उत्तर प्रदेश बलिया
इनपुट : हिमांशु शेखर
बलिया उत्तरप्रदेश:---हम सब ये बात जानते है कि भारत पर्वों और त्योहारों की भूमि है। इसीलिए कहा जाता है कि "सदा दिवाली साल भर ,सातों वार त्योहार"। यहां हर पर्व अपने संग धार्मिक आस्था और सामाजिक संदेश लेकर आता है। हमारा हर पर्व - त्योहार हमारी संस्कृति और सभ्यता से जुड़ा है । यही हमारी पहचान है।इसी में एक अनोखा महापर्व है "छठ मैया की पूजा या छठ पूजा"। चूं कि यह सूर्य पूजा का पर्व है, इसलिए इसे "सूर्य षष्ठी" का पर्व भी कहा जाता है। छठ मैया की पूजा कार्तिक महीना के शुक्ल पक्ष के छठवीं तिथि को किया जाता है। ये पर्व उत्तर प्रदेश,बिहार, झारखण्ड,मध्य - प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में विशेष तौर पर बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। नेपाल के तराई क्षेत्रों में भी छठ पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। वैसे इस समय तो यह छठ पर्व इतना प्रसिद्ध हो गया है कि इसके महत्व के कारण न केवल अपने देश के सभी क्षेत्रों में, बल्कि विदेशों में भी बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है ।
आज छठ पूजा न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ा है, बल्कि पर्यावरण के रख - रखाव , स्वास्थ्य लाभ, सामाजिक समरसता और एकता का प्रतीक बन गया है।
छठ मैया का पूजा सूर्य भगवान के पूजा से जुड़ा है । ये पूजा अपने देश में वैदिक काल से होती आ रही है। इस तरह से छठ मैया और सूर्य भगवान के पूजा से संपूर्ण वातावरण में ऊर्जा और शक्ति का संचार हो जाता है ।लोक विश्वास है कि सूर्य और सूर्य की बहन "छठी मैया"के उपासना करने से संतान और सबके स्वास्थ्य का आशीर्वाद मिलता है ।
एक पौराणिक कथा में कहा गया है कि रामायण काल में अयोध्या लौटने के बाद श्री राम और सीता मैया ने सूर्य भगवान की पूजा की थी।इस पर्व का महाभारत से भी जुड़ाव मिलता है । द्रौपदी और पांडवों ने भी राज - पाट और संतानों के कामना के लिए छठ पूजा किया था।
File Photo of: ईशान पाठक (छात्र)
छठ मैया की पूजा कार्तिक महीना के शुक्ल पक्ष के बाद छठवीं तिथि को मनाया जाता है ।दिवाली के छठवें दिन से इसकी शुरुआत हो जाती है । श्रद्धालु और व्रती लोग चार दिन के उपवास के साथ सूर्य भगवान की पूजा करके अर्घ
देते है ।
पहला दिन (नहाए खाए )के रूप में जाना जाता है ।इस दिन व्रत करने वाले लोग ,(माता और बहने) शुद्ध भोजन करती है। छठ मैया के व्रत में घर के साफ -सफाई के साथ ही शरीर के साफ - सफाई का भी खास ध्यान रखा जाता है। इस पर्व में पवित्रता का खास महत्व होता है।
व्रत के दूसरे दिन को खरना कहा जाता है । इस दिन दिन - भर उपासव रख कर शाम को गुड़ - चावल और रोटी का प्रसाद लिया जाता है । इसके बाद छत्तीस घंटे निर्जल व्रत किया जाता है।
तीसरे दिन शाम के समय डूबते सूर्य को जल और दूध से अर्घ अर्पित किया जाता है।
चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ देकर व्रत का समापन किया जाता है ।
व्रत के समापन होने पर परिवार के लोग एक साथ प्रसाद लेते है । छठ पूजा के खास प्रसाद है - ठेकुआ , कसार (चावल के लड्डू), गन्ना,नारियल ,फल । व्रत में चार दिन तक लहसुन - प्याज नहीं खाया जाता है ।
ये व्रत करने से मानसिक शांति मिलती है , शरीर शुद्ध और पवित्र हो जाता है , पानी का संरक्षण होता है , समानता ,एकता तथा सामूहिकता का भाव जागता है । ये पर्व लोकगीत और परंपरा का पर्व है। इसीलिए छठी मैया और सूर्य भगवान से जुड़े लोकगीत भी माता और बहने गाती हैं।लोकगीत इतने मधुर होते हैं कि लगता है कि नाट्य शास्त्र के सारे गुण उसी में हो ।इन गीतों से पानी,हवा और मिट्टी को शुद्ध रखने का संदेश भी मिलता है। जैसे -
" उग हे सूरज देव,भइल भिनसरवा ,अर्घ के रे बेरवा, पूजन के रे बेरवा हो।
बड़की पुकारे देव, दुनु कर जोरवा ,अर्घ के रे बेरवा, पूजन क रे बेरवा हो।"
छठ पूजा खाली पूजा का पर्व ही नहीं बल्कि येआस्था ,संस्कृति ,विज्ञान और पर्यावरण का संगम है। ये हमें सूरज और प्रकृति का महत्व सिखाता है और एकता का संदेश देता है ।ये याद दिलाता है कि जीवन तभी खुशहाल और सुखमय होगा जब हम , आप ,और सब कोई समाज या आस्था के बीच संतुलन बना के रखेगा ।

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