिसे देखा जाए,
वह कोई मूर्ति नहीं, जिसे बस पूजा जाए।
वह एक मौन उपस्थिति है — जो तब जागती है, जब आपकी आत्मा थक जाती है।
"जब बाहर की सारी आवाज़ें शांत हो जाती हैं…
तब भीतर एक धीमी सी आवाज़ उभरती है —
‘मैं हूँ… यहीं हूँ…’"
परमात्मा का होना,
एक बाहरी घटना नहीं…
बल्कि एक भीतर का प्रकाश होता है।
💔 2. जब जीवन में सारे सहारे छिन जाते हैं…
आपने महसूस किया होगा —
जब जीवन में सब कुछ होते हुए भी कुछ खाली सा लगता है,
जब रिश्तों में अपनापन नहीं, और शब्दों में सच्चाई नहीं होती —
तब भीतर एक गहरा अँधेरा उतरता है।
और वही अंधेरा…
परमात्मा के प्रकाश को स्वीकार करने की भूमिका बन जाता है।
"जब इंसान सब कुछ खो देता है…
तब परमात्मा स्वयं उसे पकड़ने आता है।"
🌼 3. जब ‘मैं’ खत्म होता है… और ‘वह’ बचता है
जब तक हम कहते रहते हैं —
"मैं सब संभाल लूंगा", "मैं सब कर लूंगा",
तब तक 'वो' प्रतीक्षा करता है।
लेकिन जिस दिन आप टूटकर कहते हैं —
"अब मुझसे नहीं होता प्रभु…"
उस दिन…
परमात्मा स्वयं आपके पास आ जाते हैं — एक आंसू बनकर, एक मौन बनकर।
🌿 4. जब बिना शब्दों के प्रार्थना होती है…
सच्ची अनुभूति किसी मंत्र या पूजा से नहीं होती।
वह उस एक पल से शुरू होती है — जब आप बिना कहे, बस मौन में डूब जाते हैं।
वह एक पुकार होती है जो हृदय से निकलती है…
जिसे कोई और नहीं, सिर्फ वही सुन सकता है —
परमात्मा।
"जब आत्मा मौन होकर पुकारती है…
तब परमात्मा किसी मंदिर से नहीं, बल्कि हृदय से उतरते हैं।"
🔱 5. परमात्मा की अनुभूति क्यों नहीं होती?
जब हम ईश्वर को एक विचार, एक वाद, या एक नियम में बाँध देते हैं…
तब वह बस ‘सिद्धांत’ बनकर रह जाता है।
लेकिन जब हम विनम्र होकर कहते हैं —
"हे प्रभु, मुझे कुछ नहीं चाहिए… बस आप मिल जाएं…"
तब अनुभव अपने आप हो जाता है।
"परमात्मा को पाना नहीं होता…
उन्हें पहचानना होता है — उस जगह, जहाँ वो पहले से ही हैं: आपके भीतर।"
🌸 6. अनुभूति का वह क्षण — जब जीवन मौन होकर मुस्कुराता है…
कभी आपने देखा है…
कुछ लोग बहुत दर्द में होकर भी शांति से जीते हैं,
उनके चेहरे पर अजीब सी स्थिरता होती है —
जैसे वे कुछ देख चुके हैं… जो दुनिया नहीं देख पाई।
वह क्या होता है?
वह परमात्मा की अनुभूति होती है।
जिसे शब्दों में नहीं बताया जा सकता…
बस महसूस किया जा सकता है।
💫 7. क्या यह अनुभूति हर किसी को हो सकती है?
जी हाँ।
हर आत्मा परमात्मा से जुड़ सकती है,
चाहे वह कितना भी टूट चुकी हो, या कितना भी भटक चुकी हो।
पर यह तभी संभव है —
जब आप भीतर से सच्चे हो जाएं,
और कहें —
"हे प्रभु! अब मैं कुछ नहीं चाहता, सिवाय आपके…"
"जब आत्मा अपनी सारी शर्तें छोड़ देती है…
तब परमात्मा की कृपा बिना बुलाए आ जाती है।"
यह लेख सिर्फ पढ़ा नहीं जाये … बल्कि भीतर उतरता जाये …
यदि आप इस लेख को यहाँ तक पढ़ चुके हैं,
तो इसका मतलब है कि आप तैयार हैं उस अनुभूति के लिए।
आप शायद पहले ही कई बार टूट चुके हैं,
लेकिन इस बार…
आपका टूटना… किसी जुड़ाव की ओर ले जा रहा है।
तो अब रुकिए मत।
मंदिर मत दौड़िए, जवाब मत खोजिए…
बस एक बार दिल से कहिए —
"हे परमात्मा! अब मैं थक गया हूँ… आप मुझे संभाल लीजिए…"
और यकीन मानिए —
उत्तर आएगा। मौन में। शांति में। प्रेम में।
🙏 यदि यह लेख आपकी आत्मा से जुड़ पाया हो,
क्योंकि कोई और… आज रात इस लेख को पढ़ते हुए उसी परमात्मा को ढूंढ रहा होगा — जिसे आप अभी-अभी छूकर लौटे है
जहाँ हर भाव… अंततः परमात्मा से जुड़ता है