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    Madhumalti:मधुमालती कैसे लगाएं? इसके क्या क्या फायदे हैं? आइए जानते हैं...


    उत्तर प्रदेश बलिया 
    इनपुट: हिमांशु शेखर 

    बलिया उत्तरप्रदेश:--मधुमालती मुख्यतः एशियाई देशों में पाई जाने वाली फूलों की लता है। ये आम तौर पर भारत, फिलीपींस और मलेशिया में पाई जाती हैं। अंग्रेजी में इसे रंगून क्रीपर या चायनीज हनीसकल, बंगाली में इसे मधुमंजरी, तेलुगु में राधामनोहरम, आसामी में मालती, झुमका बेल जैसे नामो से जाना जाता है। पौधे का बोटैनिकल नाम कॉम्ब्रेटम इंडिकम है।

    मधुमालती के फूल की एक रोचक बात है, ये रंग बदलते हैं। पहले दिन खिलते समय सफ़ेद रंग के होते हैं। दूसरे दिन गुलाबी और तीसरे दिन गाढ़े लाल रंग में बदल जाते हैं। फूलों का यह रंग बदलना ज्यादा से ज्यादा परागण के लिए विभिन्न प्रकार के कीटों को आकर्षित करने की रणनीति है। वैसे तो गर्मियों के मौसम में बहुत से पौधे फूल नहीं देते है, पर ये बेल गर्मियो में हमेशा फूलों से भरी होती है।

    इसका पौधा एक बार अच्छे से लग जाने के बाद जल्दी नहीं मरता है। इसके बेल को बढ़ने के लिए सहारे की आवश्यकता होती है। अधिक फूल लेने के लिए प्रतिदिन कम से कम 5 घंटे की धूप की जरुरत होती है। बेल के ज्यादा बढ़ने पर थोड़ा छांट देने से यह सही दिशा में बढ़ता है जिससे फूल जादा आते हैं आकार भी अच्छा रहता है। पर इसके पौधे को बहुत ज्यादा कांट-छांट पसंद नहीं होता है, यह खुलकर बढ़ना और फैलना पसंद करता है।

    इस पौधे को घर में लगाने से वास्तु दोष दूर होता है। एक्सपर्ट बताते हैं, इसके लाल फूल और सुंदर आभामंडल दोपहर के समय सबसे ज्यादा प्रभावी होता है, जिससे घर की नेगटिविटी, वास्तुदोष दूर होता है। दक्षिणमुखी मकान होने पर या अन्य दोष दूर करने के लिए घर में इसकी बेल जरूर लगाना चाहिए। इस पौधे को बालकनी या खुली छत पर भी उगाया जा सकता हैं। परिपक्त पौधे के लिए 30 इंच का पॉट बेहतर रहेगा। प्रारंभ से पौधे के विकास के अनुसार पॉट का आकार समय-2 पर बदलते रहना चाहिए। पौधा गर्म, आर्द्र परिस्थितियों में 15-40 डिग्री सेल्सियस में अच्छा पनपता है। पौधा ठंडे वातावरण में भी जीवित रह सकता है लेकिन पत्तियां गिरा देता है।

    मधुमालती कैप्रीफोलिआसी वंश में आती है। इसकी लगभग 180 प्रजातियाँ ज्ञात हैं। इनमें से लगभग 100 प्रजातियाँ चीन में, 20 भारत में, 20 यूरोप में, तथा 20 उत्तरी अमेरिका में पायी जाती हैं। इसकी सबसे प्रसिद्ध प्रजातियाँ हैं- लोनिकेरा जैपोनिका या जापानी मधुमालती या चीनी मधुमालती, लोनिकेरा पेरिक्लिमेनम या वुडबाइन तथा लोनिकेरा सेमपर्विरेन्स या तुरही हनीसकल या वुडबाइन हनीसकल। मधुमालती की कुछ प्रजातियों के पुष्पों की ओर गुंजन पक्षी हिमिंग बड्स बहुत आकर्षित होते हैं।

    मधुमालती को कटिंग से बसंत से लेकर बरसात के मौसम तक आसानी से उगाया जा सकता है। इसे नर्सरी से तैयार पौधा लाकर भी लगाया जा सकता है। इसके परिपक्त पौधे में फूलों को ठीक से खिलने के लिए नियमित रूप से पानी देने की आवश्यकता होती है। गर्मियों में दिन में एक से दो बार पानी देना अच्छा रहता है। सर्दियों में आप हर 3 दिन या हफ्ते में एक बार पानी दे सकते हैं। मधुमालती सूखी और गीली मिट्टी दोनों स्थितियों में जीवित रहता हैं। पौधे के उचित विकास के लिए जैविक खाद महीने में एक बार 2-4 मुट्ठी डाल सकते हैं। फूलों के मौसम के दौरान आप केले या प्याज के छिलके वाले उर्वरक का उपयोग कर सकते हैं। पौधा आम तौर पर किसी भी कीट या बीमारी से प्रभावित नहीं होता हैं।

    मधुमालती एक सुंदर फूल वाले पौधा के अलावा औषधीय गुणों से भरपूर पौधा भी है।

    1) सर्दी-जुकाम और कफ में 1 ग्राम तुलसी के पत्ते में 2-3 लौंग 1 ग्राम मधुमालती के फूल और 2 पत्तो को मिलाकर काढ़ा बनाकर दिन में 2-3 बार पीने से आराम मिलता है।

    2) डायबिटीज में 5-6 पत्तों या फूल का करीब 4 ml रस दोनों टाइम पियें।

    3) ल्यूकोरिया या श्वेत प्रदर में मधुमालती की पत्ती और फूल का रस पियें।

    4) मधुमालती की पत्तियों को पानी में उबाल कर पीने से बुखार से उठे दर्द में आराम मिलता है।

    5) पेट अगर भरा-भरा और फूला हुआ लगे तो मालती की पत्ती उबालकर पानी पीने से राहत मिलती है।

    6) मधुमालती के फलों का काढ़ा दांतदर्द ठीक करता है।

    7) मधु मालती की पत्तियों और फल से किडनी की सूजन और जलन का उपचार किया जाता है।

    8) मधुमालती की जड़ो का काढ़ा पेट के कीड़े निकालने और डायरिया के इलाज में फायदा करता है। इस काढ़े से गठिया रोग में भी आराम मिलता है।

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