बलिया/लखनऊ, उत्तर प्रदेश
इनपुट: हिमांशु शेखर
बलिया उत्तरप्रदेश:--"छठ पर्व" मात्र एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, इसमें विज्ञान भी है, संस्कृति भी तथा लोकप्रंपरा भी। व्रत करने वाले शारीरिक और मानसिक रूप से इसके लिए तैयार होते हैं। छठ पूजा के दौरान इस्तेमाल की जाने वाली सभी वस्तुएं शरद ऋतु को अनुसार ही होती हैं।
छठ पूजा की विलक्षणता:
इस पूजा में विलक्षण बात यह है कि अपनी संस्कृति में यही एकमात्र ऐसा त्योहार है जिसमें "उगते" और "डूबते", अर्थात प्रकृति की "सृष्टि" और "प्रलय" दोनों अवस्थाओं का स्वागत किया जाता है। सृष्टि और प्रलय दोनों ही स्थितियों में "सूर्य" का महत्व सर्वाधिक है। प्रत्येक व्यक्ति श्रेष्ठ दार्शनिक या वैज्ञानिक नहीं हो सकता। दार्शनिक या वैज्ञानिक सिद्धांत गुह्य मंत्र, गूढ़ ऋचाओं, दार्शनिक सूत्र रूप में हो सकते हैं। किंतु यदि इसे त्यौहार तथा मान्यताओं से जोड़कर यूआदि लोक आस्था का पर्व बना दिया जाय तो इसके सद्गुण और लाभ समाज को अनवरत मिलता रहेगा और जिज्ञासु व्यक्ति इसमें छिपे सिद्धांत को भी ढूंढ निकलेगा, यह विश्वास छिपा हुआ है।
सृष्टि प्रक्रिया में सूर्य का महत्व:
सृष्टि प्रक्रिया में सूर्य की स्पष्ट महत्ता का वर्णन सुप्रसिद्ध दार्शनिक ग्रंथ "प्रश्नोपनिषद" में प्राप्त होता है। वहां प्रश्न और उत्तर के माध्यम से सृष्टि संबंधी गहन दार्शनिक विमर्श प्राप्त होता है। प्रथम प्रश्न में ही शिष्य कबंधी ने महर्षि पिप्पलाद से पूछा, हे भगवन! यह दृश्य सृष्टि कैसे उत्पन्न हुई? इसका परम कारण क्या है? - "*भगवान् कुतो ह वा इमा: प्रजा: प्रजायंत इति*"। गुरु पिप्पलाद ने उत्तर दिया, प्रजापति ने ही सृष्टि की इच्छा से तप किया और "प्राण" तथा "रई" का एक युग्म उत्पन्न किया। इसी युग्म से सृष्टि सृजन हुआ। यहां प्राण का अर्थ है सूर्य (ऊर्जा) तथा "रई" का अर्थ है "चंद्रम (पदार्थ)। अध्यात्म, दर्शन और विज्ञान तीनों ही इस सिद्धांत को मान्य देते हैं। इसी को अपनी अपनी शब्दावली, भाषा और सूत्र द्वारा व्याख्यायित करते हैं (जिज्ञासु विस्तृत ज्ञान के लिए प्रश्नोपनिषद का अध्ययन करें)। विपरीत क्रम (प्रलय) में यही सूर्य अंतिम युग्म रूप में नतीम कारण है। प्रतिदिन के जीवन में एक अत्यंत लघु सृष्टि और लघु प्रलय की प्रक्रिया चलती रहती है। सूर्य की महत भूमिका को जानकर ही सूर्य के "अस्त रूप" और "उदय रूप" दोनों की ही पूजा की जाती है। इस पर्व में सूर्य और प्रकृति का सम्मान ही इस पर्व की अपनी विलक्षणता है। यह त्योहार, प्रकृति और सूर्य के प्रति सम्मान को दर्शाता है, जो जीवन का आधार हैं। उगते और डूबते सूर्य दोनों की पूजा की जाती है, जो प्रकृति के चक्र को दर्शाता है। छठ पूजा में "उगते सूर्य की पूजा" के साथ-साथ "डूबते सूर्य की भी पूजा" की इसे बाकी त्योहारों से अलग बनाता है।
अपनी संस्कृति में कालरात्रि के नाम से प्रसिद्ध "दीपावली", अहोरात्रि के नाम से प्रसिद्ध "शिवरात्रि", मोहरात्रि के नाम से प्रसिद्ध "जन्माष्टमी" तथा दारुणरात्रि के नाम से प्रसिद्ध "होली पर्व" ये सभी रात्रि प्रहर "सूर्यास्त और सूर्योदय के बीच" की ही अवधि होती हैं। इस प्रकार छठ का उतना ही महत्व नहीं है, जितना अभी दिखता है, उससे कहीं बहुत अधिक है जो अदृश्य रूप है, वह दिखता नहीं है। इसे ही पूर्ववर्ती और पश्चात्ववर्ती कहकर संकेतित किया गया है। महत्वपूर्ण त्योहारों में केवल "रामनवमी" ही ऐसा पर्व है जो मध्यवर्ती (दोपहर) है।
प्रकृति शोधन, संरक्षण:
यह पर्व प्रकृति और सूर्य देव का सम्मान तो करता ही है, विविध प्रकार की क्रिया कलापों को भी अंगीकार करता है। इस स्वीकार्यता में सर्वाधिक महत्वपूर्ण इसे जल तत्त्व से जोड़ना है। छठ पूजा के लिए नदियों, तालाबों, जलाशयों की अनिवार्यता इन जलाशयों की स्वच्छता, पवित्रता से जुड़ी हैं। पूरा समाज मिलजुल कर सामूहिक रूप से जाने अनजाने "जल स्वच्छता अभियान" से जुड़ जाता है। जल स्वच्छता का यह कार्य सभी छोटे बड़े जलाशयों पर एकसाथ हो जाता है। यह भी एक बहुत बड़ी प्राकृतिक सेवा कार्य है जो इस पर्व को महत्वपूर्ण बनाता है।पवित्र नदी, जलाशयों के स्वच्छ घाटों पर सूर्य को अर्घ्य देना और पारंपरिक प्रसाद, "अघरौट", "ठेकुआ" तथा समस्त फलों और सब्जियों से पूजन का विधान है। इस पूजन विधान को संतति और वंश वृद्धि से जोड़ दिया गया है। वंश और संतति के लाभ में ही सही, फलों और सब्जियों के लिए वनस्पति जगत का संरक्षण और पोषण तो होता है। पुत्रैषणा मानव का सबसे बड़ा मोह है, इसी पुत्रैषणा के बहाने प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण की प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है। जीवन के लिए प्रकृति और पर्यावरण का क्या महत्व है, इसे बताने की आवश्यकता नहीं। विषाक्त हो चुके पर्यावरण को "हरीभरी प्रकृति" ही संतुलित कर सकती है। इस प्रकार यह पर्व यह वैज्ञानिक और सांस्कृतिक दोनों ही दृष्टियों से अत्यंत महत्वपूर्ण है। मिलबैठकर एकसाथ इस पर्व को मानना एक उत्तम सौहार्द्र भाव उत्पन्न करता है, यह इसका सामाजिक महत्व है। इस प्रकार इस पर्व में तत्त्वदर्शन, सृष्टि विज्ञान और सामाजिक सौहार्द्र की त्रिवेणी प्रवाहित है।
File Photo of डॉ.जयप्रकाश तिवारी
स्वास्थ्य दृष्टि से महत्व :
संतति या वश का "कमजोर स्वास्थ्य", "रुग्ण शरीर" एक बहुत बड़ी चिंता का कारण बनता है। मानवमन यदि चिंता ग्रस्त हो तो वह सामाजिक प्रगति के अन्यान्य कार्यों को कैसे कुशलता से कर पाएगा?
छठ पूजा अंतरिक्ष की घातक पराबैंगनी किरणों के हानिकारक प्रभावों से बचाने का एक उपाय माना जाता है। प्रातः और सायं वेला में इसका प्रभाव सर्वाधिक कम होता है। प्राकृतिक रूप से उपलब्ध फलों और सब्जियों की अनिवार्यता का इसमें जुड़ जाना, यह सूचित करती है कि मौसम बदल रहा है, स्वस्थ रहना है तो प्राकृतिक फलों, सब्जियों का प्रचुर मात्रा में उत्पादन और उपभोग करो। सभी फलों और सब्जियों की अनिवार्यता किसी ऐश्वर्य का व्यक्तिगत प्रदर्शन नहीं है, यह बदलते मौसम में शरीर की अपनी मांग है।
पौराणिक कथाओं से जुड़ाव :
सनातनी पर्वों की यह विशेषता है कि प्रत्येक पर्व के पार्श्व में कोई न कोई पौराणिक कथा, कहनी, प्रसंग अवश्य ही मिल जाते हैं। इस पूजा का संबंध भी पुराणों, महाभारत और रामायण से जोड़ा जाता है। जनश्रुत है कि भगवान राम और माता सीता ने भी सूर्य देव की आराधना की थी। राम की अयोध्या और सीता की मिथिला से इसके प्रगाढ़ संबंध ने इसे बिहार प्रांत और पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रमुख पर्व बना दिया था। वर्तमान में टी.वी., सिनेमा और सोशल मीडिया ने इसका स्वरूप राष्ट्रव्यापी बना दिया है। देश की राजधानी दिल्ली में भी यह पर्व बहुत भव्यता के साथ मनाया जाता है। इतना ही नहीं भारत वंशियों ने इसे विश्व के अनेक देशों में फैला दिया है और दीपावली के साथ - साथ छठ पर्व को भी जोड़कर दुनिया भर में इसे एक आस्था के प्रतीक के रूप में देखा जा रहा है।
अतः निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि "छठ पूजा" एक ऐसी मानसिक, दार्शनिक और वैज्ञानिक पथ प्रशस्त प्रस्तुत करती है जहाँ विज्ञान, अध्यात्म और दर्शन का उचित सम्मिलन है। अनुशासित अनुष्ठानों, उपवास, ध्यान और सूर्य उपासना को अपनाकर भक्त शारीरिक स्फूर्ति और आध्यात्मिक उत्कर्ष, प्रकृति शोधन तीनों का ही अनुभव करते हैं। यह पवित्र पर्व जीवन के मनोविज्ञान और सामाजिक दर्शन का भी प्रतीक है। ब्रह्मांड के साथ सृष्टि प्रक्रिया और संबंधों को जोड़त है। छठ पूजा के माध्यम से, हम इस संबंध का सम्मान करते हैं, ब्रह्मांडीय ऊर्जा के प्रवाह को आमंत्रित करते हैं जो व्यक्तिगत जीवन और सार्वभौमिक सद्भाव, सभी को आपस में संतुलित कर मानव की संपूर्ण समृद्धि का सशक्त आधार बनता है।

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