उत्तर प्रदेश बलिया
इनपुट: हिमांशु शेखर
पूर्व प्राचार्य एवं पूर्व शैक्षिक निदेशक जननायक चन्द्रशेखर विश्वविद्यालय, बलिया, उ०प्र०
बलिया उत्तरप्रदेश:---सूर्य षष्ठी अर्थात् छठ व्रत वर्तमान समय में एक अन्तर्राष्ट्रीय महापर्व का स्वरूप ग्रहण कर लिया है। कारण कि विश्व के विभिन्न देशों में जहाॅ- जहाॅ भी भारतीय लोग रहते हैं,उन देशों में छठ पर्व बड़े ही धूम -धाम से मनाया जाता है। इस आधार पर यदि इस पर्व को अन्तर्राष्ट्रीय पर्व कहा जाय तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
अनेक आयामों को समेटे हुए है छठ पर्व -
सूर्य षष्ठी अर्थात् छठ पर्व अपने-आप में अनेक आयामों को समेटे हुए है। इस पर्व पर माताएं अपनी संतान एवं परिवार की सुरक्षा,संरक्षा एवं कल्याण हेतु निर्जला व्रत रखती हैं। खास तौर से संतान प्राप्ति के लिए यह व्रत विशेष फलदायी माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि संतान न होने पर छठ व्रत रखने से संतान की प्राप्ति हो जाती है। यही कारण है कि संतान होने से पूर्व एवं संतान हो जाने के बाद भी यह व्रत बड़े ही धूम -धाम से मनाया जाता है। यह व्रत तीन दिन का होता है। खासतौर से महिलाएं ही इस व्रत को रखती हैं। किंतु कहीं - कहीं पुरुष एवं स्त्री दोनों छठ व्रत करते हैं।किसी-किसी परिवार में मनौती पूरी होने पर पुरूष छठ व्रत करते हैं। पत्नी के न रहने पर पुरूष अपने संतान एवं परिवार के कल्याण हेतु छठ व्रत रखते हैं।
अन्तर्राष्ट्रीय पर्व हो गया है छठ व्रत -
छठ वर्ष यद्यपि कि बिहार,झारखंड, छत्तीसगढ़,मध्य प्रदेश एवं उत्तर- प्रदेश में अत्यन्त ही उल्लास एवं धूम - धाम से मनाया जाता है। किंतु अपने देश में जहां - जहां बिहार, उत्तर प्रदेश एवं झारखंड के लोग रहते हैं, उन सभी राज्यों में छठ पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। ख़ासतौर से दिल्ली, कोलकाता, मुम्बई में भी छठ पर्व अत्यन्त ही धूमधाम से मनाया जा रहा है। अपने देश के अतिरिक्त विदेशों में भी जहां - जहां छठ व्रत को करने वाले लोग रहते हैं,वहां - वहां छठ व्रत मनाए जाने लगा है। नेपाल, मारीशस, सूरीनाम, गुयाना, हिन्देशिया, थाईलैंड, सिंगापुर आदि देशों सहित अमेरिका, रूस, कनाड, श्रीलंका , अनेक अफ्रीकी देशों में भी छठ पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। इस तरह वर्तमान समय में छठ पर्व अन्तर्राष्ट्रीय पर्व का रूप ले लिया है।
लोक आस्था एवं विश्वास का महापर्व है सूर्य षष्ठी का व्रत -
छठ व्रत की सबसे बड़ी विशेषता है कि यह विशेष तौर पर लोक आस्था का पर्व है। यही कारण है कि यह व्रत अति शुद्धता, पवित्रता एवं स्वच्छता के साथ मनाया जाता है। समवेत रूप में सूर्य षष्ठी का पर्व तीन दिन तक मनाया जाता है। व्रत की तैयारी कई दिन पहले से होने लगती है। यह व्रत चार दिनों का होता है।व्रत रखने के पहले दिन को "नहाय खाय" कहा जाता है। इस दिन स्नान करने पश्चात ही जल या चाय आदि का पान किया जाता है तथा शुद्धता, पवित्रता एवं स्वच्छता से तैयार भोजन को ग्रहण किया जाता है। दूसरे दिन जो व्रत रखा जाता है ,उसे "खरना" कहा जाता है। इस दिन व्रती 'निर्जला' व्रत रखते हैं। अर्थात् इस दिन व्रती जल भी ग्रहण नहीं करते हैं। चौबीस घण्टे तक जल नहीं पिया जाता है। तीसरे दिन "अस्ताचलगामी सूर्य" अर्थात् शामको को डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। सूर्यास्त से पहले ही किसी जल स्रोत पर जाकर पहले से तैयार पूजा स्थल पर पूजा की जाती है एवं डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य प्रदान कर सूर्य की पूजा की जाती है।अस्ताचल सूर्य भगवान को अर्घ्य देने के पश्चात अधिकांश व्रती प्रसाद का दउरा ( प्रसाद रखने वाला पात्र) लेकर घर चले जाते हैं,जबकि कुछ व्रती रात भर घाट पर ही रहकर पूजा स्थल की निगरानी करते हैं। व्रत के अंतिम दिन प्रात:काल जागकर स्नान आदि से निवृत्त होकर पुन: प्रसाद से भरा हुआ दउरा लेकर पूजा स्थल पर जाते हैं एवं पूजा-अर्चना करते हैं। सूर्योदय होने पर पुन: "उदीयमान सूर्य अर्थात् उगते हुए सूर्य भगवान की पूजा करके अर्घ्य दिया जाता है। सूर्य भगवान को अर्घ्य या तो परिवार का कोई पुरष दिलवाता है अथवा पंडित जी महराज अर्घ्य दिलवाते हैं।सूर्य भगवान को अर्घ्य प्रदान करने के पश्चात सभी व्रती महिलाएं परस्पर गले मिलती हैं एवं एक दूसरे को प्रसाद आदान-प्रदान करती हैं।इसके बाद सभी लोग अपने -अपने घर जाकर पहले प्रसाद ग्रहण करते हैं,उसके पश्चात पारण( व्रत के पश्चात ग्रहण किए जाने वाले भोजन को पारण कहा जाता है) करते हैं। इस प्रकार चार दिवसीय छठ व्रत की समाप्ति होती है।
पर्यावरण संरक्षण का भी पर्व है सूर्य षष्ठी -
सूर्य षष्ठी व्रत की पूजा - अर्चना खासतौर से जल स्रोतों के किनारे ही की जाती है। कारण कि व्रती महिलाएं जलस्रोत मे खड़ा होकर सूर्य भगवान की आराधना करती हैं। इस दृष्टि से उस दिन जल स्रोत के आस - पास भी साफ- सफाई किया जाता है एवं जल को स्वच्छ एवं शुद्ध रखने का प्रयास किया जाता है। इस प्रकार इस व्रत द्वारा हमें जल संरक्षण की भी चेतना प्राप्त होती है ।जलस्रोत के किनारे पूजा करने से हमारे अंदर इस चेतना का संचार होता है कि हमें जलस्रोत को सदैव परि पूर्ण रखना चाहिए,उसकी स्वच्छता,शुद्धता एवं पवित्रता को बनाए रखते हुए जल का हमेशा संरक्षण करना चाहिए एवं जल, वायु तथा भूमि को प्रदूषण से बचाना चाहिए। इस तरह समवेत रूप में छठ पर्व पर्यावरण संरक्षण का भी पर्व है।
सूर्य पूजा एवं ऊर्जा संरक्षण का भी व्रत है सूर्य षष्ठी-
जैसा हम जानते हैं कि छठ व्रत सूर्य पूजा का व्रत है। चूॅकि यह व्रत छठवीं तिथि को की जाती है, इसी लिए छठ व्रत को "सूर्य षष्ठी का व्रत" भी कहा जाता है। सूर्य को ऊर्जा का अजस्र स्रोत माना जाता है। सूर्य ऊर्जा में अपार शक्ति है। इसी लिए ऊर्जा एवं शक्ति के प्रतीक के रूप में सूर्य षष्ठी का पर्व मनाया जाता है एवं व्रत रखा जाता है। सबसे बड़ी बात यह है कि छठ व्रत में डूबते हुए सूर्य एवं उगते हुए सूर्य दोनों की पूजा - अर्चना की जाती है। चूॅकि सूर्य ऊर्जा का अजस्र स्रोत है,अत: डूबते हुए सूर्य की पूजा इसलिए की जाती है कि हे सूर्यदेव आप जिस तरह दिन भर की अथक यात्रा के बाद थी थकते नहीं हैं और पुन: प्रात: काल नई ऊर्जा के साथ संसार के कल्याणार्थ एवं अपनी ऊर्जा से शक्ति का अजस्र स्रोत बिखेरते हुए ऊर्जा का संचार करते हैं,उसी प्रकार हमें भी ऐसा आशिर्वाद दें एवं जन - जन के अन्दर ऊर्जा का ऐसा संचार भर दें कि हम मानव भी बिना थके - हारे अपने कर्तव्य पथ पर अग्रसर होते रहें। इस तरह सूर्य षष्ठी का व्रत सूर्य पूजा के रूप में ऊर्जा संरक्षण एवं प्रकृति संरक्षण का भी बोध कराता है।
File Photo of डॉ गणेश पाठक (पर्यावरणविद्)
स्वास्थ्य संवर्द्धन का भी संदेश देता है सूर्य षष्ठी का व्रत-
सूर्य षष्ठी का व्रत स्वास्थ्य की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण संदेश देता है। इस व्रत में प्राय: मौसम के अनुसार ऐसे प्रसाद - पकवान एवं फल आदि चढ़ाने का विधान है जो शीत ऋतु में पाचन की दृष्टि से सुपाच्य होता है एवं इस मौसम में सुगमतापूर्वक उपलब्ध हो जाता है। स्वास्थ्य के सम्बर्द्धन की दृष्टि से ये सभी प्रसाद विशेष रूप से अनुकूल होते हैं। इन प्रसादों में पकवान - अगरवटा एवं ठेकुआ, फलों में सेव, संतरा, नाशपाती,नारंगी,नारियल,केला,अन्नानास,चीकू,मौसम्मी,मूली, ,कदम्ब,सरीफा,नीबू आदि प्रमुखता से चढ़ाए जाते हैं,जो सुपाच्य एवं गुणकारी होते हैं। इस प्रकार सूर्य षष्ठी का व्रत हमें स्वास्थ्य के प्रति सचेष्ट रहने का बोध कराता है।
सामाजिक समरसता, एकरूपता एवं एकता का भी संदेश देता है सूर्य षष्ठी का व्रत -
यदि देखा जाय तो सूर्य षष्ठी का पर्व समाजको सामाजिक समरसता, एकरूपता एवं एकता के सूत्र में बांधकर जाति एवं धर्म से ऊपर ऊठकर सभी जाति- धर्म के लोग पूजा स्थल पर एक साथ ही एक पंक्ति में बैठकर ऊंच - नीच एवं धनी- गरीब की भावना से ऊपर उठकर पूजा - अर्चना करते हैं। ऐसा सामाजिक सौर्हाद्र बहुत कम अवसरों पर देखने को मिलता है। सभी व्रती महिलाएं जाति - धर्म से ऊपर ऊठकर
एक दूसरे से गले मिलती है एवं एक दूसरे को प्रसाद का आदान-प्रदान करती हैं। सामाजिक एकता एवं सामाजिक सौहार्द्र का ऐसा अनूठा स्वरूप हमारी सनातन परम्परा में ही मिल सकता है, अन्यत्र नहीं। आज आवश्यकता है हमें इसे समझने एवं जानने की ताकि हमारा समाज एकसूत्र में आबद्ध रहे। हमारा समाज इतना मजबूत हो कि हमारे तरफ किसी की आॉख उठाकर देखने की हिम्मत न पड़ेऔर हमारीअखण्डता कायम रहे।

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