अभी नहीं चेते तो भविष्य में आयेगा घोर जल संकट:डाॅ० गणेश पाठक(पर्यावरणविद्)
उत्तर प्रदेश बलिया
इनपुट: हिमांशु शेखर
बलिया उत्तरप्रदेश:---विश्व स्तर पर प्रत्येक वर्ष 18 सितम्बर को "विश्व जल निगरानी दिवस" मनाया जाता है, जिसका मुख्य उद्देश्य विश्व भर में जल संसाधनों की निगरानी एवं संरक्षण के प्रति जन - जागरूकता तथा भागीदारी सुनिश्चित करना है। यह एक ऐसा अन्तर्राष्ट्रीय कार्यक्रम है जिसके तहत व्यक्तियों, विद्यालयों, समुदायों एवं संगठनों को स्थानीय नदियों,नालों एवं अन्य जल स्रोतों की वस्तु स्थिति की निगरानी करने में सहभागिता निभाई जाती है। विश्व जल निगरानी दिवस पर जल की गुणवत्ता के महत्व की परख करने एवं उसके संरक्षण में सक्रिय भागीदारी निभाने के लिए समुदायों को प्रोत्साहित किया जाता है। इस तरह यह कार्यक्रम जल प्रदूषण की पहचान करने, जल प्रदूषण पर रोकथाम लगाने एवं जल के महत्व को समझाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। जल संसाधनों के संरक्षण हेतु जागरूकता एवं जन सहभागिता निभाने में भी यह कार्यक्रम विशेष भूमिका निभाता है। इस कार्यक्रम के तहत समुदाय, विद्यालय एवं स्वयं संगठन स्थानीय जल स्रोतों जल मार्ग तथा जल प्रवाह का परीक्षण करने एवं जल की गुणवत्ता पर आंकड़ा एकत्र करने हेतु एक साथ मिलकर काम करते हैं।
वर्तमान समय में न केवल अपने देश , बल्कि विश्व के अधिकांश देशों में जल प्रदूषण में वृद्धि, भूमिगत जल स्तर में कमी, जल स्रोतों का सूखना, नदियों के प्रवाह में कमी , नदियों का सूखना आदि समस्याएं चरम पर हैं एवं जलवायु परिवर्तन इसमें अहम् भूमिका निभा रहा है। दिन प्रति दिन जल संकट की स्थिति उत्पन्न होती जा रही है। यदि ऐसी ही स्थिति बरकरार रही तो भविष्य में पीने के लिए भी जल उपलब्ध नहीं हो पायेगा और जल के लिए संघर्ष की स्थिति बढ़ती जायेगी।
भारत में जल संकट -
भारत में जल संकट की स्थिति दिन प्रति दिन गंभीर होती जा रही है। अपने देश में प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता में निरन्तर कमी आती जा रही है। अपने देश में 2021 में प्रति व्यक्ति वार्षिक जल उपलब्धता 1,486 घन मीटर थी, जो जल संकट कु श्रेणी के अन्तर्गत आता है। 1,700 घन मीटर से नीचे जल उपलब्धता संक की श्रेणी में आता है। नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 60 करोड़ लोग जल के गम्भीर संकट से गुजर रहे हैं एवं लगभग दो लाख लोग प्रति वर्ष स्वच्छ जल की कमी से मृत्यु के शिकार हो जाते हैं।अपने देश का लगभग 70 प्रतिशत जल प्रदूषित हो गया है, जिससे भारत भारत जल गुणवत्ता सूचकांक में 122 देशों की श्रेणी में 120 वें स्थान पर है। 2019 में अपने देश के 65 प्रतिशत जलाशयों में जल का स्तर सामान्य से नीचे आ गया था। 12 प्रतिशत जलाशय पूर्णतया सूख गये थे। 2024 में बंगलुरु में भयंकर जल संकट उत्पन्न हो गया था।
भारत में भूमिगत जल का स्तर निरन्तर गिरता जा रहा है। स्पष्ट है कि पृथ्वी तल के नीचे स्थित किसी भू- गर्भिक स्तर की सभी रिक्तियों में विद्यमान जल को भू-गर्भ जल कहा जाता है। अपने देश में लगभग 300 लाख हेक्टोमीटर भू-गर्भ जल उपलब्ध है। इसका 80 प्रतिशत तक हम उपयोग कर चुके हैं।यदि भू-जल विकास स्तर की दृष्टि से देखा जाय तो अपना देश धूमिल संभावना क्षेत्र से गुजर रहा है,जो जल्दी ही संभावना विहिन क्षेत्र के अन्तर्गत आ जायेगा। इसको देखते हुए कहा जा सकता है कि निकट भविष्य में अपने देश में घोर जल संकट उत्पन्न हो सकता है। हाल ही में बंगलौर जिस जल संकट से गुजर रहा है, यह एक चेतावनी मात्र है। देश के अन्य क्षेत्रों में भी ऐसे जल संकट के आसार परिलक्षित हो रहे हैं। भूमिगत जल के निरन्तर नीचे खिसकने से कृषि एवं सिंचाई के लिए गम्भीर संकट उत्पन्न होता जा रहा है। वर्ष 2030 तक अपने देश में जल की मांग आपूर्ति ज्ञकी दुगुनी हो जायेगी, जिससे देश के करोड़ों लोग गम्भीर जल संकट के दौर से गुजरेंगे। जल कमी की इस संकट से भारत के घरेलू उत्पाद में 6 प्रतिशत की कमी हो जाने की सम्भावना व्यक्त की गयी है। जल संसाधन मंत्रालय की एकीकृत जल संसाधन के लिए राष्ट्रीय आयोग की रिपैर्ट के अनुसार उच्च उपयोग परिदृश्य में वर्ष 2050 तक जल की आवश्यकता 1,180 अरब घन मीटर होने की संभावना है। अफने देश में जल की उपलब्धता वर्तमान समय में 1,137 घन मीटर है। वर्ष 2030 तक देश की 40 प्रतिशत जनसंख्या को पीने योग्य स्वच्छ जल प्राप्त नहीं होगा। 2019 में नीति आयोग द्वारा जारी समग्र जल प्रबंधन सूचकांक के अनुसार 21 प्रमुख नगरों में भू - जल संसाधन समाप्त होने के कगार पर है, जिससे लगभग 100 मिलियन लोग प्रभावित हुए। ईस सूचकांक के अनुसार वर्ष 2030 तक भारत में जल की मांग उपलब्ध आपूर्ति की तुलना में दुगुनी होने की सम्भावना व्यक्त की गयी है। अपने देश में वर्ष 2021 में प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता 1816 घन मीटर थी, जो 2011 में घटकर 1545 घन मीटर हो गयी ,जो 2025 तक घटकर 1341 घनमीटर, 2031 तक 1367 घनमीटर एवं 2050 तक घटकर 1140 घनमीटर हो जाने की सम्भावना व्यक्त की गयी है।
भारत में प्रति व्यक्ति जल उपयोग वर्ष 2000 में 85 लीटर प्रति व्यक्ति प्रति दिन थी, जो 2025 तक 125 लीटर प्रति व्यक्ति प्रति दिन एवं 2050 तक 170 लीटर प्रति व्यक्ति प्रति दिन हो जायेगी।
इस प्रकार भारत में दिन प्रति दिन जल संकट बढ़ता ही जा रहा है।
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार विश्व की 40 प्रतिशत जनसंख्या जल की कमी से ग्रसित है एवं 2050 तक 50 प्रतिशत जनसंख्या जल की कमी से ग्रसित हो सकती है। नदियों का 80 प्रतिशत जल प्रदूषित हो चुका है, जिससे पीने के लिए स्वच्छ जल की कमी हो रही है।
विश्व स्तर पर लगभग 2.8 अरब लोग प्रति वर्ष एक महीने तक जल की कमी का सामना करते हैं, जब कि 2050 तक 5 बिलियन लोग जल की अपर्याप्त उपलब्धता से गुजरने लगेंगे, ऐसी सम्भावना व्यक्त की जा रही है।जल की कमी से उत्पन्न संकट के कारण विश्व भर में 125 जल संबंधी संघर्षों की घटनाएं सुनने में आ रही हैं, जो वर्ष 2000 की तुलना में 5 गुना से भी अधिक है। जनसंख्या वृद्धि, नगरीकरण , औद्योगीकरण, बढ़ते प्रदूषण, अत्यन्त भू - दोहन एवं जलवायु परिवर्तन जैसी घटनाएं जल संकट की स्थिति को और गम्भीर बना रही हैं।
यदि उत्तर- प्रदेश में भू-गर्भ जल की स्थिति को देखें तो स्थिति बहुत अच्छी नहीं कही जायेगी,कारण कि एक अध्ययन के अनुसार विगत वर्षों में उत्तर- प्रदेश में भू-जल का वार्षिक पुनर्भरण 68,757 मिलियन घन मीटर, शुद्ध दोहन 49483 मिलियन घन मीटर एवं भू-जल विकास 72.17 प्रतिशत रहा है,जबकि सुरक्षित सीमा 70 प्रतिशत है। वर्तमान समय में यह स्थिति और खराब हो गयी है।
वाटर एंड इण्डिया एवं अन्य स्रोतों के अनुसार 2000 से 2010 के मध्य भारत में भू-जल दोहन 23 प्रतिशत बढ़ा है। विश्व
में प्राप्त कुल भू-जल का 24 प्रतिशत अकेले भारत उपयोग करता है। इस तरह भू-जल उपयोग में भारत का विश्व में प्रथम स्थान है। फिर भी अपने देश में एक अरब से अधिक लोग पानी की कमी वाले क्षेत्रों में रहते हैं। वर्तमान स्थिति को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि भविष्य में न केवल भारत में,बल्कि विश्व में घोर जल संकट की स्थिति आने वाली है।
File photo of:डा.गणेश पाठक
भू-जल में गिरावट के प्रमुख कारण -
वर्षा वितरण में असमानता एवं वर्षा में कमी का होना,अधिकांश
क्षेत्रों में सतही जल का आभाव,पेयजल आपूर्ति हेतु भू-जल का अधिक दोहन, सिंचाई हेतु भू-जल का अत्यधिक दोहन एवं उद्योगों में भू-जल का अत्यधिक उपभोग आदि भू-जल में गिरावट के प्रमुख कारण हैं।
भू-जल की कमी से उत्पन्न समस्याएं -
भू - जल स्तर का निरन्तर नीचे की तरफ खिसकना, भू-जल में प्रदूषण की वृद्धि,पेय आपूर्ति की समस्या में वृद्धि, सिंचाई जल की कमी से कृषि पर प्रभाव, भू-जल का अत्यधिक लवणता युक्त होना,पेय जल आपूर्ति का घोर संकट उत्पन्न होना,
भू-जल की कमी एवं जल का प्रदूषित होना तथा आबादी वाले क्षेत्रों में जल आपूर्ति की कमी होना आदि भू-जल की कमी से उत्पन्न प्रमुख समस्याएं हैं।
भू-जल दोहन रोकने के उपाय-
भू-जल समस्या का एकमात्र उपाय भू-जल में हो रही कमी को रोकना है। प्रत्येक स्तर पर भू-जल के अनियंत्रित एवं अतिशय दोहन तथा शोषण एवं उपभोग पर रोक लगाना आवश्यक है। पुराने जल स्लैम को पुनर्जीवित करना होगा। जल ग्रहण क्षेत्रों में अधिक से अधिक वृक्षारोपण करना होगा,ताकि प्राकृतिक रूप से जल का पुनर्भरण होता रहे। जल बचत प्रक्रिया को अपनाना होगा। येन - केन प्रकार जल की बर्बादी को रोकना होगा। विकल्प की खोज करनी होगी। सुरक्षित एवं संरक्षित उपयोग करना होगा। जल को प्रदूषण से बचाना होगा। वर्षा जल का अधिक से अधिक संचयन करना होगा। जल आपूर्ति की सुरक्षित एवं संचयित प्रक्रिया अपनानी होगी। भूमिगत जल को चिरकाल तक स्थाई रखना होगा। कुल वर्षीय जल का कम से कम 31 प्रतिशत जल को धरती के अंदर प्रवेश कराने की व्यवस्था करनी होगी,इसके लिए वर्षा जल संचयन(रेन वाटर हार्वेस्टिंग) को बढ़ावा देना होगा।
यदि हमें कल के लिए जल को सुरक्षित रखना है तो हमें जल के व्यवहारिक उपयोग पर भी विशेष ध्यान देना होगा। जल के घरेलू उपयोग जैसे स्नान करना , बर्तन एवं कपड़ा की सफाई करना, शौचालय में जल का उपयोग करना, अनावश्यक जल को गिराना आदि बातों पर विशेष ध्यान देना होगा एवं जल संचय की प्रक्रिया को अपनाते हुए जल की बर्बादी को रोकना होगा। वर्षा जल संचयन हेतु रेन वाटर हार्वेस्टिंग की प्रक्रिया को अपनाना जल संरक्षण एवं जल संचयन के लिए अति आवश्यक है। जल संचयन एवं जल संरक्षण हेतु जन जागरुकता एवं जन सहभागिता अति आवश्यक है।