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    अर्जुन पुत्र इरावान : संतोष कुमार गुप्ता




    उत्तर प्रदेश बलिया 
    इनपुट: हिमांशु शेखर 
    बलिया उत्तरप्रदेश:---इरावान महाभारत का बहुचर्चित तो नहीं किन्तु एक मुख्य पात्र है। 
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    इरावान महारथी अर्जुन का पुत्र था जो एक नाग कन्या से उत्पन्न हुआ था। 
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    द्रौपदी से विवाह के पूर्व देवर्षि नारद के सलाह के अनुसार पाँचों भाइयों ने अनुबंध किया कि द्रौपदी एक वर्ष तक किसी एक भाई की पत्नी बन कर रहेगी। 
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    उस एक वर्ष में अगर कोई भी अन्य भाई भूल कर भी बिना आज्ञा द्रौपदी के कक्ष में प्रवेश करेगा तो उसे १२ वर्ष का वनवास भोगना पड़ेगा। 
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    देवर्षि ने ये अनुबंध इस लिए करवाया था ताकि दौपदी को लेकर भाइयों के मध्य किसीको प्रकार का मतभेद ना हो।
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    एक बार कुछ डाकुओं ने एक ब्राम्हण की गाय छीन ली तो वो मदद के लिए युधिष्ठिर के महल पहुँचा। 
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    वहाँ उसे सबसे पहले अर्जुन दिखा जिससे उसने मदद की गुहार लगायी। अर्जुन को याद आया कि पिछली रात उसने अपना गांडीव युधिष्ठिर के कक्ष में रख दिया था। 
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    इस समय युधिष्ठिर और द्रौपदी कक्ष में थे और ऐसे में वहाँ जाने का अर्थ अनुबंध का खंडन करना था किन्तु ब्राम्हण की सहायता के लिए उन्हें कक्ष में जाना पड़ा। 
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    जब वे दस्युओं को मारकर ब्राह्मण की गाय छुड़ा लाये तो अनुबंध की शर्त के अनुसार वनवास को उद्धत हुए। 
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    अन्य भाइयों के लाख समझने के बाद भी वे वनवास को निकल गए। भ्रमण करते हुए वे भारत के उत्तर पूर्व में (आज जहाँ नागालैंड है) पहुँचे और एक सरोवर में स्नान के लिए उतरे। 
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    वहाँ नागों का वास था जिसकी राजकुमारी उलूपी अर्जुन पर मुग्ध हो गयी। 
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    उलूपी विधवा थी और अर्जुन से विवाह की प्रबल इच्छा के कारण उलूपी ने अर्जुन को जल के भीतर खींच लिया और नागलोक में ले आयी। 
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    वहाँ उलूपी के बार बार आग्रह करने पर अर्जुन ने उससे विवाह किया और गुप्त रूप से उसी के कक्ष में रहने लगे। 
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    किन्तु बाद में उनका रहस्य खुलने पर उलूपी के पिता ने उनके सामने शर्त रखी कि उलूपी और उनकी जो संतान होगी उसे वहीँ नागलोक में रहना होगा। 
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    इन्ही का पुत्र इरावान हुआ जिसे नागलोक में ही छोड़ कर अर्जुन एक वर्ष पश्चात आगे की यात्रा को निकल गए।
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    इरावान बहुत ही मायावी योद्धा था जिसने महाभारत के युद्ध में पांडवों की ओर से युद्ध किया था। 
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    उसकी माया शक्ति के आगे योद्धाओं की ना चली। पितामह भीष्म पहले ही प्रतिज्ञा कर चुके थे कि वे पांडव और उनके पुत्रों का वध नहीं करेंगे। 
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    कोई और उपाय ना देख कर तो दुर्योधन ने महान मायावी राक्षस अलम्बुष से इरावान का वध करने को कहा। 
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    अलम्बुष ने इरावान से भयानक मायायुद्ध किया और अंततः युद्ध के आठवें दिन अलम्बुष के हाँथों इरावान वीरगति को प्राप्त हुआ।
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    इरावान की दक्षिण भारत विशेष कर तमिलनाडु में बड़ी महत्ता है। साथ ही साथ किन्नर समाज में भी इरावान को देवता की तरह पूजा जाता है। 
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    दक्षिण भारत में एक विशेष दिन किन्नर इकठ्ठा होकर इरावान के साथ सामूहिक विवाह रचाते हैं और अगले दिन इरावन को मृत मानकर वे सभी एक विधवा की भांति विलाप करते हैं। 
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    इस प्रथा के पीछे भी महाभारत की एक कथा है। 
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    कहा जाता है कि इरावान की मृत्यु से एक दिन पहले सहदेव, जिन्हे त्रिकाल दृष्टि प्राप्त थी, ने इरावन को बता दिया था था कि अगले दिन उनकी मृत्यु होने वाली है। 
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    ये सुनकर इरावान जरा भी नहीं घबराये किन्तु उन्होंने श्रीकृष्ण से ये प्रार्थना की कि वे अविवाहित नहीं मरना चाहते। 
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    अब इतनी जल्दी इरावान के लिए कन्या का प्रबंध कहाँ से होता ? इस कारण श्रीकृष्ण ने वहाँ युद्ध में उपस्थित राजाओं से उनकी कन्या का विवाह इरावान से करने को कहा 
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    किन्तु ये जानते हुए कि इरावान अगले दिन मरने वाला है, कौन राजा उसे अपनी कन्या देता ? 
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    कोई और उपाय ना देख कर स्वयं श्रीकृष्ण ने मोहिनी रूप में इरावान के साथ विवाह किया और अगले दिन उसकी मृत्यु के पश्चात वे विधवा हुए। 
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    कहीं कहीं महाभारत में इरावान का विवाह सात्यिकी की पुत्री के साथ भी होना बताया गया है। 
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    यही प्रथा इरावान के साथ किन्नर मनाते हैं इसी कारण देश भर के किन्नर इरावान को अपने आराध्य के रूप में पूजते हैं।
    साभार :- धर्म संसार।

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