उत्तर प्रदेश बलिया
इनपुट: हिमांशु शेखर
बलिया उत्तरप्रदेश:---नदियां मात्र जल स्रोत ही नहीं, अपितु सभ्यता एवं संस्कृति की संवाहक हैं। सभ्यता एवं संस्कृति का विकास नदियों के किनारे ही हुआ है। खासतौर से प्राचीन सभ्यताएं नदी किनारे ही पुष्पित एवं पल्लवित हुई हैं। नदियां हमारी जीवन धारा हैं। नदियों पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभती हैं। यही कारण है कि नदियों को श्रद्धा की दृष्टि से देखा जाता है। खासतौर से भारत में तो नदियों की पूजा की जाती हैं। गंगा नदी को मां कहा जाता है। जिस तरह से मां हमारा भरण - पोषण करती है,उसी प्रकार नदियां भी अपने जल स्रोतों, नवीन मिट्टियों, परिवहन,कृषि, जीव - जंतुओं को प्रदान कर हमारा भरण- पोषण करती हैं। यही कारण है कि नदियों को जीवनदायिनी कहा जाता है। खासतौर से गंगा नदी के महत्व को देखते हुए ही गंगा नदी को राष्ट्रीय नदी घोषित किया गया। किंतु ये जीवनदायिनी नदियां हमारी विकासवादी नीति,अनियोजित एवं अनियंत्रित विकास, भोगवादी प्रवृत्ति एवं विलासितापूर्ण जीवन का शिकार हो गयी हैं, जिसके चलते गंगा नदी सहित भारत की प्राय: सभी नदियां इस कदर प्रदूषित हो गयी हैं कि इन नदियों का जल पीने को कौन कहे, स्नान करने योग्य भी नहीं रह गया है। गंगा नदी तो अपने देश की सबसे अधिक प्रदूषित नदी हो गयी है।
नदियों की हो रही इस दुर्दशा को देखते हुए ही 2005 में यह निर्णय लिया गया कि विश्व के सभी देशों द्वारा प्रत्येक वर्ष सितम्बर माह के चौथे रविवार को विश्व स्तर पर "विश्व नदी दिवस" मनाया जायेगा और नदियों सुरक्षा, संरक्षा एवं संरक्षण हेतु तथा प्रदूषण मुक्त करने एवं सतत प्रवाही बनाने हेतु विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जायेंगे, जन जागरुकता पैदा की जायेगी एवं जन सहभागिता निभाने हेतु विभिन्न प्रयास किए जायेंगे। इसके लिए प्रत्येक वर्ष एक मुख्य विषय ( थीम ) का निर्धारण किया जाता है और उस मुख्य विषय को ही केन्द्रित कर कार्यक्रम निर्धारित किए जाते हैं। इस वर्ष का मुख्य विषय "हमारी नदियां , हमारा भविष्य ' रखा गया है, ताकि अपने भविष्य को देखते हुए नदियों को सुरक्षित एवं संरक्षित कर तथा उसे प्रदूषण मुक्त कर सतत प्रवाही बनाया जा सके।
कितनी प्रदूषित हो गयी हैं हमारी नदियां? -
जहां तक अपने देश में नदी जल प्रदूषण की बात है तो पूरब से पश्चिम तक एवं उत्तर से दक्षिण तक प्राय: सभी नदियां प्रदूषण का शिकार हो गयी हैं। इनमें कुछ नदियां तो इतनी प्रदूषित हो गयी हैं कि उनका जल स्नान करने लायक भी नहीं रह गया है और ऐसे प्रदूषित नदियों में रहने वाले जलीय जीवों के लिए भी खतरा उत्पन्न हो गया है। भारत में लगभग 19,000 करोड़ घन मीटर जल उपयोग के लिए उपलब्ध है,
जिसका 86 प्रतिशत नदियों,झीलों,सरोवरों एवं तालाबों से प्राप्त होता है।नीरी(नागपुर) संस्थान के अनुसार अपने देश में उपलब्ध कुल जल का लगभग 90 प्रतिशत भाग प्रदूषित हो चुका है। योजना आयोग भी इस बात को स्वीकार करता है कि "उत्तर भारत की डल झील से लेकर दक्षिण की पेरियार एवं चलियार नदियों तक तथा पूरब में दामोदर तथा हुगली से लेकर पश्चिम की ढाणा नदी तक जल के प्रदूषण की स्थिति समान रूप से भयावह है"।
केन्द्रीय जल आयोग द्वारा किए गये एक अध्ययन के अनुसार अपने देश की 81 नदियों एवं उसकी सहायक जल धाराओं में भारी धातुओं मी मात्रा निर्धारित मात्रा की अपेक्षा से अधिक हो गयी है। अध्ययन से यह पता चला है कि भारत की 2 2 नदियों एवं उसकी सहायक जलधाराओं में दो या उससे अधिक हानिकारक धातुओं के विद्यमान होने की पुष्टि हुई है। इन नदियों से 37 निगरानी स्टेशनों से लिए गए जल के धमूनों में आर्सेनिक, कैडियम, क्रोमियम, तांबा, लोहा, सीसा, पारा एवं निकिल जैसी जहरीली धातुओं ह स्तर सुरक्षित सीमा से अत्यधिक पाया गया है। यह जानकारी अगस्त, 2024 में प्रकाशित एक अध्ययन के रिपोर्ट में दी गयी है। अध्ययन से इस बात की भी जानकारी हुई है कि 14 नदियों के 30 स्टेशनों पर आर्सेनिक विद्यमान है। जबकि 19 नदियों में 18 जगहों पर पारा एवं 16 नदियों के 16 स्टेशनों पर लिए गये जल के नमूनों में क्रोमियम मिलने की पुष्टि हुई है। रिपोर्ट के अनुसार 13 राज्यों के 99 जिलों में क्रोमियम, आर्सेनिक, कैडमियम , तांबा , लोहा , सीसा, पारा एवं निकिल जैसी जहरीली धातुओं की मात्रा निर्धारित स्तर से बहुत अधिक पाया गया है।
रिपोर्ट के अनुसार गंगा बेसिन की स्थिति भी बहुत खराब है। गंगा बेसिन में निगरानी की गयी 61 जगहों में से लगभग 47 जगहों अर्थात् 75 प्रतिशत जगहों पर भारी वस्तुओं का स्तर सुरक्षित सीमा से अधिक है।
नदी जल प्रदूषण का कारण :--अपने देश में नदी जल प्रदूषण का प्रमुख कारण घरेलू बहि:स्राव,कृषि बहिःस्राव, उष्मीय या तापीय बहि:स्राव
गैसीय अपशिष्ट एवं रेडियो एक्टिव अपशिष्ट तथा अवपात का नदियों में येन- केन प्रकारेण गिरना है, जिससे ये अपशिष्ट पदार्थ नदियों के जल में मिलकर नदियों के जल को प्रदूषित कर देते हैं और नतीजा यह है कि अब पीने को कौन कहे, नदियों का जल स्नान करने योग्य भी नहीं रह गया है।
वर्तमान समय में भारत की लगभग 70 प्रतिशत नदियां प्रदूषण की दृष्टि से संकट मे हैं,जिनमें गंगा,यमुना,दामोदर,सोन, कृष्णा, कावेरी, नर्मदा,माही, गोमती, ताप्ती,चम्बल, पेरियार एवं चलियार प्रमुख रूप से प्रदूषित हो चुकी हैं।
भारत की नदियों में गंगा सबसे प्रदूषित नदी हो गयी है। गंगा बेसिन में देश की लगभग 45 करोड़ जनसंख्या निवास करती है। गंगा बेसिन में लगभग 725 नगर स्थित हैं,जिनमें से 48 प्रथम श्रेणी के नगर हैं एवं 60 द्वितीय श्रेणी के नगर हैं। गंगा नदी के किनारे छोटे - बड़े 425 औद्योगिक कारखाने हैं। प्रतिदिन कारखानों से नि:सृत 5.25 करोड़ गैलन प्रदूषित जल गंगा नदी में गिरकर गंगा नदी के जल को अति प्रदूषित कर रहा है। खासतौर से नगरों से निकलने वाला सिवरेज, औद्योगिक अपशिष्ट एवं गैर- अप घटीय प्लास्टिक में लिपटे प्रसाद भी गंगा नदी में छोड़े जाते है,जिससे गंगा नदी में प्रदूषण को अधिक बढ़ावा मिलता है। वाराणसी से गुजरने एवं नगर से कच्चे सीवेज की लगभग 32 धाराओं प्राप्त करने के पश्चात गंगा नदी के जल में फोकल कालीफार्म की सान्द्रता 60,000 से बढ़कर 1.5 मिलियन हो जाती है,जिससे 100 मिलियन प्रति 100 मिली का अधिकतम मान प्राप्त हुआ है। फलस्वरूप गंगा जल में पीने एवं स्नान करने से संक्रमण के उच्च जोखिम का सामना करना पड़ रहा है।यद्यपि वैज्ञानिकों का मानना है कि गंगा नदी का 25 प्रतिशत जल प्रदूषित हो चुका है, किंतु वास्तविकता इससे कहीं अधिक है। गंगा जल के प्रदूषित होने का मुख्य कारण जैविक एवं रासायनिक पदार्थों से युक्त दूषित जल है,जो नगरों एवं औद्योगिक कारखानों से मिलकर निरन्तर गंगा में मिलता रहता है। एक अनुमान के अनुसार प्रतिदिन कारखानों से नि:सृत 5.25 करोड़ गैलन प्रदूषित जल गंगा में मिलता है। यद्यपि कि गंगा नदी के जल में स्वयं शुद्ध होने की क्षमता है,इसके बावजूद भी यह देश की सबसे अधिक प्रदूषित नदी बन गयी है। गंगा का लगभग 600 किलोमीटर लम्बा भाग सबसे अधिक प्रदूषित है।
बलिया में नदी जल प्रदूषण -
जहां तक बलिया मे नदी जल प्रदूषण की बात है तो बलिया में भी गंगा प्रदूषण से मुक्त नहीं है। गंगा नदी में बलिया नगर सहित गंगा नदी के किनारे स्थित कुछ अधिक आबादी वाले बड़े - बड़े गांवों के नाले गंगा नदी में आकर मिलते हैं। यही नहीं कटहल नाले के माध्यम से बलिया नगर सम्पूर्ण दूषित मल -जल एवं कचरा भी बिना शोधित किए ही गंगा नदी में गिराया जाता है। मृत मवेशियों का शव भी गंगा नदी में डाला जाता है। गंगा नदी के तट पर होने वाले शव दाह का अपशिष्ट राख आदि को भी अनवरत गंगा में बहाया जाता है। विडम्बना यह है कि आजादी के 77 वर्ष बाद भी अभी तक बलिया नगर पालिका में एस टी पी नहीं लग पाया है ,जिसके चलते कटहल नाला सहित बलिया नगर के सभी नालों का प्रदूषित मल - जल बिना उपचारित किए ही गंगा नदी में गिराया जाता है, जिससे गंगा नदी का जल प्रदूषित होता जा रहा है।
File Photo of:डा. गणेश पाठक
कटहल नाले के माध्यम से गंगा नदी गिरने वाले दूषित जल एवं मल - जल को गिराए जाने से गंगा नदी में उत्पन्न प्रदूषण को देखते हुए ही नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ( एन जी टी) ने अपने एक आदेश में कहा है कि "गंगा में मिलने वाले कटहल नाले में नहीं छोड़ा जाना चाहिए गंदा पानी"। यही नहीं 'उत्तर - प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड'( यू पी पी सी बी ) द्वारा भी बलिया नगरपालिका एवं उसके अधिकारियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करते हुए बलिया नगर परिषद पर 2.3 करोड़ रूपए का जुर्माना लगाया गया है। उल्लेखनीय है कि बलिया नगर में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट न बनने के कारण जल अधिनियम,1974 के तहत 15 मई, 2024 को मुकदमा दायर किया गया था। सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट न लगाए जाने के कारण ही यह जुर्माना लगाया गया है। मुआवजा नहीं भरने पर 29अगस्त,2024 को यू पी पी सी बी ने बलिया मजिस्ट्रेट को इसके लिए जिम्मेदार अधिकारी से मुआवजा वसूलने में सहायता करने का अनुरोध किया है। ध्यातव्य है कि यह जानकारी 30 अगस्त,2024 को यू पी पी सी बी द्वारा दाखिल रिपोर्ट में साझा की गयी है। इस रिपोर्ट को एन जी टी द्वारा 17 मई, 2024 को दिए गए आदेश पर कोर्ट में दाखिल किया गया। उल्लेखनीय है कि अभी भी बलिया नगरपालिका से निकलने वाला प्रदूषित जल - मल बिना शोधित किए ही कटहल नाले के माध्यम से गंगा नदी में गिराया जा रहा है। एक जानकारी के अनुसार प्रतिक्षण लगभग 500 क्यूसेक गंदा पानी कटहल नाला के माध्यम से गंगा नदी में गिराया जा रहा है।हालांकि अब एस टी पी का निर्माण कार्य प्रगति पर है।
कैसे हो नदियों का संरक्षण ? -
वैसे तो नदियों के जल को प्रदूषण मुक्त करना एक जटिल प्रक्रिया है तथा नदियों के संरक्षण की भी अनेक प्रक्रियाएं है,जिनको अपनाकर नदियों का संरक्षण किया जा सकता है। किंतु सबसे बड़ी बात तो यही है कि यदि हम नदियों को प्रदूषित ही न करें तो नदियां स्वयं स्वच्छ रहेंगीं।
वैसे नदी संरक्षण हेतु निम्नांकित तथ्यों/ उपायों/ विधियों/ सिद्धांतों को अपनाना कारगर साबित हो सकता है -
* जल की बचत प्रक्रिया को अपनाना चाहिए।
* जल की बर्बादी को रोकना चाहिए।
* जल का दीर्घकालीन उपयोग करना चाहिए।
* नदी जल में प्रदूषणकारी पदार्थों को नहीं डालना चाहिए
* नगरों एवं उद्योगों से नि:सृत प्रदूषित जल बिना उपचारित किए नदी में नहीं छोड़ना चाहिए।
* नदी तलछट की सदैव सफाई करते रहना चाहिए
* नदी किनारों पर कटाव की रोकथाम करनी चाहिए
* नदी जल के प्रदूषण से उत्पन्न दुष्प्रभावों से आम जनता को अवगत कराना चाहिए।
* नदी जलधारा को सतत प्रवाही बनाए रखना चाहिए।
* नदियों के किनारे एवं जल ग्रहण क्षेत्रों में वृक्षारोपण करना चाहिए।
* नदियों में कूड़ा - करकट नहीं डालना चाहिए।
* नदी जल का आवश्यकतानुसार ही प्रयोग करना चाहिए।
* भविष्य की पीढ़ियों के लिए जल की उपलब्धता सुनिश्चित करनी चाहिए।
सम्पर्क सूत्र-
श्रीराम विहार कालोनी
माधोपुर, बलिया - 277001
उ० प्र०.
मो०- 8887785152
Email- drgkpathakgeo@gmail.com

TREND