Type Here to Get Search Results !

custum trend menu

Stories

    भृंगराज का परिचय किन-किन बीमारियों में और कैसे सेवन विधि रहती है(विस्तार से): SKGupta

    उत्तर प्रदेश बलिया 
    इनपुट: हिमांशु शेखर 

    बलिया उत्तरप्रदेश:---भृंगराज, जिसे वैज्ञानिक रूप से एक्लिप्टा अल्बा (Eclipta alba) के नाम से जाना जाता है, आयुर्वेद की एक महत्वपूर्ण औषधि है। इसे आमतौर पर "केशराज" या "घमरा" के नाम से भी जाना जाता है। यह भारत, चीन, थाईलैंड और ब्राजील जैसे देशों में नम स्थानों पर बहुतायत में पाया जाता है।

    भृंगराज का परिचय:

    पौधे की पहचान: यह एक झाड़ीनुमा पौधा होता है जिस पर सफेद रंग के छोटे फूल आते हैं। इसकी #पत्तियां लेंस के आकार की होती हैं।

     आयुर्वेदिक महत्व: आयुर्वेद में भृंगराज को "रसायन" (कायाकल्प करने वाला) और "केश्य" (बालों के लिए फायदेमंद) माना गया है। प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों जैसे चरक संहिता और सुश्रुत संहिता में भी इसका उल्लेख मिलता है।

      पोषक तत्व: भृंगराज में विभिन्न प्रकार के अल्कलॉइड्स, फ्लेवोनोइड्स, सैपोनिन्स और कूमरिन्स जैसे बायोएक्टिव यौगिक पाए जाते हैं जो इसके औषधीय गुणों के लिए जिम्मेदार होते हैं।

    किन-किन बीमारियों में और कैसे सेवन विधि रहती है
     (विस्तार से):

    भृंगराज का उपयोग विभिन्न बीमारियों में अंदरूनी (सेवन) और बाहरी (लेप/तेल) दोनों तरह से किया जाता है। यहाँ कुछ प्रमुख बीमारियाँ और उनके सेवन की विधियाँ दी गई हैं:

    बालों से संबंधित समस्याएं (बालों का झड़ना, सफेद होना, गंजापन):

    परिचय: भृंगराज बालों के स्वास्थ्य के लिए सबसे प्रसिद्ध है। यह बालों को मजबूत बनाता है, उनका झड़ना कम करता है, असमय सफेद होने से रोकता है और नए बालों के विकास को बढ़ावा देता है।

    सेवन विधि:

    भृंगराज तेल: यह सबसे सामान्य उपयोग है। भृंगराज के पत्तों को तिल या नारियल के तेल में पकाकर तेल बनाया जाता है। इस तेल से नियमित रूप से बालों और स्कैल्प पर मालिश करें। इसे रात भर लगाकर सुबह धो सकते हैं, या धोने से कुछ घंटे पहले लगा सकते हैं।

    भृंगराज पाउडर: 1-2 चम्मच भृंगराज पाउडर को पानी या दही के साथ मिलाकर बालों की जड़ों में लेप लगा सकते हैं। इसे 30-45 मिनट के लिए लगाकर रखें और फिर धो लें।

    आंतरिक सेवन (पाउडर): 1-2 ग्राम भृंगराज पाउडर को गुनगुने पानी के साथ दिन में एक या दो बार ले सकते हैं।

    लिवर संबंधी समस्याएं (पीलिया, फैटी लिवर, लिवर डिटॉक्स):

    परिचय: भृंगराज को लिवर के लिए एक उत्कृष्ट टॉनिक माना जाता है। यह लिवर के कार्य को सुधारता है, विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करता है और लिवर की कोशिकाओं को नुकसान से बचाता है। इसमें हेपेटोप्रोटेक्टिव गुण होते हैं।

     सेवन विधि:

    ताजा रस: भृंगराज के ताजे पत्तों का रस निकालकर 5-10 मिलीलीटर दिन में एक या दो बार लिया जा सकता है।

     पाउडर: 1-3 ग्राम भृंगराज पाउडर को शहद या गुनगुने पानी के साथ दिन में एक या दो बार ले सकते हैं।

    पाचन संबंधी समस्याएं (कब्ज, अपच, दस्त)

     परिचय: भृंगराज पाचन तंत्र को मजबूत बनाने में मदद करता है। यह कब्ज को दूर करने, अपच को सुधारने और दस्त को नियंत्रित करने में सहायक हो सकता है।

     सेवन विधि:

    पाउडर: 1-2 ग्राम भृंगराज पाउडर को गुनगुने पानी के साथ रात को सोने से पहले या सुबह खाली पेट ले सकते हैं। दस्त की स्थिति में इसे दिन में 2-3 बार थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लिया जा सकता है।

     त्वचा संबंधी समस्याएं (मुँहासे, फुंसी, त्वचा का संक्रमण)

    परिचय: भृंगराज में एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-इन्फ्लेमेटरी और हीलिंग गुण होते हैं जो त्वचा के संक्रमण, मुँहासे और घावों को ठीक करने में मदद करते हैं।

     सेवन विधि:
    लेप/पेस्ट: भृंगराज की ताजी पत्तियों को पीसकर पेस्ट बना लें और इसे प्रभावित त्वचा पर लगाएं।

    पाउडर: भृंगराज पाउडर को गुलाब जल या पानी के साथ मिलाकर लेप के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं।

    डायबिटीज (रक्त शर्करा नियंत्रण)

     परिचय: कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि भृंगराज रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में सहायक हो सकता है, खासकर खाली पेट सेवन करने से इंसुलिन के उत्पादन को बढ़ावा मिल सकता है।

    सेवन विधि:

     ताजा पत्तियां: सुबह खाली पेट भृंगराज की कुछ ताजी पत्तियों को चबाकर खाया जा सकता है।

    पाउडर: 1-2 ग्राम भृंगराज पाउडर को गुनगुने पानी के साथ सुबह खाली पेट लिया जा सकता है।

     सूजन और दर्द (जोड़ों का दर्द, मांसपेशियों में ऐंठन)

     परिचय: भृंगराज में एंटी-इन्फ्लेमेटरी गुण होते हैं जो शरीर में सूजन और दर्द को कम करने में मदद करते हैं।

     सेवन विधि:

    आंतरिक सेवन (पाउडर): 1-2 ग्राम भृंगराज पाउडर को दिन में एक या दो बार गुनगुने पानी के साथ ले सकते हैं।

    बाहरी लेप: भृंगराज के पत्तों का पेस्ट या तेल सूजन वाले स्थान पर लगाया जा सकता है।

    कुछ महत्त्वपूर्ण सलाह व मात्रा:

     मात्रा: ऊपर बताई गई सेवन विधि सामान्य जानकारी है। व्यक्तिगत आवश्यकता और बीमारी की गंभीरता के आधार पर मात्रा भिन्न हो सकती है।

     चिकित्सकीय सलाह: किसी भी बीमारी के लिए भृंगराज का सेवन शुरू करने से पहले, विशेषकर यदि आप किसी अन्य बीमारी से ग्रस्त हैं या कोई दवा ले रहे हैं, तो किसी योग्य आयुर्वेदिक चिकित्सक से सलाह लेना अत्यंत महत्वपूर्ण है।

    शुद्धता: सुनिश्चित करें कि आप शुद्ध और अच्छी गुणवत्ता वाले भृंगराज का उपयोग कर रहे हैं।

    गर्भधारण और स्तनपान: गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को भृंगराज के सेवन से पहले डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।

    भृंगराज एक शक्तिशाली औषधि है, और सही तरीके से उपयोग करने पर यह कई स्वास्थ्य समस्याओं में लाभकारी हो सकता है।

    Bottom Post Ad

    Trending News