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    Gyan:भगवती के दुर्गा नामका इतिहास


    उत्तर प्रदेश बलिया 
    इनपुट: हिमांशु शेखर 
    बलिया उत्तरप्रदेश:---भगवती शताक्षीके द्वारा संसार एवं देवताओंकी सुरक्षा और संरक्षणकी बात सुनकर दुर्गम दैत्य अत्यन्त कुपित हुआ। वह अपनी सेनाके साथ अस्त्र-शस्त्रसे सुसज्जित होकर भगवतीसे युद्ध करनेके लिये चल पड़ा। उसके पास एक अक्षौहिणी सेना थी। देवताओंकी सारी सेना घेरकर वह दैत्य भगवतीके सामने खड़ा हो गया। भगवती शिवाने ब्राह्मणों और देवताओंके चारों ओर तेजोमय चक्र खड़ा कर दिया और स्वयं बाहर निकल आयीं।

    देवी एवं दुर्गम दैत्यके बीच भयंकर संग्राम प्रारम्भ हो गया। दोनों ओरकी बाण-वर्षासे सूर्य-मण्डल ढक गया। देवीके श्रीविग्रहसे बहुत-सी उग्र शक्तियाँ प्रकट हुईं। कालिका, तारिणी, बाला, त्रिपुरा, भैरवी, रमा, बगला, मातङ्गी, त्रिपुरसुन्दरी, कामाक्षी, तुलजा, जम्भिनी, मोहिनी, गुह्यकाली और दश-सहस्त्रबाहुका आदि नामवाली बत्तीस शक्तियाँ उत्पन्न हुईं। तदनन्तर चौंसठ और फिर अनगिनत शक्तियोंका प्रादुर्भाव हुआ। उन शक्तियोंने दानवोंकी बहुत-सी सेना नष्ट कर दी। फिर दुर्गम स्वयं शक्तियोंके सामने उपस्थित होकर उनसे युद्ध करने लगा। दस दिनोंके युद्धमें उस दैत्यकी सम्पूर्ण सेनाका संहार हो गया था। इसलिये वह क्रोध और अमर्षसे भरा हुआ था। थोड़े ही समयमें उस महापराक्रमी दैत्यने देवीकी सम्पूर्ण शक्तियोंपर विजय प्राप्त कर ली। तदनन्तर वह पराम्बा भगवतीके सामने अपना रथ ले आया। अब भगवती जगदम्बा और दुर्गम दैत्यके बीच भीषण युद्ध होने लगा। हृदयको आतङ्कित करनेवाला यह भयंकर युद्ध दोपहरतक चलता रहा। इसके बाद देवीने दुर्गमपर पन्द्रह बाणोंका प्रहार किया। दुर्गमके रथके चार घोड़े देवीके चार बाणोंके लक्ष्य हुए। एक बाण सारथिको लगा। एक बाणने दुर्गमके रथकी ध्वजा काट दी। दो बाणोंने दुर्गमके दोनों नेत्र और दोनों भुजाओंको बींध दिया। जगदम्बाके पाँच बाणोंने उस दैत्यकी छातीको विदीर्ण कर दिया। अन्तमें वह दैत्य रक्त वमन करता हुआ धरतीपर गिर पड़ा। उसके शरीरसे एक तेज निकलकर भगवतीके रूपमें समा गया। उस महान् पराक्रमी दैत्यके मारे जानेसे सभी लोग सुखी हो गये।

    भगवान् विष्णु और शिवको आगे करके समस्त देवता भगवती जगदम्बाकी स्तुति करते हुए कहने लगे — 'सम्पूर्ण जगत्‌की एकमात्र कारण परमेश्वरि ! शतलोचने ! तुम्हें बार-बार नमस्कार है। जो दिव्य विग्रहसे सुशोभित हैं एवं जिन्होंने ब्रह्मा, विष्णु आदिको प्रकट किया है, उन भगवती भुवनेश्वरीके चरणोंमें हम सर्वतोभावसे मस्तक झुकाते हैं। करुणाकी असीम सागर भगवती शाकम्भरी तुम्हारी जय हो।' आपने दुर्गमको मारकर देवताओंका संकट निवारण किया है, इसके लिये हम सभी देवता आपके प्रति हृदयसे कृतज्ञ हैं।

    ब्रह्मा, विष्णु, शिव आदि देवताओंके स्तवन एवं पूजनसे भगवती जगदम्बा संतुष्ट हो गयीं। उन्होंने दुर्गमासुरसे छीने हुए वेदोंको देवताओंको सौंप दिया। तदनन्तर उन्होंने ब्राह्मणोंसे कहा — 'जिसके अभावमें ऐसा अनर्थकारी समय उपस्थित हो गया था, वह वेदवाणी मेरे शरीरसे ही प्रकट हुई थी, अतः सब प्रकारसे इसकी रक्षा करनी चाहिये। मेरी पूजामें संलग्न रहना तुम्हारा परम कर्तव्य है। तुम्हारे कल्याणके लिये इससे श्रेष्ठ कोई उपाय नहीं है। मेरे हाथसे दुर्गम नामक दैत्यका वध हुआ है। अतः आजसे मेरा एक नाम 'दुर्गा' प्रसिद्ध होगा। करुणाका स्वरूप होनेके कारण मैं 'शताक्षी' भी कहलाती हूँ। जो व्यक्ति मेरे इन नामोंका कीर्तन करता है, वह मायाके बन्धनको तोड़कर मेरा स्थान प्राप्त करता है।' इस प्रकार भगवती दुर्गा देवताओं और ब्राह्मणोंको उपदेश देकर अन्तर्धान हो गयीं।


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