उत्तर प्रदेश बलिया
इनपुट: हिमांशु शेखर
बलिया उत्तरप्रदेश:---दीपावली के दिन पटाखों को छोड़ने की परम्परा अपने देश में प्राचीन काल से चली आ रही है। किंतु पहले न तो इतनी अधिक आबादी थी और न ही इतने पटाखे छोड़े जाते थे, इस लिए वायु प्रदूषण की समस्या नहीं उत्पन हो पाती थी। प्राकृतिक वातावरण भी स्वच्छ रहता था, इसलिए प्रकृति द्वारा भी वायु स्वत: शुद्ध कर दी जाती थी।
हम लोगों में बहुत लोगों को इस बात की भी जानकारी नहीं होती है कि कौन से पटाखे कितने खतरनाक होते हैं एवं उनसे वायु कितनी अधिक प्रदूषित होती है, इस लिए जाने अनजाने हम खतरनाक स्तर के पटाखों को भी बेझिझक जलाते हैं।
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दीपावली के दिन या अन्य दिन भी जो पटाखे जलाये जाते हैं , उनसे खासतौर से सल्फर डाई ऑक्साइड, नाइट्रोजन, मोनो आक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, कार्बन डाई ऑक्साइड के साथ ही साथ वायु में सूक्ष्म कण ( पी एम २.५ एवं पी एम १०) तथा भारी धातुएं, जैसे- कैडमियम, अल्यूमिनियम एवं मैगजीन का भी उत्सर्जन होता है, जो अंतत: वायु की गुणवत्ता को प्रभावित करता है एवं वायु प्रदूषित हो जाती है, जो स्वास्थ्य के लिए अहितकर होता है। इन पटाखों के जलाने से उत्पन्न दूषित गैसों एवं धूलि कणों से वायुमंडल का वातावरण धुंधला हो जाता है और यह धुंधलापन वातावरण में निचले स्तर तक आ जाता है, जिससे दृश्यता भी प्रभावित होती है।
पटाखों के जलाने से उत्पन्न वायु की गुणवत्ता की जानकारी हेतु "वायु गुणवत्ता सूचकांक" ज्ञात किया जाता है। 50 से कम सूचकांक वाली वायु स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नहीं होती है। 50 - 100 सूचकांक वाली वायु सामान्य तौर पर मान्य है, किंतु इसमें प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है। 100 - 150 सूचकांक वाली वायु हानिकारक स्तर की हो जाती है और बुजुर्गो तथा बच्चों के हानिकारक हो जाती है। इसके ऊपर जैसे - जैसे वायु गुणवत्ता सूचकांक बढ़ती जाती है, वह अधिक हानिकारक होती जाती है।
जहां तक बलिया में दीपावली से पूर्व एवं दीपावली से बाद के दिनों में वायु गुणवत्ता सूचकांक की बात है तो वेदर. काम एवं मौसम की जानकारी देने वाली अन्य एजेंसियों से प्राप्त सूचनाओं के अनुसार बलिया में 19 अक्टूबर को वायु गुणवत्ता सूचकांक 147 थी, जबकि दीपावली के दिन वायु गुणवत्ता सूचकांक बढ़कर 168 हो गयी। 21 अक्टुबर एवं 22 अक्टुबर को वायु गुणवत्ता सूचकांक बढ़कर क्रमश: 171 एवं 181 हो गयी। इस तरह बलिया में वायु गुणवत्ता सूचकांक स्वास्थ्य के लिए मान्य स्तर से काफी अधिक हो गयी है, जिसमें धीरे - धीरे एक - दो दिनों में सुधार होने की संभावना है। यह स्थिति ख़ासतौर से बुजुर्गो एवं बच्चों के लिए घातक है।
इसका मतलब यह नहीं है कि हम पटाखे जलाए ही नहीं। पटाखा जलाना हमारे खुशियों को प्रदर्शित करता है। किंतु हमें किस तरह का पटाखा जलाना चाहिए , इस पर ध्यान देना चाहिए। आज कल बाजार ग्रीन पटाखें आने लगे हैं, जिनसे प्रदूषण कम फैलता है एवं वायु भी कम प्रदूषित होती है।