बलिया/लखनऊ, उत्तर प्रदेश
इनपुट: हिमांशु शेखर
बलिया/लखनऊ, उत्तर प्रदेश :--"भैया दूज" सनातन संस्कृति का ऐसा पर्व जो भाई बहन के प्रेम को सतत् एक नवजीवन, नई ऊर्जा देती रहती है, विवाह के पूर्व भी और विवाहपरंत भी। दोनों के सामीप्य में भी, बिलगांव, अलगाव की स्थिति में भी। बचपन तो प्यार - दुलार - तकरार में बीत गया, विद्यार्थी जीवन एक दूसरे की शैक्षणिक कठिनाइयों को समझने, समझाने में। यौवन आया विवाह परंपरा में दूरी बढ़ी, किंतु मन में यादें सतत् बनी रहीं। जीवन की अपनी व्यस्तताओं में समय का अभाव, दिल में मिलने की लगन, तब मोबाइल युग तो था नहीं, पर्व ही मिलन का अवसर था। ये पर्व और त्यौहार ही ऐसे सांस्कृतिक संयोग हैं जो परिवारजनों को आपस में मिलाते है। समय की समस्या और स्थान की दूरी को पल भर में मिटाते है। भाई बहन के बीच समय और स्थान की दूरी को मिटने वाले दो महत्वपूर्ण पर्व हैं - "रक्षाबंधन" और "भैया दूज"। अपनी परिपक्व अवस्था में "स्नेह और प्रेम" प्रदर्शन का नहीं, दर्शन का विषय है, मन और हृदय इसके अनुभूति स्थल हैं। किंतु "स्नेह और प्रेम" में प्रदर्शन समाजशास्त्र, समाज दर्शन की अपनी मांग है। समाजशास्त्र के प्रदर्शन सिद्धांत में ही रक्षाबंधन में बहन भाई के यहां आती है और "भैया दूज" में भाई बहन के घर जाता है। एक दूसरे की रक्षा का आश्वासन, भरोसा और समस्याएं सुलझाते हैं। आपसी समझबूझ प्रगाढ़ होता है। मान बाप के न रहने पर भी ये पर्व ही मायका को जीवंत बनाए रखते हैं। ये पर्व सौहार्द्र और अपनत्व प्रदर्शन के लिए किसी वरदान से कम नहीं।
भैया दूज के उदय को दो प्रमुख पौराणिक कथाओं से जुड़ा होना तो उसका एक लिखित इतिहास भर है, भाई बहन का यह "स्नेहिल प्रेम" तब से है जब न लिपि थी, न लिखने के लिए कागज ही। तथापि यह स्नेह संबंध कभी फीका न पड़े, इसके लिए पौराणिक कथन जुड़ गए या जोड़ दिए गए। किंतु आज ये कथानक लाभकारी ही बने हुए है।
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प्रमुखतः दो कथानक है। आइए उनसे जुड़ते हैं :
(i) यमराज और उनकी बहन यमुना की कथा और (ii) भगवान कृष्ण और उनकी बहन सुभद्रा की कथा। यम द्वितीया के रूप में, यह पर्व यमराज और यमुना की कहानी से शुरू हुआ, जहाँ यमराज ने अपनी बहन के प्रेम से खुश होकर यह वरदान दिया कि जो भी बहन भाई दूज पर अपने भाई को तिलक करेगी, उसके भाई को अकाल मृत्यु का भय नहीं होगा।
दूसरी कहानी के अनुसार, नरकासुर का वध करने के बाद भगवान कृष्ण जब अपनी बहन सुभद्रा के पास गए, तो सुभद्रा ने उनका स्वागत किया और तिलक लगाया, जिससे इस पर्व का प्रचलन हुआ।
यमराज और यमुना :
सूर्य देव की संतान यमराज और यमुना में गहरा प्रेम था। यमुना अपने भाई यमराज को बार-बार अपने घर आने के लिए कहती थीं। एक दिन, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को यमराज उनसे मिलने पहुंचे। यमुना ने उनका भव्य स्वागत किया, आरती उतारी, तिलक लगाया और भोजन कराया। यमराज अपनी बहन के प्रेम और आदर से बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने वरदान दिया कि जो बहन भाई के माथे पर तिलक करेगी, उसके भाई को मृत्यु का भय नहीं होगा। इसी घटना से भाई दूज या यम द्वितीया का पर्व शुरू हुआ।
भगवान कृष्ण और सुभद्रा :
एक अन्य मान्यता के अनुसार, भगवान कृष्ण ने राक्षस नरकासुर का वध करने के बाद अपनी बहन सुभद्रा के पास लौटते समय, सुभद्रा ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया। उन्होंने कृष्ण के माथे पर तिलक लगाया और मिठाइयों तथा फूलों से उनका स्वागत किया। इस घटना ने भी भाई-बहन के प्रेम और सुरक्षा के प्रतीक के रूप में भाई दूज मनाने की परंपरा को बढ़ावा दिया।